‘इंडिया’ के मुकाबले मोदी का टिक पाना असंभव

‘इंडिया’ के मुकाबले मोदी का टिक पाना असंभव
October 03 15:21 2023

जाति और धर्म की राजनीति करने वाले केवल अपना ही भला करते हैं

फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) राष्ट्रीय राजनीति में राहुल गांधी काफी सक्रिय हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो पहले से ही सक्रिय हैं। बीते दस सालों में भाजपा ने जो राजनीतिक क्षेत्र कब्जाया था इंडिया गठबंधन उसे तेजी से हड़प रहा है। आसार नहीं लगते कि भाजपा अगली टर्म ले पाएगी। आंकड़े बता रहे हैं कि 2019 में भाजपा को 37 प्रतिशत मत मिले थे और 63 प्रतिशत विपक्षी पार्टियों को, लेकिन वो बिखरे हुए थे। जैसे भक्तों में भगदड़ देखी जा रही है 37 प्रतिशत वोटों में बढऩे की गुंजाइश तो है नहीं। भक्तों की संख्या रोज घटती जा रही है, ऐसे भगत बाजारों में सार्वजनिक स्थानों पर आंसुओं से रोते दिख जाते हैं। समझा जा सकता है कि भाजपा के वोट दो से पांच प्रतिशत तक घट सकते हैं। न भी घटें तो भी 63 प्रतिशत का आंकड़ा छोटा नहीं है। ये 63 प्रतिशत अगर कंसोलिडेट हो जाते हंंै, एक जगह आ जाते हैं तो भाजपा और एनडीए गठबंधन को दो सीट भी मिलना मुश्किल हो जाएगी।

विश£ेषक भी बात करते हैं कि भाजपा गठबंधन 272 का आंकड़ा कैसे छुएगा, 150 में रह जाएगा,हद से हद 200 तक पहुंच पाएगा। यदि 63 प्रतिशत वोट कंसोलिडेट न हों तो उनकी बात सही हो सकती है। लेकिन अगर 63 प्रतिशत कंसोलिडेट हो गए, बेशक इसमें से मायावती के पांच से 12 प्रतिशत तक वोट निकाल दिए जाएं तब भी 50 प्रतिशत तो कंसोलिडेट होंगे, तब भी तो भाजपा नीत एनडीए को भारी संकट है। तब भी इनके लिए सैकड़ा छूना बड़ी बात होगी। इतना तो तय है कि अब भाजपा रिपीट करने की स्थिति में आती दिख नहीं रही है। कितने ही राजनीतिक पापड़ बेल लें, बीते दिनों जो भी कदम उठाए वो सारे उलटे पड़ रहे हैं।

राहुल गांधी ने भी बीते आठ नौ साल में ठोकरें खाकर, धक्के खाकर जादूगरी, मदारीगीरी यानी वो सारी एक्टिविटी जो अब तक मोदी जी कर रहे थे, उन्होंने भी सीख ली हैं। देर आए दुरुस्त आए लेकिन उन्होंने सीख ही लिया। अब तक वो जो राजनीति कर रहे थे कैजुअली, यानी कभी छुट्टियों पर जा रहे है तो कभी आराम कर रहे थे, तो कभी पार्ट टाइम राजनीति कर रहे थे। लेकिन वह देख रहे थे कि हर रोज ईडी जैसी संस्थाओं से प्रताडि़त किए जा रहे हैं, उनका राजनीतिक क्षेत्र खत्म होता जा रहा है। अब उनके सामने करो या मरो की स्थिति थी, उन्होंने समझ लिया कि कुछ करना ही पड़ेगा और करते-करते ही उन्होंने अपनी खोई हुई जमीन और खोया हुआ वकार हासिल किया और अपनी स्थिति भी मजबूत की है। क्योंकि भाजपा से जान छुड़ाना जरूरी था, अगर उनसे जान नहीं छूटती तो न संविधान बचेगा और न ही कभी चुनाव हो पाएंगे, इसलिए भाजपा का जाना तो बहुत आवश्यक है।

