नई दिल्ली (मज़दूर मोर्चा) ईएसआई कॉर्पोरेशन द्वारा मज़दूरों को दी जाने वाली चिकित्सा सेवाओं की दुर्दशा को लेकर इसके मुख्यालय पर भारी प्रदर्शन करने की आवश्यकता काफी समय से महसूस की जा रही थी। कुछ हद तक यह आवश्यकता छ: नवम्बर को फरीदाबाद के क्रांतिकारी मज़दूरों ने पूरी करने का प्रयास किया।
कॉर्पोरेशन के महानिदेशक राजेन्द्र कुमार आईएएस को सम्बोधित ज्ञापन जो उनकी अनुपस्थिति में मेडिकल कमिश्नर दीपिका गोविल को सौंपा गया। ज्ञापन की मूलप्रति पेज नं. 2 पर बॉक्स में ज्यों की त्यों दी जा रही है। इसमें सारा ज़ोर ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज फरीदाबाद के डीन डॉ. असीम दास को बर्र्खास्त करने पर दिया गया है। केवल औपचारिकता निभाते हुए इस अस्पताल की कमियों को दूर करने की मांग की गई है। इसका मूल कारण, जो ज्ञापन को पढऩे से नज़र आ रहा है, तीन नवम्बर को क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा के कार्यकर्ताओं के साथ अस्पताल के गार्डों के साथ हुई झड़पा-झड़पी है।
उक्त घटना 44 वर्षीय अशोक नामक मरीज़ को लेकर हुई थी। इस मरीज़ को पीआईवीडी (प्रोट्रयूजन ऑफ इंटर वर्टीब्रल डिस्क) यानी कमर के दर्द की जटिल बीमारी है। यद्यपि प्रदशनकारी मज़दूर नेताओं द्वारा बताया गया कि अशोक को यह बीमारी बीते करीब एक-दो माह से थी। हालत ज्यादा बिगडऩे तथा वांछित उपचार न मिलने की शिकायत लेकर 30 अक्टूबर को क्रांतिकारी मज़दूर नेता डीन डॉ. असीमदास से मिले तो उन्होंने तुरन्त अशोक को अस्पताल में दाखिल करके हड्डियों के डॉक्टर को आवश्यक दिशानिर्देश दे दिये थे। इलाज कर रहे डॉक्टर रजत गुप्ता ने पाया कि मरीज़ का एमआरआई जरूरी है लेकिन फिलहाल मरीज़ की स्थिति ऐसी नहीं थी कि उसका एमआरआई किया जा सके। डॉक्टरों के अनुसार मरीज़ को जितने समय तक एमआरआई मशीन मे लिटा कर रखना होता है वह उसके लायक अभी नहीं था। मरीज़ को उस स्थिति के लायक बनाने तथा इस दौरान उसे दर्द से राहत दिलाने का प्रयास किया जा रहा था।
क्रांतिकारी मज़दूर नेता डॉक्टरों के इलाज की इस रणनीति से संतुष्ट नहीं थे। शायद वे यह चाहते हों कि उनके साथी मरीज़ का इलाज तुर्त-फुर्त करके उसे स्वस्थ कर दिया जाए। हड्डी विशेषज्ञ डॉ. रजत गुप्ता के अनुसार इस तरह की बीमारी में सर्जरी करने की अपेक्षा अन्य उपायों के इस्तेमाल को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि सर्जरी के बाद भी ठीक होने के चांस फिफ्टी-फिफ्टी ही होते हैं। ऐसे में कोई भी सर्जन जोखिम लेने से बचता है। इसी दौरान यह भी पता लगा कि संस्थान के डीन खुद भी इसी बीमारी के शिकार हैं और सर्जरी से बचते हुए अन्य उपायों का सहारा ले रहे है। इसी के चलते डीन दफ्तर में कुर्सी पर बैठने के बजाय अधिक समय खड़े-खड़े ही काम करते हैं, खाना भी खड़े होकर खाते हैं। बैठने और लेटने की अपेक्षा खड़े रहने में ज्यादा आराम मिलता है।
क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा द्वारा ज्ञापन में लगाये गये आरोपों के बारे में अस्पताल प्रशासन का कहना है कि वे सदैव मरीज़ों की शिकायत सुनने व उनका निदान करने के लिये तत्पर रहते हैं। लेकिन मारपीट व डंडे के बल पर किसी की भी मनचाही मुराद पूरी नहीं की जा सकती। जब वे 30 अक्टूबर को मरीज दाखिल कराने आ सकते थे तो तीन तारीख को भी आकर उसकी पीड़ा एवं समस्या के बारे में बातचीत कर सकते थे।
उनके अनुसार उक्त क्रांतिकारियों ने झंडों-डंडों के साथ ओपीडी में प्रवेश करना चाहा तो वहां मौजूद चार महिला गार्डों ने उन्हें रोकने का भरसक प्रयास किया। इस प्रयास में तीन महिला गार्ड कुछ हल्की-फुल्की घायल भी हुई । स्थिति की नजाकत को देखते हुए आसपास तैनात पुरुष सिक्योरिटी गार्ड भी मौके पर पहुंचे। ऐसे में दोनों पक्षों में अच्छी-खासी झड़पा-झड़पी के बाद प्रदर्शनकारियों को परिसर से बाहर खदेड़ दिया गया।
सूचना मिलने पर स्थानीय पुलिस भी मौके पर पहुंच गई। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस को बताया कि वे तो डीन को ज्ञापन देने आये थे। इस पर पुलिस ने कहा कि डीन ओपीडी में नहीं अपने ऑफिस में बैठते हैं, चार जने जाकर वहां ज्ञापन दे आओ। जब सात-आठ प्रदर्शनकारी ज्ञापन देने डीन ऑफिस पहुंचे तो डीन ने उन्हें बैठा लिया। इससे पहले कि डीन से कोई बातचीत शुरू होती कि सम्बन्धित अधिकारी कुछ देर पहले हुई मारपीट की रिपोर्ट लेकर डीन के सामने पहुंच गये। यह रिपोर्ट सुनकर उनका मूड खराब इतना हो गया कि उन्होंने मज़दूर नेताओं से बात करने से मना कर दिया और दफ्तर से निकल जाने को कहा।
इस पर प्रदर्शनकारियों के अध्यक्ष नरेश कुमार ने डीन को अपना ज्ञापन देना चाहा जिसे लेने से उन्होंने मना कर दिया। उनका कहना था कि बगैर मारपीट किये उनके पास आते तो वे सब कुछ सुनते और बेहतरीन करने का प्रयास करते, लेकिन इस स्थिति में उनसे कोई बातचीत करना नहीं चाहेंगे। लेकिन कामरेड नरेश ज्ञापन देने पर अड़े रहे तो डीन ने ज्ञापन लेकर फाड़ कर फेंक दिया और नरेश को गुुद्दी पकड़ कर दरवाजे से बाहर कर दिया।
प्रदर्शनकारियों ने अपने कुछ घायल साथियों के एमएलआर बीके अस्पताल से कटवा कर स्थानीय पुलिस चौकी एनएच तीन में झगड़े की शिकायत के साथ दे रखी है। उधर अस्पताल कर्मचारियों ने भी अपनी मरहम पट्टी तो खुद ही कर -करा ली है, लेकिन पुलिस के चक्कर में पडऩे की जरूरत नहीं समझी।