‘नूह में जो हो रहा है वह नस्ली सफाए वाली हिंसा है’

‘नूह में जो हो रहा है वह नस्ली सफाए वाली हिंसा है’
August 15 15:43 2023

क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा टीम
नूह की हिंसा और ‘बुलडोजऱ आतंक’ का जायज़ा लेने, पीडि़तों का दु:ख-दर्द बांटने, उन्हें भरोसा दिलाने कीे भले उन्मादी भगवा फ़ासिस्ट आतंकी, उनकी नस्ल मिटा देने पर उतारू हैं, देश की मेहनतकश अवाम पूरी शिद्दत से उनके साथ है; क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा की 3 सदस्यीय टीम, 8 अगस्त को नूंह पहुंची। बीबीसी के पत्रकार, संदीप रावजी भी टीम के साथ थे।

बेहद तकलीफ़ के साथ नोट किया कि 6 अगस्त को, पंजाब एवंं हरियाणा उच्च न्यायलय द्वारा स्वयं संज्ञान लेते हुए ‘सरकारी बुलडोजऱ आतंक’ को तुरंत रोकने का हुक्म सुनाते वक्त की गई, ये टिप्पणी बिलकुल सटीक है, कि “बगैर कोई नोटिस दिए, न्याय-क़ानून की परवाह किए, एक विशेष समुदाय को निशाने पर लिया जा रहा है। ये नस्ली सफाए की हिंसक कारस्तानी है, इसे तुरंत रोका जाए.” ‘देर आयद, दुरुस्त आयद’। अदालत ने रोग को बिलकुल सही पहचाना लेकिन बहुत देर कर दी। बुलडोजऱ को औज़ार की तरह इस्तेमाल करते हुए गऱीब, लाचार, मेहनतकश अवाम के दिलो-दिमाग पर ‘सत्ता का आतंक’ क़ायम करने के इस जघन्य अपराध ने बहुत गहरे ज़ख्म दिए हैं। सबसे तक़लीफ़देह बात ये है कि बुलडोजऱ द्वारा जर्मनी की तजऱ् पर चलाए जा रहे नस्ली सफाए की यह गैरकऩूनी, संविधान-विरोधी, असभ्य, हिंसक कार्रवाई तीन साल पहले, काले नागरिकता क़ानून विरोधी शानदार तहरीक को कुचलने के लिए, यूपी में शुरू हुई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आज तक इसकी कोई दख़ल नहीं दी।

शहीद-ए-आज़म भगतसिंह ने सिखाया था “अगर कोई सरकार, जनता को उसके बुनियादी अधिकारों से वंचित रखती है, तो जनता का ये अधिकार ही नहीं बल्कि आवश्यक कर्तव्य बन जाता है कि ऐसी सरकार को उखाड़ फेंके।” मौजूदा सरकारों ने अन्याय, अत्याचार का विरोध करने के बुनियादी, इंसानी और संवैधानिक अधिकारों को कुचलने के लिए और गऱीब अवाम को जन-आंदोलनों से दूर रखने के मक़सद से, उनमें दहशत गाफि़ल करने के लिए बुलडोजऱ के अलावा एक और औज़ार भी ईजाद किया है। वह है, आंदोलनों के दौरान, सरकारी संपत्ति को हुए कथित नुकसान की भरपाई, आंदोलनकारियों से करने का क़ानून। हमने देखा है कि घोर संविधान-विरोधी काले नागरिकता क़ानूनों के विरुद्ध हुए आंदोलनों के बाद, गऱीब रिक्शा चालकों को 10-10 लाख के नोटिस थमाए गए थे। कई तो उनके डर से घर छोडक़र ही भाग गए थे। मंहगाई, बेरोजग़ारी में पिसते जा रहे और समाज में नस्ली हिंसा फैलाए जाने के विरुद्ध लोग, आंदोलन ना करे, दहशत में कांपते, अपने घरों में दुबके रहें, इसी मंशा से पारित हुए ‘भरपाई के ऐसे कानूनों’ को अदालतों ने रद्द करना चाहिए, क्योंकि ये असंवैधानिक हैं।