अब सवाल यह है कि यदि कांग्रेस नीत गठबंधन आ गया तो वो क्या करेगा? वह पहले भी तो रुक रुक कर साठ साल तक राज कर चुकी है। राहुल गांधी मदारीगीरी कर रहे हैं, कभी लाल कुर्ता पहन कर स्टेशन पर कुलियों के बीच कुली बन गए, कभी खेत में जाकर धान बोने लग गए टै्रैक्टर चलाने लगे, कभी लद्दाख में जाकर कुछ कर रहे हैं तो कभी आजादपुर मंडी में टमाटर बेचने वाले के साथ खड़े हैं, उसको घर बुला कर खाना खिला रहे हैं। ये सारी मदारीगीरी उन्होंने सीख ली है, ठीक भी है, लेकिन उसके बाद करना क्या है उसका कोई लेआउट उनके पास नहीं है। वह कुलियों के बीच चले गए तो कुलियों को देंगे क्या? कुली के बच्चों को शिक्षा और परिवार को स्वास्थ्य से संबंधित क्या सुविधाएं देंगे, कुलियों को स्टेशन पर क्या सुविधाएं देंगे? उन्होंने आज तक कोई घोषणा नहीं की।

स्कूलों और अस्पतालों की जनरल पोजिशन पर क्या करेंगे। आज कोई अस्पताल ऐसा नहीं है कोई स्कूल ऐसा नहीं है जहां पर स्टाफ के स्थान रिक्त न हों, जहां पर ढंग की पढ़ाई होती हो या ढंग का इलाज होता हो, शिक्षा और स्वास्थ्य के मामले में आप कतई शांत हैं। आपने जाकर खेत में धान बो दिया ट्रैक्टर चला दिया, ड्रामा अच्छा हो गया। ठीक है, लेकिन लांग टर्म में आप क्या करेंगे, किसानों का देने क्या जा रहे हैं? आप एमएसपी की गारंटी दे पाएंगे, और अगर दे दी तो क्या उसे लागू कर पाएंगे? देहात में जो स्थितियांं हैं, किसानों को जो समस्याएं हैं उनके बारे में आपका प्लान क्या है, उस पर खामोशी है।

मोदी-शाह की जोड़ी ने जो धन देश लूट कर और जनता से निचोड़ कर अपने खजानों में और अपने पूंजीपति मित्रों के खजानों में भर दिया वो निकालने के लिए आपने क्या रास्ते अख्तियार किए इसके बारे में आप कतई चुप हैं। असली बात तो आपको उस पर करना चाहिए वो आप नहीं कर पा रहे हैं, और लगता भी नहीं कि ये उस पर कुछ करेंगे। उनको चाहिए कि उसके बारे में कोई बयान दें।

पिछले दस साल में भाजपा और संघ ने जो जहर के बीज गहरे बोए हैं उनके मद्देनजर समझा जाए तो अगर इंडिया गठबंधन सत्ता में आ भी जाएगा तो भी उसके लिए राज करना इतना आसान नहीं होगा। क्या ये इतनी सख्ती से पेश आएंगे जितनी सख्ती से भाजपा ने कानून का दुरुपयोग करके जनता को निचोड़ा है। अगर आप उनसे उतनी सख्ती से नहीं निपट पाएंगे तो उनके बोए हुए जहर के जो बीज उगेेंगे और उन पर जो फल आएंगे वो आपको जीने नहीं देंगे, देश को जीने नहीं देंगे, इस संबंध में आपने आज तक कोई शब्द कहे नहीं हैं, अगर सत्ता में आए तो उनसे कैसे निपटेंगे इस पर आप पूरी तरह खामोश हैं।

देश की राजनीति में पार्टियों के सत्तासीन होने और सत्ता से बाहर होने का एक क्रम चल रहा है। 1977 में इमरजेंसी के बाद पूरा जनता दल एक हुआ और तमाम पार्टियों ने मिल कर कांग्रेस का विरोध किया, कांग्रेस हटाओ देश बचाओ और कांग्रेस को जनता ने हटा दिया। तमाम पार्टियां एक हो गईं, दो-ढाई साल में अपना जलवा दिखा दिया और कांग्रेस को फिर वापस ले आए। कांग्रेस फिर वापस आई, उसके बाद ये फिर आए। यानी अगर इस बार ये खराब लगा तो उसको ले आओ और उससे तंग आ गए तो पहले वाले को वापस ले आओ, यानी अदला बदली चलती रहेगी। जनता ने भी कोई तीसरा विकल्प होने की जरूरत कभी समझी नहीं, यानी एक से तंग आए तो दूसरे को चुन लिया, यह व्यवस्था स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए अच्छी नहीं है। इससे निपटने के लिए जब तक तीसरा विकल्प तैयार नहीं किया जाएगा तो यह दुर्दशा हमेशा बनी ही रहेगी, खाली इनके भरोसे रहा जाना अपने आप में पर्याप्त नहीं है।

