बाल्मीकि को नौकरी से निकाला, सवर्णों को सफाई कर्मचारी बनाया

बाल्मीकि को नौकरी से निकाला, सवर्णों को सफाई कर्मचारी बनाया
October 25 17:17 2023

फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा)। भ्रष्टाचार में डूबे नगर निगम के अधिकारियों ने स्थायी भर्ती किए गए बाल्मीकि जाति के सफाई कर्मचारी 35 वर्षीय देवेंदर को नौकरी के चार साल बाद बिना नोटिस के निकाल दिया। बाल्मीकि और हरिजन जाति के लिए आरक्षित सफाई कर्मचारियों के पद पर ब्राह्मण, ठाकुर, जाट, गूजर, मुसलमान जाति के कर्मचारी बड़ी संख्या में भर दिए गए। नगर निगम अधिकारी और नगर पालिका कर्मचारी संघ के पदाधिकारियों ने अपने करीबियों और रिश्तेदारों को नौकरी दिला दी और पात्रों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। बाल्मीकि और हरिजन जाति के कर्मचारी नौकरी के लिए भटक रहे हैं।

देवेंदर के अनुसार वर्ष 1996 में पूरे प्रदेश में सफाई कर्मचारी हड़ताल पर चले गए थे। सफाई न होने से महामारी फैली तो सरकार ने सफाई कर्मचारियों की खुली भर्ती निकाली। जनवरी 1997 में 547 स्थायी सफाई कर्मचारी भर्ती किए गए। इनमें देवेंदर भी शामिल थे। भर्ती की शर्तों में हरिजन या वाल्मीकि जाति का प्रमाणपत्र लगाना अनिवार्य था। देवेंदर के अनुसार 547 सफाई कर्मचारियों में बहुत सारे कर्मचारी गैर बाल्मीकि, गैर हरिजन जाति के भरे गए थे, इन लोगों ने फर्जी जाति प्रमाणपत्र लगा कर नौकरी हासिल की।

नगर निगम ने वर्ष 2001 में इन सभी कर्मचारियों को बिना नोटिस दिए काम से निकाल दिया। जबकि छंटनी के लिए न तो सरकार और न ही कोर्ट ने कोई आदेश जारी किया था। देवेंदर कहते हैं कि निगम ने निकाले गए सभी कर्मचारियों को नौकरी से निकाले जाने के मुआवजे के रूप में 5865 रुपये का चेक भी दिया था। निगम के इस निर्णय के विरुद्ध 16 सवर्ण कर्मचारी हाईकोर्ट से स्टे ले आए, इसलिए उन्हें नौकरी से नहीं निकाला गया। 2005 में इनका स्टे भी खारिज हो गया, इसके विरुद्ध इन कर्मचारियों ने हाईकोर्ट में अपील की लेकिन वह भी खारिज हो गई। आरोप है कि रिश्तेदार और करीबी होने के कारण अधिकारियों ने इन 16 कर्मचारियों को नौकरी से नहीं निकाला, कई कमिश्नर आए और उनके संज्ञान मे फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर सफाई कर्मचारी की नौकरी देने का मामला आया लेकिन किसी ने कोई कार्रवाई नहीं की। ये सभी आज तक काम कर रहे हैं।

सफाई कर्मी का चोला पहने इन 16 कर्मचारियों ने कभी सफाई का काम भी नहीं किया, किसी को पत्र वाहक का काम दिया गया है तो कोई अधिकारियों के दफ्तर में लगा है, यानी राजा बाबू की तरह काम कर रहे हैं और निगम सफाई कर्मियों की कमी से जूझ रहा है। सफाईकर्मी के पद पर भर्ती हुए इन सवर्णों को भी झाड़ू-पंजा थमा कर सडक़ों की सफाई, ट्रकों में कूड़ा भरने, कूड़े के कंटेनर खाली करने, चोक नाली खोलने आदि जैसे सफाई के ही काम में लगाया जाना चाहिए।

निकाले गए कर्मचारियों ने नगर निगम के अधिकारियों के निर्णय के विरुद्ध प्रशासन से लेकर सरकार तक हर जगह गुहार लगाई लेकिन उनकी बहाली नहीं हुई। न्याय न मिलता देख 2011 में देवेंदर ने आमरण अनशन का निर्णय लिया और नगर निगम के गेट पर धरने पर बैठ गए। इस पर दिल्ली से राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग की टीम उनसे मिली और निगम अधिकारियों से बात के बाद देवेंदर को दस दिन में नौकरी दिलाने आश्वासन देकर अनशन तुड़वाया। इसके बाद निगम ने बर्खास्त किए गए 531 सफाई कर्मियों में से 526 को तो दोबारा नौकरी पर ले लिया लेकिन देवेंदर सहित छह अन्य को नौकरी नहीं दी।

इसके लिए निगम अधिकारियों ने बहाना बनाया कि देवेंदर ने 5865 रुपये की मुआवजा राशि स्वीकार कर ली थी। यह मुआवजा राशि तो अन्य सभी सफाई कर्मचारियों ने भी ली थी लेकिन 2012 में उन लोगों को बहाल कर दिया गया। देवेंदर कहते हैं कि बहाल तो उन्हें भी किया गया, ज्वाइनिंग भी कराई गई लेकिन आज तक काम या वेतन नहीं दिया गया। उन्होंने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उच्च न्यायालय ने जुलाई 2023 में निगमायुक्त को देवेंदर की नौकरी के संबंध में एक महीने में निर्णय लेकर कोर्ट को अवगत कराने का निर्देश दिया था लेकिन निगमायुक्त ने कोई कार्रवाई नहीं की। इस पर उन्होंने न्यायालिका की अवहेलना की याचिका भी दायर की है जिसकी सुनवाई मार्च 2024 में होनी है। देवेंदर कहते हैं कि यह सिर्फ उनकी लड़ाई नहीं हैं उनकी तरह नौकरी से वंचित किए गए पात्र कर्मचारियों को न्याय दिलाने और अपात्रों सवर्णों को नौकरी से हटाए जाने की लड़ाई है।

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Mazdoor Morcha
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