डॉ. सुरेश खैरनार कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी विनायक दामोदर सावरकर ने अपने सार्वजनिक भाषणों में, हजारों लोगों की उपस्थिति जिसमें महिलाओं का भी समावेश था! ऐसी सभाओं में शत्रुओं की औरतों को बेइज्जत करने के लिए कहा है! छत्रपति शिवाजी महाराज ने कल्याण के सूबेेदार की बहू को, युद्ध में जीतने के बाद, उसे उसके परिवार वालों के पास, ससम्मान वापस भेज दिया था! जो छत्रपति शिवाजी महाराज के उच्च कोटी के मानवीय मूल्यों के लिए गत चार सौ सालों से भी अधिक समय से, सराहनीय कार्य के रूप में आज भी याद किया जाता है! वैसे ही वसई की लडाई में एक पुर्तगाली महिला को भी, चिमाजी अप्पा नाम के पेशवा ने छत्रपती शिवाजी महाराज के ही आदर्शो का पालन करते हुए ससम्मान भिजवा दिया था। उस महिला को भी उसके परिवार के हवाले करने की घटना का, सावरकर ने घोर आलोचना करते हुए कहा कि, ‘शत्रुओं की महिला फिर वह किसी भी उम्र की क्यो न हो? उसे भ्रष्ट करना चाहिए! और इस तरह के साहित्य सावरकर सदन से प्रकाशित किताबों में ‘हिंदू पदपादशाही’ ‘सहा सोनेरी पाने’ जैसे किताबों में मौजूद हैं! इस तरह केअत्यंत भडक़ाने वाले और अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ समाज में विषाक्त माहौल पैदा करने वाले व्यक्ति को, जब तक महिमामंडित किया जाता रहेगा तब तक बिलकीस बानो जैसी महिलाओं के साथ अत्याचार होते रहेंगे! और उन अत्याचारीयो के सत्कार समारोह भी। आगे चलकर न ही कोई केस दर्ज होगा और न ही कोई अदालत! सवाल आस्था का है कानून का नहीं।
भले ही कोई कोर्ट उन्हें सजा दे या कोई कोर्ट उनकी सजा को माफ कर दे, या फिर कोई कोर्ट यूनानी तत्ववेत्ता प्लेटो के उद्धरण देते हुए वापस सजा सुनाए, लेकिन जिस देश के सर्वोच्च सदन संसद में उसका फोटो लगाया जाता है कोई उसे भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ देने की मांग करता रहेगा, और उसके विचारों को लेकर सौ वर्ष से एक संगठन चलाते-चलाते भारत की सत्ता पर कब्जा करता हो।
अपनी शक्ति के बल पर, बिलकीस बानो के साथ अत्याचार करने वाले लोगों को भारतीय आजादी के अमृत महोत्सव जैसे पर्व की आड़ में इतने जघन्य कांड करने के बावजूद उन्हें सहूलियत दिया जाना हमारे देश की आजादी के मूल्यों का घोर अपमान है। इस बात के लिए सिर्फ गुजरात सरकार को दोषी करार देना पर्याप्त नहीं है। वर्तमान समय में केंद्र में बैठी हुई सरकार की और उसमे भी गृह मंत्रालय की मुख्य भूमिका रही है! क्योंकि गुजरात सरकार ने तो आजादी के 75वें साल के अवसर का लाभ उठाने की सिफारिश, केंद्र सरकार के गृहमंत्री के पास ही इन गुनाहगारों को माफ करने के लिए भेजी थी!
सबसे हैरानी की बात, जब सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी तब गुजरात सरकार ने कई तथ्यों को छिपाकर न्यायालय को भी गुमराह किया है! बिलकीस बानो के गुनाहगारों को सजा महाराष्ट्र के न्यायालय में सुनाई गई थी और इन ग्यारह गुनाहगारों में से, तीन नंबर के दोषी राधेश्याम ने महाराष्ट्र सरकार के पास, रेमिशन पॉलिसी के तहत सजा घटाने के लिए, सहूलियत देने के लिए अर्जी दाखिल की थी। जो तत्कालीन महाराष्ट्र की सरकार ने ठुकरा दी थी और इसके बाद राधेश्याम ने यही मांग गुजरात के हाईकोर्ट में की थी! वहां भी इस मांग को खारिज कर दिया गया था!
