ग्रेप के पाखंड से लूट संभव है प्रदूषण नियंत्रण नहीं

ग्रेप के पाखंड से लूट संभव है प्रदूषण नियंत्रण नहीं
October 16 15:20 2023

फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) शहर के पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त करने के लिए सिर्फ ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) लागू करने के नाम पर जुर्माना वसूलने, उद्योग, निर्माण बंद करवाने से पर्यावरण स्वच्छ नहीं होने वाला। प्रदूषण न ही सैकड़ोंं किलोमीटर दूर पराली जलाए जाने का बहाना बना कर प्रदूषण फैलाने का इल्जाम किसानों के सिर रखने से दूर होगा। पहले प्रशासन सडक़ों पर उडऩे वाली धूल, निर्माण और तोडफ़ोड़ के दौरान होने वाले पीएम 10 प्रदूषण पर नियन्त्रण  करे, साफ-सफाई और पर्याप्त बिजली-पानी आपूर्ति सुनश्चित करे तो कुछ भला सकता है।

प्रदूषण नियंत्रण के लिए प्रशासन कोई काम करता नजर नहीं आ रहा। शहर की मुख्य सडक़ें हों या हाईवे, सडक़ के किनारे धूल ही धूल है, वाहनों के गुजरने से उडऩे वाली इस धूल के गुबार सभी जगह देखे जा सकते हैं। इस धूल को बैठाने के पानी छिडक़ने नाम बिल बना बना कर जनता का पैसा डकारा जा रहा है, पानी कहीं नजर नहीं आता। नगर निगम हो या प्रशासन छिडक़ाव की मशीन, सडक़ साफ करने वाली ट्रक माउंटेड झाड़ू, वाटर स्प्रे मशीन सभी उपलब्ध हैं लेकिन इनका इस्तेमाल कागजों पर होता है जमीन पर कम। नगर निगम के अधिकारियों का दावा है कि रोजाना रात में 11 बजे से सुबह 5 बजे तक ट्रक माउंटेड झाड़ू मशीनों से सडक़ों की सफाई कराई जाती है। इसके बावजूद शहर की सडक़े धूल से पटी पड़ी हैं। ज्यादा धूल वाली जगहों पर वाटर स्प्रेयर से छिडक़ाव का भी दावा किया जाता है लेकिन ये कहीं काम करती दिखती नहीं। हां, इनके नाम पर लाखों रुपये के बिल लगाकर बंदरबांट होती है।

जेनरेटर चलाने पर पाबंदी लगा रखी है लेकिन न तो उद्योग को और न कारोबार को पर्याप्त बिजली आपूर्ति की जाती है। जेनरेटर नहीं चलाएंगे तो लाखों रुपये नुकसान होगा। अब कारोबारी, उद्यमी या तो काम बंद कर नुकसान झेलें या जेनरेटर चला कर मोटा जुर्माना भरें, प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर जुर्माना वसूल कर प्रशासन अपनी पीठ थपथपा लेगा।
धुआं रोकने के लिए उद्यम और कारोबार पर तो कड़ी रोक है लेकिन भ्रष्ट अधिकारियों को कबाडिय़ों द्वारा रोजाना जलाया जाने वाला कुड़ा कचरा नहीं दिखता। तार, लोहा, अल्युमिनियम जैसी धातुएं निकालने के लिए ये कबाड़ी प्लास्टिक, ई कचरा भी खुले आम जलाते हैं।

शहर में कृष्णा कॉलोनी, सरूरपुर इंडस्ट्रियल एरिया, सेक्टर 21 में रेलवे लाइन के समानांतर, सेक्टर 29 पुल के पास कबाड़ी खुलेआम कचरा जला रहे हैं, इस कचरे की आग से उठता काला धुआं आम आदमी को कई किलोमीटर दूर से नजर आ जाता है लेकिन ग्रेप का ड्रामा करने वाले अधिकारियों को नजर नहीं आता। इन्हें नजर आता है सैकड़ों किलोमीटर दूर जलाई जाने वाली पराली का तथाकथित धुआं। सच्चाई यह है कि अब किसान पराली नहीं जलाता क्योंकि पराली की भी बाजार में अच्छी कीमत मिलने लगी है। फायदे का सौदा होने के कारण लगभग सभी किसानों ने पराली जलानी छोड़ दी है, लेकिन अधिकारियों को तो अपनी गर्दन बचाने के लिए किसी पर तो इल्जाम रखना है।

