फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) । पूर्व मंत्री विपुल गोयल को भाजपा आला कमान ने प्रदेश उपाध्यक्ष पद का झुनझुना थमा कर आने वाले लोकसभा व विधानसभा चुनाव में उन्हें पार्टी प्रत्याशियों को जिताने की जिम्मेदारी सौंपी है। यानी अब वह सांसद या विधायक पद की दावेदारी नहीं करेंगे बल्कि पार्टी आला कमान द्वारा चुने गए सांसद-विधायक प्रत्याशियों के समर्थन में पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता के रूप में काम करते नजर आएंगे।
भाजपा मामलों के जानकारों के अनुसार मोदी-शाह की जोड़ी किसी भी कीमत पर 2024 का लोकसभा चुनाव हारना नहीं चाहती। जीत सुनिश्चित करने के लिए पूरे देश में विपक्ष को कमजोर करने और पार्टी में असंतुष्टों को साधने की रणनीति बनाई गई है। इसके तहत विपक्ष का कमजोर करने के लिए क्षेत्रीय पार्टियों में तोडफ़ोड़ करने, ईडी- सीबीआई- न्यायपालिका का अपने हक में इस्तेमाल करने का प्लान बीते एक डेढ़ साल से पूरी ताकत से इस्तेमाल किया जा रहा है। मोदी-शाह की जोड़ी भाजपा में पनप रहे असंतुष्ट नेताओं को भी साधने में जुटी है। इसके तहत पार्टी के असंतुष्ट नेताओं को उनकी महत्वाकांक्षा के अनुसार पद आदि देकर संतुष्ट करना है। मोदी-शाह की इस रणनीति को संघ का समर्थन प्राप्त है ताकि 2024 लोकसभा चुनाव में पार्टी की अंदरूनी बगावत के कारण कोई नुकसान न हो।
कैबिनेट मंत्री जैसे कद्दावर पद पर होने के बावजूद पिछले विधानसभा चुनाव में टिकट काटे जाने से विपुल गोयल प्रदेश के असंतुष्ट नेताओं में सबसे ऊपर माने जा रहे थे। लगातार साढ़े तीन साल से पार्टी में हाशिए पर चल रहे विपुल गोयल को मोदी-शाह के इशारे पर ही मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इक्का दुक्का कार्यक्रमों में अपने साथ मंच पर बुलाया। यह उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को संतुष्ट करने के लिए किया गया था न कि आगामी चुनावों में उन्हें प्रत्याशी बनाने के लिए।
गोयल की महत्वाकांक्षा और बगावती तेवर हाल ही में नजर भी आने लगे जब उन्होंने केंद्रीय मंत्री किशनपाल के गढ़ फरीदाबाद लोकसभा की सभी विधानसभा क्षेत्रों में अपने बैनर पोस्टर लगाकर प्रचार- प्रसार शुरू कर दिया था। इन पोस्टरों पर विपुल गोयल ने जनता से सीधे उनसे जुडऩे की अपील की थी न कि भाजपा से। राजनीतिक जानकारों के अनुसार विपुल गोयल ने बैनर पोस्टरों के जरिए न केवल केंद्रीय मंत्री किशनपाल गूजर के लिए मुश्किलें खड़ी कर दीं, पार्टी को भी यह संदेश दिया कि यदि टिकट नहीं दिया गया तब भी वे निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ सकते हैं। बैनर पोस्टरों में भाजपा को तरजीह नहीं दिए जाने का दूसरा कारण यह भी माना जा रहा था कि यदि पार्टी में उनकी बात नहीं सुनी गई तो किशनपाल से बदला लेने के लिए फरीदाबाद विधानसभा से कांग्रेस का टिकट हासिल करेंगे बदले में वह लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी को जिताएंगे। इन दोनों ही हालात में किशनपाल गूजर का नुकसान होता।
लोकसभा विधानसभा की एक एक सीट के लिए रणनीति तय कर रही संघ-भाजपा को विपुल गोयल के बगावती तेवर फरीदाबाद में नुकसान पहुंचाने वाले नजर आ रहे थे। ऐसे में उनके पर कतरने के लिए उन्हें भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष पद का झुनझुना थमाया गया है। भाजपा के भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार पार्टी में उन्हें ये पद इसी शर्त पर दिया गया है कि वे अब लोकसभा-विधानसभा टिकट का दावा नहीं करेंगे। धनकुबेर विपुल गोयल को ये पद इसलिए भी दिया गया है कि संगठन मजबूत करने के नाम पर उन्हें पूरे प्रदेश में फंसाए रखा जाएगा और फरीदाबाद में उनकी गतिविधियां लगभग समाप्त कर दी जाएंगी। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि प्रदेश उपाध्यक्ष पद सौंपे जाने के साथ उन्हें यह भी लॉलीपॉप दिया गया होगा कि यदि केंद्र और राज्य में दोबारा भाजपा की सरकार बनती है तो उन्हें मोटी मलाईदार धंधा दिया जाएगा लेकिन ये केवल चुनावी वादे ही साबित होने वाले हैं। जिस तरह टिकट काटे जाने के बाद भाजपा ने विपुल की तरफ पलट कर नहीं देखा था, लोकसभा-विधानसभा चुनाव के बाद वही हालात होने वाले हैं। अब विपुल को तय करना है कि पार्टी का मोहरा बन कर खुद का राजनैतिक कॅरियर समाप्त करना है या जनता के बीच जाकर अपने आपको साबित करना है।