फरीदाबाद (मज़दुर मोर्चा) करीब सात-आठ वर्ष पूर्व हरियाणा सरकार ने निर्णय किया कि तमाम वाहनों के पंजीकरण तथा ड्राइवरों के लाइसेंसों को डिजिटलाइज यानी कि कम्प्यूटर में चढ़ाया जाए। इसके लिये तमाम नये वाहनों एवं ड्राइविंग लाइसेंसों को तो हाथों-हाथ कम्प्यूटर में चढ़ाया जाने लगा और पुरानों के लिये सम्बन्धित एजेंसी द्वारा राज्य भर के तमाम प्राधिकरणों यानी कि एसडीएम तथा आरटीओ कार्यालयों में जाकर रजिस्टरों से ब्यौरे उठाकर कंप्यूटर में चढ़ाये जायें। एजेंसी ने अपना काम पूरा करने के बाद रिपोर्ट दी कि फलां-फलां कार्यालयों में उसे पूरे ब्यौरे नहीं मिल पाये; किसी दफ्तर में पूरा रजिस्टर ही गायब हैंं तो किसी में पन्ने फटे हुए हैं तो किसी में लिखावट पढऩे लायक नहीं हैं।
सरकारी कार्यालयों की लापरवाही एवं निकम्मेपन से निपटने के लिये खट्टर की अंधी-बहरी सरकार ने उलटे वाहन मालिकों एवं चालकों पर ही शिकंजा कस दिया। बजाय इसके कि सरकार अपनी गलती मान कर सम्बन्धित लोगों से आवश्यक डाटा प्राप्त करती, उसने तो उन्हें प्रताडि़त करना शुरू कर दिया। इस प्रक्रिया में आदेश जारी किया गया कि जो वाहन पोर्टल पर दर्ज नहीं होगा उसका पॉल्यूशन सर्टीफिकेट नहीं बनेगा। इसके पकड़े जाने पर हरियाणा में पांच हजार और दिल्ली में 10 हजार रुपये जुर्माना कर दिया गया। फंस गई न गरदन।
ऐसे ही एक वाहन मालिक ने इस संवाददाता को बताया कि उसकी मारुति कार नम्बर एचआर-10पी-9647 सोनीपत में पंजीकृत है इसलिये उसे इस काम के लिये गुडग़ांव से सोनीपत जाना पड़ा। वहां जाकर $फाइल तैयार करवा कर एसडीएम कार्यालय में जमा कराई। सम्बन्धित बाबू ने $फाइलों के ढेर की ओर इशारा करते हुए बताया कि ये सब $फाइलें चंडीगढ़ स्थित परिवहन मुख्यालय में जायेंगी और वहां से कब आयेंगी कोई पता नहीं। अब कर लो क्या करोगे इस खट्टर सरकार का? एक ओर तो वाहन मालिक डिजिटलाइजेशन के लिये एसडीएम कार्यालय के चक्कर काट रहा है दूसरी ओर ‘धुआं पर्ची’ की तलवार उसके सिर पर लटकी है।
वैसे यह धुआं पर्ची भी कमाल की चीज़ है। एक बार 100 रुपये देकर पर्ची कटा लो फिर चाहे जितना मर्जी धुआं छोड़ो। दरअसल पर्यावरण के नाम पर यह एक प्रकार की दुकानदारी सरकार ने शुरू कर रखी है। यदि वास्तव में ही सरकार का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण होता तो सडक़ों पर चल रहे वाहनों की जांच करके दोषी पाये जाने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए थी। इसी पर्यावरण के नाम पर दस व पन्द्रह साल पुराने वाहनों के चलने पर पाबंदी लगाना भी केवल वाहन निर्माताओं को लाभान्वित करना है। इसकी अपेक्षा सरकार को केवल उन वाहनों को सडक़ पर उतरने से रोकना चाहिये था जो फिटनेस के पैमाने पर खरे न उतरते हों।