शहर में प्रदूषण के हालात ये हैं कि बृहस्पतिवार की शाम करीब साढ़े पांच बजे ये रिपोर्टर हार्डवेयर चौक से हाईवे के लिए निकला। सडक़ पर धूल के ग़ुबार थे, जाम होने के कारण बहुत से वाहन चालक पटरी और फुटपाथ से आगे निकल रहे थे, इन वाहनों से उडऩे वाली धूल से देखना भी मुश्किल हो रहा था। जाम के कारण हार्डवेयर चौक से बाटा पुल तक पहुंचने में बारह मिनट लगे, यहां आसमान में गाढ़ा काला धुआं उठता नजर आया।

पुल के टॉप पर पहुंचे तो बाईं ओर स्थित कृष्णा कॉलोनी में रेलवे लाइन के करीब बड़ी मात्रा में जलाए जा रहे कबाड़ से यह धुआं उठता नजर आया। यह धुआं हजारों जेनरेटर से निकलने वाले धुएं से अधिक काला और खतरनाक था रबर और प्लास्टिक जलने की बदबू नाक में घुस रही थी लेकिन अधिकारियों को यह धुआं नजर नहीं आया। वरिष्ठ समाजसेवी सुरेश गोयल कहते हैं कि प्लास्टिक जलाने से बिस फिनोल सहित अन्य खतरनाक रसायन हवा में घुलते हैं, इनसे कैंसर, दमा, त्वचा रोग जैसी गंभीर बीमारियां होती हैं, आंखों के लिए भी इसका धुआं खतरनाक साबित होता है। वह कहते हैं कि अधिकारियों को उद्योग और कारोबार चौपट करना आसान लगता है न कि प्रदूषण फैलाने वाले कबाडिय़ों पर अंकुश लगाना। कृष्णा कॉलोनी का उदाहरण तो अचानक सामने आ गया। इस तरह के काम तो पूरे शहर में प्रतिदिन हो रहे हैं। यही कारण है कि शहर में सांस, कैंसर के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

शुक्रवार सुबह बाईपास रोड पर सेक्टर 29 पुल के पास भी कबाडिय़ों ने करीब एक टन कचरे में आग लगा दी। इसका धुआं भी दूर दूर तक फैला, कुछ जागरूक नागरिकों ने 112 पर कॉल किया तो वह दिल्ली पुलिस को मिला और आग बुझाने कोई नहीं पहुंचा।

सेक्टर 14 की ग्रीन बेल्ट पर कबाड़, कचरा बीनने वालों ने कब्जा कर रखा है, ये सैकड़ोंं परिवार न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं बल्कि चोरी की बिजली से इनकी दर्जनों झुग्गियां रौशन हैं। टीवी, पंखा, फ्रिज जैसी सुविधाएं चोरी की बिजली से धड़ल्ले से चलाए जा रहे हैं। इन परिवारों ने ग्रीन बेल्ट ही नहीं उजाड़ी खुले में शौच कर गंदगी भी फैलाई जा रही है। बीन कर लाए गए कचरे में से कीमती धातु आदि निकालने के लिए यहां भी छोटे-मोटे ढेरों में रोजाना आग लगाई जाती है।

स्थानीय निवासियों द्वारा बिजली निगम से लेकर प्रशासन तक सबसे शिकायत की गई लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती। अवैध बिजली के तार काट कर ले जाने के बजाय बिजली निगम के अधिकारी इन झुग्गियों से वसूली कर मुफ्त बिजली जलाने का वरदान देते हैं। बदनीयत और भ्रष्ट अधिकारियों की लूट कमाई की नीति से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले कबाड़ी तो फल फूल रहे, आम जनता, उद्यमी, कारोबारी, दुकानदार बर्बाद हो रहे हैं।

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Mazdoor Morcha
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