इंडिया गठबंधन से निपटने के लिए अब भाजपा-आरएसएस के पास कुछ बचा नहीं है, ले-दे के वही हिंदू-मुस्लिम पर आ गए हैं, अब एक नया सिलसिला सनातन भी ले आए हैं। जनता को डरा रहे हैं कि गैर भाजपाई दल सनातन को उखाड़ कर फेकना चाहते हैं। सनातन तो न मुगलों से उखड़ा और न ही अंग्रेज उखाड़ पाए, तो इनसे क्या उखड़ेगा और किसी की इसको उखाडऩे की नीयत भी नहीं है। हां, सनातन को उखाडऩे का प्रयास महर्षि दयानंद सरस्वती ने किया था। उन्होंने आर्य समाज की स्थापना कर सनातन में जो मूर्ति पूजा और पाखंड थे, बुराइयां थीं उनका पर्दाफाश किया था। उन्होंने एक ऐसा समाज बनाया था जो सनातन को उखाडऩे की बात करता था, लेकिन आज कोई ऐसा नहीं है जो सनातन धर्म को उखाडऩे के लिए आया हो, इसके लिए किसी को फुर्सत नहीं है।

गौरतलब है कि 2013-14 में जब मोदी को सत्ता हथियानी थी तब उसने कोई घोषणा नहीं की थी कि मैं हिंदू धर्म के लिए आ रहा हूं या मैं सनातन धर्म के लिए आ रहा हूं, राम मंदिर के लिए आ रहा हूं, ये सब एजेंडा में नहीं था। उस समय तो महंगाई, बेरोजगारी, सौ दिन में ये कर दूंगा, अच्छे दिन आएंगे, सारे दुख दूर हो जाएंगे और महिला सुरक्षा यानी दुनिया भर की वो लुभावनी बातें कही गई थीं जिनका आज कहीं जिक्र नहीं है। जो बातें अपने एजेंडा में लेकर आए थे वो तो आप भूल गए, वो तो जुमले थे। वो जुमलेबाजी भूल कर अब आप धर्म के रक्षक बन गए हैं, गो रक्षक बन गए हैं। गोरक्षा के नाम पर लोगों की मॉब लिंचिंग करने का ठेका ले लिया है। बीते दिनों तामिलनाडु के मुख्यमंत्री के बेटे दयानिधि स्टालिन और इंडिया अलायंस के सदस्य ने सनातन के बारे में कुछ कहा। उन्होंने तामिल भाषा में सनातन के बारे कुछ कहा जिसे आम हिंदी भाषी या गैर तमिल भाषी जानता समझता नहीं है।

इन्होंने उसका ट्रांसलेशन करके बताया कि अरे वो तो सनातन को उखाडऩे की बातें कर रहे हैं और वो इंडिया अलायंस में है। सच्चाई ये है कि वहां के लोग सनातन के पक्ष में रहे ही नही हैं। पेरियार ने तो अपने स्टेच्यू के नीचे सनातन-हिंदू धर्म की सारी बुराइयां लिख रखी हैं और वे लोग खुल कर विरोध करते है, हमेशा से करते आए हैं। इसके लिए हिंदूवादी-सनातन वादी कोर्ट तक जा चुके हैं। कोर्ट ने कहा कि ये इनकी विचारधारा है ये इसे फॉलो करेंगे आप अपनी विचारधारा को मानिए आपको छूट है, उन पर आप पाबंदी नहीं लगा सकते। दरअसल जो देश के असली मुद्दे हैं उन पर कोई बात नहीं करना चाह रहा, ये सनातन की रक्षा का धंधा चला रहे हैं। इससे पहले कभी सनातन पर संकट नहीं था अब संकट आ गया है क्योंकि इनके पास कोई दूसरा मुद्दा रहा नहीं।