फिर राधेश्याम सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा! लेकिन उसने यह तथ्य छिपा लिया कि महाराष्ट्र सरकार उसकी अर्जी और मांग को ठुकरा चुकी है। और उससे ज्यादा हमारे संविधान की शपथ ग्रहण की हुई, गुजरात की सरकार ने, जिसे इन अपराधियों को रेमिशन पॉलिसी के तहत छोडऩे का अधिकार नही है (यह अधिकार महाराष्ट्र सरकार का है) और उसकी मांग महाराष्ट्र सरकार ने ठुकरा दी है, यह बात छिपाई! 13 मई 2022 को सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात सरकार को फैसला लेने के लिए कहा! और गुजरात सरकार ने न ं सिर्फ राध्येश्याम बल्कि सभी 11 दोषियों को 15 अगस्त 2022 के दिन, जो हमारे देश की आजादी के 75वें उत्सव का दिन था, रिहा कर दिया! और उसी दिन लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी देश को संबोधित करते हुए, “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” अभियान का नारा दे रहे थे! इतना बड़ा पाखंड शायद ही कोई और कर सकता!
इसी देश की एक पांच महीने की गर्भवती स्त्री को, 28 फरवरी 2002 के दिन उसके घर पर हमला करते हुए से तथा मां और चचेरी बहन से बलात्कार किया! और बहन के दो दिन के बेटे को पटक– पटक कर मार देने के बाद, बिलकीस की चाची, चचेरे भाई, बहनों समेत सात लोगों की हत्या कर दी थी! तब गुजरात के मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही थे।
इस घटना के बाद बिलकीस ने कानूनी लड़ाई शुरू की! और कोर्ट से कहा कि मेरा केस वर्तमान समय में गुजरात के कोर्ट मे विचाराधीन है, वर्तमान सरकार की तरफ से काफी दबाव डाला जा सकता है! इसलिए मेरे केस को महाराष्ट्र के सीबीआई कोर्ट में स्थानांतरित किया जाए! और इस तरह से यह केस महाराष्ट्र की सीबीआई कोर्ट में स्थानांतरित किया गया। यहां जस्टिस डी. यू. सालवी ने सीबीआई कोर्ट के तरफ से, 2008 को सभी ग्यारह अपराधियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी! लेकिन गुजरात सरकार ने, चौदह साल के पहले ही! आजादी के पचहत्तर साल के रेमिशन पॉलिसी के आड़ में! सभी गुनहगारों को रिहाई देने का फैसला किया। सबसे घृणित बात, जेल से छोडऩे के बाद,इन सभी अपराधियोंं के सम्मान में जगह-जगह सत्कार समारोह आयोजित किए गए और कहा कि यह सभी ब्राह्मण जाति के हैं, ये लोग ऐसा अपराध कर ही नहीं सकते! मतलब की मनुस्मृति के अनुसार, ब्राह्मण द्वारा ऐसे कोई भी अपराध करने पर उसे कोई अपराध नहीं माना जाता है, इसलिए उन्हें सजा नहीं दी जा सकती। संविधान की शपथ ग्रहण करने के बावजूद गुजरात की सरकार ने मनुस्मृति का लगभग यही अमल किया है। इन अपराधियों को छोडऩे के लिए जो तिकड़मी हरकतें की हैं और सर्वोच्च न्यायालय को भी धोखा देते हुए सभी अपराधियों को भारत की आजादी के ‘अमृतमहोत्सवी’ उत्सव के उपलक्ष्य में रेमिशन पॉलिसी का आधार लेते हुए छोडक़र, भारत की आजादी का भी अपमान किया है। क्या ऐसी सरकार को एक क्षण के लिए भी सत्ता में बने रहने का कोई नैतिक अधिकार है? लेकिन विनायक दामोदर सावरकर और माधव सदाशिव गोलवलकर के अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ, गत सौ वर्ष से संघ की शाखाओं में जो जहर बचपन से ही बच्चों के जेहन में डाला जाता है तो और क्या हो सकता है?
गुजरात मॉडल शब्द ऐसे ही थोड़ा आया? और इसी मॉडल को आज संपूर्ण देश में लागू करने की कोशिश की जा रही है! राम की आड़ में पिछले पैतींस सालों से यही कोशिश लगातार जारी है, और आने वाली 22 जनवरी को अयोध्या में आधे-अधूरे राम मंदिर मंदिर में, भगवान राम की मूर्ति को प्रतिस्थापित करने की कृति! शत प्रतिशत, संघ और उसकी राजनीतिक इकाई, भाजपा की कोशिश! आने वाले लोकसभा चुनाव में, अपने दल के लिए, लोगों की आस्था के साथ खिलवाड़ करना जारी है । और इस आस्था के नाम पर, ऐसी कितनी बिलकीस और हजारों की संख्या में लोगों के जीवन को दांव पर लगा कर, जो राजनीति चल रही है तब तक और बेकसूर बिलकीस, स्वाति, मनीषा, जाहिरा, मलिका, मणिपुर की सभी पीडि़त बहनें तथा जुनैद, अखलाक खाक होते रहेंगे।