फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) हरियाणा कौशल रोजगार निगम के तहत संविदा पर भर्ती नगर निगम के जूनियर इंजीनियरों की आय तो महज 33 हजार रुपये प्रति माह है लेकिन इनकी जीवनशैली किसी लखपति से कम नहीं है। सिफारिश और भाई-भतीजावाद के जोर पर नगर निगम में पद हासिल करने वाले जेई के खिलाफ अधिकारी भी कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं करतेे। कई जेई तो ठेकेदारों से पार्टनरशिप किए हैं जबकि कुछ तो छद्मनाम से खुद ही ठेकेदारी कर रहे हैं। समझा जा सकता है कि ठाठ-बाट वाले अफसरों के होते हुए नगर निगम दौ सौ करोड़ के बड़े और हर सप्ताह किसी छोटे घोटाले का गढ़ कैसे बना।
मुख्यमंत्री खट्टर की ईजाद हरियाणा कौशल रोजगार निगम (एचकेआरएन) के जरिए नगर निगम में 33 जेई संविदा पर तैनात हैं। इनका वेतन वर्तमान में 33 हजार रुपये प्रतिमाह बताया जा रहा है। ये सभी जेई दस से बीस लाख रुपये कीमत की कार के मालिक हैं, अधिकतर के पास एक से डेढ़ लाख रुपये कीमत वाले स्मार्टफोन हैं तो महंगे गैजेट्स भी हैं। महंगे गैजेट्स से लेकर ब्रांडेड कपड़े और अधिकारियों से भी महंगी कारों से घूमने वाले अधिकतर जूनियर इंजीनियर नियमों को ताक पर रख मनमर्जी से काम करते हैं।
भाजपा नेताओं के करीबी और उनकी सिफारिश पर नौकरी पाए इन इंजीनियरों को लूट कमाई वाले पद भी दे दिए गए। केंद्रीय मंत्री किशन पाल गूजर के करीबी बताए जाने वाले प्रवीण बैंसला लंबे समय से तोडफ़ोड़ विभाग संभाले हैं। कहने को तो यह नगर निगम के जेई हैं लेकिन चलते सत्ता के इशारे पर हैं, यानी तोडफ़ोड़ के दौरान इन्हें भी विपक्षी पार्टी के समर्थकों का अतिक्रमण दिख जाता है लेकिन आका और उनके चाटुकारों का नहीं। लगातार विवाद में रहने के बावजूद किसी निगमायुक्त में संविदा के इस जेई से तोडफ़ोड़ का चार्ज लेने की हिम्मत नहीं हुई। पूर्व निगमायुक्त जीतेंद्र दहिया ने तो बडख़ल विधानसभा क्षेत्र के साथ उसे एनआईटी विधानसभा क्षेत्र का तोडफ़ोड़ इंचार्ज बना दिया था। तोडफोड़ विभाग का यह पद अत्यधिक मलाईदार समझा जाता है।
इसी तरह जेई मनोज को सभी रैनीवेल का चार्ज सौंपा गया था, जेनरेटर चलाने के नाम पर प्रतिमाह लाखों रुपये की हेराफेरी करने के बावजूद उसे इस पद पर बना रहने दिया गया। नगर निगम में सबको मालूम है कि रैनीवेलों के मेनटेनेंस के ठेके भी छद्मनाम से मनोज ने ही ले रखे हैं। मनोज की ही तरह निगम के अनेक जेई ठेकेदारों के पार्टनर हैं। अपने चहेते ठेकेदार को काम दिलाने के कमीशन के साथ ही पार्टनरशिप का मुनाफा भी काट रहे हैं। स्कूटी पर चलने वाले संदीप कुमार ने जेई बनते ही शहर की पॉश सैनिक कॉलोनी में महंगा घर खरीद लिया। शायद यही कारण है कि नगर निगम आए दिन कंगाल बनता जा रहा है जबकि अधिकारी व कर्मचारी मालामाल है।
सरकारी नियम के मुताबिक कोई भी अधिकारी या कर्मचारी बिना आला अधिकारी की अनुमति ड्यूटी स्टेशन नहीं छोड़ सकता। नगर निगम के ये रंगबाज जेई ड्यूटी समय खत्म होते ही अपनी महंगी कार में बैठ कर दूसरे जिलों को कूच कर जाते हैँ। जेई मनोज, देवेंद्र, विपिन, अरुण, दिनेश आर्य, परवेज आलम और कपिल रोजाना पलवल से आते- जाते हैं, यानी प्रतिमाह 3690 रुपये तो केवल टोल टैक्स के रूप में चुका देते हैं, पेट्रोल-डीजल का खर्च अलग। जेई अजीत बंचारी से, रविंदर मिंडकौला से, वीर सिंह जनौली से तो विपिन कुमार भगोला से आते हैं। जेई शिवकुमार तो उत्तर प्रदेश के जेवर से प्रतिदिन कार से आते जाते हैं।
खैर, संविदा पर तैनात ये जेई तो जिला मुख्यालय छोड़ेंगे ही जब अतिरिक्त निगमायुक्त गौरव आंटिल ही रोजाना गुडग़ांव भाग जाते हैं। ओल्ड फरीदाबाद नगर निगम में वीर सिंह नामक व्यक्ति एचकेआरएन से तेनात नहीं होने के बावजूद बीते छह माह से बतौर जेई काम कर रहा है, जबकि उसको वेतन नहीं मिलता, जाहिर है अधिकारियों ने उसे उगाही के लिए यह अवैतनिक पद दे रखा है।
नगर निगम में भ्रष्टाचार का रोना रोने वाले सीएम खट्टर और उनका एंटी करप्शन ब्यूरो दोनों इतने कमजोर हैं कि सत्ता के घाघ नेताओं और उनके इशारों पर चलने-पलने वाले भ्रष्ट अधिकारियों पर अंकुश लगाने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाते। रोना रोने से तो निगम में न भ्रष्टाचार खत्म होगा और न ही भ्रष्ट अधिकारी काबू में आएंगे। अगर खट्टर की नीयत ठीक होती और वाकई भष्टाचार से निपटना चाहते तो यह तो मिनटों-सेकेंडों का काम है, अफसरों और कर्मचारियों की क्या औक़ात लेकिन इसके लिए साफ नीयत चाहिए, सब जानते हैं कि सीएम ग्रीवेंस कमेटी की बैठक के बहाने हर महीने अपने एजेंट से मिलने आते हैं।