क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा, फऱीदाबाद और बीबीसी पत्रकारों की टीम, जब नूह से 12 किमी दूर, केएमपी एक्सप्रेस वे से नूंह एग्जिट पर, रहवासन तिराहे पर पहुंची, तो भारी पुलिस बंदोबस्त और मीडिया का हुज़ूम नजऱ आया। सभी गाडिय़ों को रोक लिया गया। थोड़ी देर बाद उसकी वज़ह मालूम पड़ी। कांग्रेस सांसद दीपेंदर हुड्डा और हरियाणा कांग्रेस प्रमुख उदयभान के नेतृत्व में गाडिय़ों का क़ाफि़ला वहां पहुंचा था जिसमें कांग्रेस के कई विधायक भी थे। पुलिस और उनके बीच गरमागरम बहस चलती रही। कांग्रेसियों का कहना था कि उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, महिमा सिंह से अनुमति ली है कम से कम एक गाड़ी में 4 लोगों को तो जाने दो। पुलिस ने कहा, ‘बिलकुल नहीं’। कांग्रेसियों ने वहींं एक पत्रकार वार्ता की जिसमें खट्टर और मोदी सरकारों के हिटलरी चरित्र को उजागर किया और फिर जिस रास्ते से आए थे उसी रास्ते से लौट गए। उनके दूर निकल जाने के बाद, पुलिस ने हमारी गाड़ी समेत सभी गाडिय़ों को जाने दिया।

रहवासन तिराहे पर, लगभग 40 मिनट की इस पुलिसिया रुकावट के दौरान, इकट्ठे  हुजूम में मौजूद लोगों के बयानों से नूंह के ‘सरकारी बुलडोजऱ आतंक’ की ही नहीं बल्कि नूंह की इस हिंसा को कैसे गढ़ा गया, इसके अपराधी कौन हैं, पूरी कहानी स्पष्ट हो गई। धौज़ निवासी एक व्यक्ति ने जो नूंह में चौकीदारी करते हैं, अपना नाम न बताने की शर्त पर बोलना शुरू किया तो अंदर घुमड़ रहा भावनाओं का सैलाब बह निकला। “आप यह बताओ कि हमारे दो बच्चों को जिंदा जलाकर मारने वाला, जाने कितने लोगों की बेरहमी से बेदम होनेे तक पिटाई करने वाला, मोनू मानेसर अगर हमारे घर ही आने का ऐलान कर रहा हो तो हमें क्या करना चाहिए था? एक दूसरा शोहदा बिट्टू बजरंगी फऱीदाबाद से ललकार रहा था ‘तुम्हारा जीजा आ रहा है, फूल माला तैयार रखना। फिर मत कहना कि बताया नहीं था’। इन दोनों ने ही आग लगाई है। यात्रा तो जाने कब से निकल रही है। हम तो उसमें शिरकत किया करते थे। हमारे इलाक़े में 1947 के बाद कभी दंगा नहीं हुआ। यहां के बहुत सारे गावों में, हिन्दुओं के 4-5 घर ही हैं। उनसे जाकर पूछो, कभी उन पर कोई ज़ुल्म हुआ हो।”

घृणित, दरबारी मीडिया का जिक़्र आते ही, कई स्थानीय युवा एक साथ बोल पड़े, “उन हरामखोरों की तो बात ही ना करो।” जैसे ही उन्होंने कहा “हम तो हर साल इस यात्रा का स्वागत किया करते थे” वहां मौजूद, एक उन्मादी एंकर बोल पड़ा, ‘अच्छा, तो आप लोग यात्रा का पत्थरों से स्वागत करते थे”। देखो “वह नस्ल, यहां भी मौजूद है।” एंकर के भेष में वह दंगाई मीडिया-कर्मी, झटपट कांग्रेसियों के जमावड़े की ओर खिसक लिया।

“हम अपने नाम क्यों नहीं बता रहे, वह भी सुन लो। हमारे सैकड़ों युवक गिरफ्तार हो चुके हैं। सभी जवान लडक़े गांव छोडक़र भाग गए। पुलिस, किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है। पुलिस ने मोनू मानेसर और बिट्टू बजरंगी को गिरफ्तार क्यों नहीं किया? न कोई दंगा होता, न हमारे घरों पर बुलडोजऱ चलते, न हमारे बच्चे अपने घर छोडक़र दर-दर भटक रहे होते।”

सोशल मीडिया, खास तौर पर यू-ट्यूब एकल चैनेलों ने पूरे माशरे को खबरों से इतना अपडेट कर दिया है कि छंटे हुए अपराधी नासिर और जुनैद की हत्या के आरोपी, अत्याधुनिक हथियारों से लैस रहने वाले और आधिकारिक तौर पर ‘फऱार’ मोनू मानेसर के बचाव मे हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज का यह बेशर्म बयान भी लोगों की जुबान पर था। “मोनू मानेसर तो बस श्रद्धालुओं से यात्रा में आने को बोल रहा था। उसने दंगे कहां भडक़ाए हैं”। लोगों के अंदर का गुबार ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा था। “ये मत सोचना की सिफऱ् मुसलमान ही मारे जाएंगे। महिला पहलवानों के मामले में क्या हुआ? बृज भूषण तो मुसलमान नहीं है! जाट आरक्षण वाले आंदोलन के वक़्त क्या हुआ, याद करो। जो भी इन भाजपाइयों के रास्ते में आएगा, उसके साथ ये यही सलूक करेंगे। भ्रष्टाचारी और बलात्कारी बस तब तक ही गुनाहगार है, जब तक वह भाजपा में शामिल नहीं हुआ, उसके बाद वह संत हो जाता है!”