महिला आरक्षण का इनका तीर भी खत्म हो गया। अब ये ओबीसी की बात भी करते हैं, ओबीसी के नाम पर कब तक लूटोगे। दावा किया जाता है कि ओबीसी प्रधानमंत्री है, अब प्रधानमंत्री बनने से ओबीसी को क्या लाभ मिल गया, वो तो जहां खड़ा था वहीं खड़ा है। आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बना दिया, इससे देशभर के आदिवासियों को क्या मिल गया? उसकी जो हालत पहले थी वैसी ही आज भी है। इससे पहले दलित रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बना दिया इससे दलितों को क्या मिला? कुछ नहीं। इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं तो क्या सारी महिलाओं का उद्धार हो गया? नहीं। इसी संदर्भ में राहुल गांधी का जिक्र किया जाना प्रासंगिक है। राहुल गांधी कहते हैं कि मैने 90 सेके्रटरियों की सूची देखी है जिनमें केवल तीन ही ओबीसी हैं, और पूरे देश के बजट का केवल पांच प्रतिशत ही ओबीसी पर खर्च करते हैं। सवाल उठता है कि अगर पूरे 90 ओबीसी सेके्रटरी होते तो क्या ओबीसी का कल्याण हो जाता? यह सब वाहियात धारणाएं हैं, आपके राज में पूर्व की कांगे्रसी सरकारों में व अन्य राज्यों में कितने ओबीसी थे।

सत्ता में आने के बाद किसी को कुछ नहीं दिखता, फिर तो पॉलिसी पूंजीपति के हक में चलती हैं। जो पंूजीवादी या उद्योगपति कहेंगे उनके लिए नीतियां बनती हैं ये जरूरी नहीं है कि आप ने किसी जाति विशेष के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री बना दिए तो उस जाति का भला हो जाएगा। अब मोदी ने बीसियों ओबीसी मंत्री बना दिए लेकिन उनके पल्ले कुछ है क्या? यहां तक मोदी खुद को ओबीसी बताते हैं तो इससे ओबीसी को कुछ मिला या मिलेगा। ये सब जाति और धर्म के नाम पर लोगों को बांट कर उन्हें बेवकूफ बना कर सत्ता से चिपकने का जुगाड़ है,इसके अलावा कुछ नहीं है। इन सबसे बचना चाहिए और भलेखे में नहीं रहना चाहिए।

न जाति और न धर्म, असल में तो वर्ग दो ही होते हैं एक कमाने वाला और दूसरा लूटने वाला बीच में एक जमात मिडिल क्लास होती है जो अपने फायदे नुकसान के हिसाब से अपनी पोजिशन बदलती रहती है। मुख्य रूप से देखा जाए तो करीब अस्सी प्रतिशत लोग वो हैं जिनको लूटा जा रहा है और असली लुटेरा वर्ग केवल पांच-सात प्रतिशत हैं। बाकी बचे जो लोग हैं वो वक्त के मुताबिक थाली के बैंगन की तरह कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ पल्ला बदलते रहते हैं, इसी में लगभग ब्यूरोक्रेसी आ जाती है।

जाति और धर्म का केवल मुलम्मा है, जिसको सत्ता में बने रहने के लिए लोग अपनी तरह से इस्तेमाल करते रहते हैं। चाहे इंंडिया अलायंस आ जाए या भाजपा आए। हां भाजपा ने अपने लूट तंत्र को इतनी तेज गति से बढ़ा दिया कि अब कांग्रेसी ही भले लगने लगे हैं। सारे काम कांग्रेसी भी करते थे, वो भी देश को लूट रहे थे, गरीब का शोषण वो भी कर रहे थे लेकिन भाजपा ने तकरीबन सभी संवैधानिक संस्थाओं का बेड़ा गर्क कर दिया, उन सबको बिलकुल ठिकाने लगा दिया, यहां तक कि न्यायपालिका को भी इन्होंने नहीं छोड़ा। जो उनका दिल करे वही कानून है, उन्हें कानून, संविधान की कोई चिंता नहीं है सब गर्दम गर्दा कर रखा है।

अगर इनको न हटाया गया तो फिर शायद इस देश का बचना भी मुश्किल है, अखंडता तो दूर देश खंड खंड होने की ओर बढ़ता जा रहा है, इनके साढ़े नौ साल के कार्यकाल के जो कारनामे हैं वह तो यही इंगित कर रहे हैं। राहुल और उनके इंडिया अलायंस से हमें बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है लेकिन इस वक्त वही एक विकल्प बचा है। क्योंकि समय रहते हम एक नया विकल्प बना नहीं सकेे, मजबूरी में जनता को उन्हीं को चुनना पड़ रहा है।

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Mazdoor Morcha
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