लूट कमाई से फुरसत मिले तब तो करें निरीक्षण फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) शहरवासी खाद्य सामग्री के नाम पर ज़हर खा लें या घटिया खाकर बीमार हो जाएं, लूट कमाई कर जेबें भरने में मशगूल भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के अधिकारियों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। पड़े भी क्यों, दुकानदारों से महीने की खर्ची वसूलने के साथ पर्व-त्यौहारों पर अधिकारियों के घर मिठाई पहुंचाने के लिए पर्ची जारी करेंगे तो फिर उन्हें भी जनता को लूटने के लिए नकली, घटिया और मिलावटी सामग्री बेचने की छूट देना तो बनती है। धीरज नगर में चल रही नकली सोया चाप बनाने की फैक्ट्री एक उदाहरण है, इस तरह की सैकड़ों फैक्ट्रियां, दुकानें इन अधिकारियों की देखरेख में धड़ल्ले से चल रही हैं।
नागरिकों को असली, बिना मिलावट और उम्दा खाद्य सामग्री उपलब्ध हो यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी एफएसएसएआई की है। बावजूद इसके, अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं करते। बीते सप्ताह मुख्यमंत्री उडऩ दस्ते ने पल्ला क्षेत्र के धीरज नगर में नकली सोया चाप बनाने वाली फैक्ट्री पर छापा डाला। काम तो एफएसएसएआई का था लेकिन खर्ची बंधी होने की वजह से उन्हें यह फैक्ट्री नजर नहीं आती थी। सीएम फ़्लाइंग स्क्वाड के अधिकारियों की सूचना पर पहुंचे फूड एंड सेफ्टी ऑफिसर सचिन शर्मा ने सैपलिंग करने और मालिक को लाइसेंस जमा करवाने का फरमान सुना कर औपचारिकताएं पूरी कीं।
फैक्ट्री का लाइसेंस होना इसका सुबूत है कि एफएसएसएआई अधिकारियों को इसकी जानकारी है, बावजूद इसके, उन्होंने कभी यह देखने की जहमत नहीं उठाई कि यहां चाप बनाने में सोयाबीन की जगह घटिया मैदे और गंदे पानी का इस्तेमाल हो रहा है। जो काम उन्हें करना चाहिए था वो मुख्यमंत्री उडऩ दस्ते को करना पड़ा।
इस तरह की जहरीली और घटिया खाद्य सामग्री धीरज नगर के साथ शहर में अनेकों जगहों पर बनाई जा रही हैं। एक साल पहले भी शहर में नकली सोया चाप बनाने की फैक्ट्री पकड़ी गई थी। बीते वर्ष ही सीएम फ्लाइंग दस्ते ने सूरजकुंड क्षेत्र में नकली देसी घी बनाने की फैक्ट्री पकड़ी थी। इन दोनों ही मामलों में एफएसएसएआई अधिकारी जांच के लिए सैंपल भेजने और नोटिस जारी करने की औपचारिकता के बाद शांत बैठ गए, दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई आज तक नहीं की गई।
जानकार बताते हैं कि सैंपलिंग करना भी मैच फिक्सिंग से ज्यादा कुछ नहीं, अधिकारियों को प्रति माह कम से कम पांच खाद्य सामग्रियों की सैंपलिंग करनी होती है। खर्ची देने वाले दुकानदार को छूट होती है कि वह अपनी मर्जी से सैंपलिंग के लिए खाद्य सामग्री दे। दुकानदार भी सैंपलिंग कराने के लिए अलग से शुद्ध खाद्य सामग्री बना कर खुशी-खुशी पैक करा देता है। हां, यदि कोई दुकानदार खर्ची देने में कोताही बरतता है तो फिर अधिकारी अपनी मर्जी से खाद्य सामग्री भरने की धमकी देते हैं, खर्ची मिलते ही सब ठीक हो जाता है। मोटी रकम चुकाने वाले, जिनमें अधिकतर नकली सोया चाप, नकली देसी घी बनाने वाले, नकली खोए की मिठाई बनाने वाले कारखानों के मालिक होते हैं उनकी तरफ तो प्राधिकरण की नजर जाती ही नहीं। अब यदि सीएम फ्लाइंग या किसी और विभाग ने छापा डाल दिया तो फिर मजबूरी में औपचारिकताएं पूरी की जाती हैं लेकिन आगे की कार्रवाई लंबित ही हो जाती है।
घटिया, नकली और मिलावटी खाद्य सामग्री बनाने वालों पर अंकुश नहीं लगाए जाने के सवाल पर जिला अभिहित अधिकारी पृथ्वी सिंह कम स्टाफ और कई जिलों की जिम्मेदारी होने का बहाना बनाते हैं। उनके अनुसार इसके बावजूद प्रतिमाह न्यूनतम पांच से दस सैंपल भरे जाते हैं। यानी अधिकारी सैंपल भरने के लिए फील्ड पर निकलते हैं। अगर ऐसा है तो इन अधिकारियों को धीरज नगर और इसी तरह चलने वाली सैकड़ों फैक्ट्रियां नजर नहीं आतीं या जानबूझ कर इन्हें अनदेखा किया जाता है।
अब धीरज नगर में फैक्ट्री के खिलाफ कार्रवाई करने के बाद एफएसएसएआई अधिकारी फिर से रूटीन काम में जुट गए हैं, जबकि चाहिए ये था कि अधिकारी शहर में नहीं तो कम से कम धीरज नगर और पल्ला क्षेत्र में चल रही ऐसी अनेक चाप, पनीर, छेना, रसगुल्ला, रसोई मसाले आदि बनाने वाली अन्य फैक्ट्रियों का निरीक्षण करते। सच्चाई ये है कि ऐसी फैक्ट्रियां इन अधिकारियों की देखरेख में चल रही हैं, मोटी कमाई का जरिया इन फैक्ट्रियों पर तभी तो कार्रवाई नहीं होती।
यदि सरकार वास्तव में ही जनता को मिलावटी एवं दूषित खाद्य सामग्रियों से बचाना चाहती है तो इस काम के लिए बने विभाग की मिलीभगत पकड़े जाने पर उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करती। बताने की जरूरत नहीं है फ्लाइंग स्कवाड के नाम पर छोटी सी पुलिस टुकड़ी जब आए दिन इस तरह के मिलावटी खाद्य उत्पादकों को पकड़ती है तो इस काम के लिए विभाग के अधिकारियों से कोई पूछताछ क्यों नहीं की जाती। इस छोटी सी टुकड़ी द्वारा पकड़े जाने का अर्थ यह समझा जा सकता है कि संबंधित विभाग वालों की मिलीभगत से ही मिलावट का काला धंधा चल रहा है।