शहर के जितना नज़दीक पहुंचते गए तबाही के मंजऱ उतने ही स्पष्ट होते गए। सडक़ के दोनों ओर मौजूद टपरियां, खोखे, रेहड़ी-पटरियां, झोपड़ी-नुमा ढाबे, बुलडोजऱों द्वारा नेस्तोनाबूद कर दिए गए हैं। बरसात की वजह से चिपकी राख गवाही देती रही कि गऱीबों का पेट भरने के इन आसरों को ढहाने से पहले जलाया गया था। समाज के एक दम किनारे पर रहने वाले धूप, धूल और धुंए के बीच दिनभर खटकर किसी तरह दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ करने वाले ये गऱीब, असंगठित, मेहनतकश, हर हिंसा के पहले शिकार होते हैं। बाद में शासन के आतंक के निशाने पर भी ये ही रहते हैं। इन्हीं की थोक में गिरफ्तारियां होती हैं। हर, एफआईआर में चंद नामों के बाद लिखा होता है, ‘और अन्य’। ये गऱीब ही ‘और अन्य’ हैं। इनमें कितने ही, पुलिस की गिर$फ्तारी के खौफ से, वहां से भाग जाते हैं, और फिर कभी नहीं लौटते। पुलिस ने जो सैकड़ों गिरफ्तारियां अभी तक की हैं, हालांकि पुलिस ने इस प्रश्न का जवाब देने से मना कर दिया कि अभी तक कुल कितनी गिरफ्तारियां हुई हैं; उनमेंं अधिकतर ये,‘और अन्य’ ही हैं।

हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की मेवात की तहज़ीब दर्शाता एक बोर्ड भी नजऱ आया। भारत का सबसे बड़ा ग़ैर राजनीतिक मंच; ‘जय हिन्द मंच’ अध्यक्ष सुरेश शर्मा, नूंह अध्यक्ष लियाक़त अली, जिला महासचिव मोहम्मद कासिम बिलाल तथा अंशुल सैनी।

8 अगस्त को नूंह में कर्फ्यू नहीं था लेकिन दुकानें इस तरह बंद थीं, सडकों पर ऐसा सन्नाटा पसरा था, मानो  कर्फ्यू  लगा हो। थोड़ी देर बाद हम ऐसी खूबसूरत हरी पहाडिय़ों मानो हरी मख़मल बिछी हो, से घिर ‘शहीद हसन खान मेवाती गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल’ पहुंचे। यही वह जगह है, जहां 31 जुलाई को हुई हिंसा का तांडव हुआ था। उसके बाद सरकारी बुलडोजऱ तबाही का केंद्र भी यही है। तबाही का मंजऱ देखकर लगा मानो हम युक्रेन के युद्धग्रस्त क्षेत्र या सीरिया में पहुंच गए हों। रास्ते में कही चाय की टपरी भी खुली नहीं मिली थी और चाय की तलब बेचैन कर रही थी।

मेडिकल कॉलेज गेट पर तैनात पुलिस कर्मियों से पूछा तो उन्होंने बताया अंदर कैफेटेरिया खुला है लेकिन पैदल जाना होगा, गाड़ी अंदर नहीं जाएगी। चाय के स्थानों पर राजनीतिक चर्चा ना हो मुमकिन नहीं। कैफेटेरिया के बाहर बीड़ी का आनंद ले रहे, सुरक्षा गार्ड की ख़ाकी पोशाक में बैठे एक युवक से हिंसा की जानकारी लेनी चाही। शुरुआती झिझक के बाद मंज़ूर अहमद (उनकी हिदायत का सम्मान करते हुए बदला हुआ नाम) ने बोलना शुरू किया। “31 जुलाई को मेरे जिगरी दोस्त सुनील की बेटी की सगाई होनी थी। बहुत कम, बिलकुल खास लोगों को न्यौता था। मुझे तो वहां होना ही था। दावत शुरू ही हुई थी कि सुनील बोला मंज़ूर भाई शहर के हालात खऱाब होने की ख़बर है। भाभी और बच्चे चिंता कर रहे होंगे तू तुरंत घर जाकर आ। मैं घर पहुंचकर छत पर गया तो कई जगह से शोर सुनाई दिया और धुआं उठता भी नजऱ आया। मैं सारा माजरा समझ गया। जिसका अंदेशा था वही हो गया। मैं क्या, मेरे बीवी बच्चे भी अच्छी तरह जानते हैं कि कैसी भी आफ़त आए सुनील के परिवार को मेरे घर और मेरे परिवार को उसके घर से महफूज़ जगह दूसरी नहीं हो सकती”। ये है मेवात की संस्कृति, मेवाती रवायत, मेवों की तहज़ीब जिसे बेगैरत भगवा फ़ासिस्ट जमात, ‘मिनी पाकिस्तान’ बताती है।

जब तक हमारी टीम मेडिकल कॉलेज के गेट पर वापस आई तब तक उसके सामने तबाह हुए मार्केट मे से 15 दुकानों के मालिक नवाब शेख हाथों में अदालत के कागज़ों का पुलिंदा लिए हाजिऱ थे। “मेरा तो सब कुछ लुट गया जनाब। आप लोग पत्रकार है मुझे इंसाफ दिलाइये। ये देखिए कागज़, मेरी इन 12 साल पुरानी दुकानों को अवैध बताकर पिछले साल भी तोडऩे का प्रपंच रचा गया था। मैं अदालत गया और ये देखिए कोर्ट का स्टे आर्डर। जब बुलडोजऱ चला तो मैंने ये कागज़ भी दिखाए लेकिन पुलिस ने थप्पड़ मारकर मुझे ज़बरदस्ती बस में ठूंस दिया। उनसे छूटने के बाद म इन्हें लेकर डीसी नूंह के सामने गया। उन्होंने इन्हें लेकर दूर फेंक दिया, ‘चल भाग यहां से’। पास ही मौजूद, नई बनी मस्जिद की तरफ़ हाथ उठा कर बोले इस मस्जिद के लिए भी ज़मीन मैंने ही दी है। मेरा भाई मोहम्मद अज़ीम, फौज में था। 22 साल पहले उसकी मौत हो गई। उसकी ख्वाहिश थी कि उसकी याद में एक मस्जिद बने।” मेरा करोड़ों का नुकसान हुआ है, इस मार्केट में 6 किराएदार हिन्दू भी थे। उन्हें अपनी दवाइयां निकालने की भी मोहलत नहीं मिली। वे भी बर्बाद हो गए। हम क्या कर कहां जाएं? दंगे कराने वाले तो आज भी वीडियो बना रहे है और हमारे शहर का हर बंदा दहशत में है। मुझे इंसाफ चाहिए। सरकार से कहिए मेरी दुकानें बनाकर दे ।” सहमे हुए चुपचाप सुनते रहने और उसकी इंसाफ की गुहार को देश के दूसरे लोगों को बताने के सिवा हम भी उसकी इंसाफ की लड़ाई में क्या योगदान कर सकते हैं? समझ नहीं पा रहे थे।

प्राचीन शिव मंदिर, ‘नल्हड़’ के मुख्य द्वार पर अर्ध-सैनिक बल के जवान तैनात थे। वे समझे कि हम सब मीडिया से हैं। “मीडिया और गाडिय़ों का प्रवेश वर्जित है। आप अंदर नहीं जा सकते”। हम मंदिर में नहीं जा पाए। वहां भी लेकिन सब सुनसान ही था। अनौपचारिक ऑफ दि रिकॉर्ड बात मे उन्होंने भी माना कि इस हिंसा में स्थानीय लोगों का कोई कुसूर नहीं है। दंगाई बाहर वाले ही थे । “आप की तैनाती पहले हो जाती तो ये तांडव न मचता”, हमारी इस टिप्पणी पर वे मुस्कुराते हुए बोले कि बाक़ी भी कई लोग यह बात बोल चुके हैं। मंदिर के पास कबीरपंथी जुलाहों की छोटी सी बस्ती मे 80 वर्षीय पूरन जी की खाट पर बैठकर उनके विचार जाने। “80 साल में मैंने तो यहां ऐसा कोई दंगा नहीं देखा। यहां हमारे कुल 15 घर हैं। हमे मेवों से कभी कोई शिकायत नहीं रही और न आज है। उनके पास भी खेत में बने मुस्लिम समुदाय के दो घरों पर बुलडोजऱ चल चुका था।

वापस लौटते वक़्त, बुलेट मोटर साइकिल पर सवार मोहम्मद आरिफ़ भी कुछ कहना चाह रहे थे। हमने रुककर उनसे अनुमति लेकर, माइक सामने कर कैमरा ऑन कर दिया। वे भी वही बोले जो बाकी सभी ने बोला “सब मोनू मानेसर और बिट्टू बजरंगी की ही करतूत है। हमारे मेवात के नाम पर बट्टा लगा दिया, हरामखोरों ने। यहां कभी दंगा नहीं हुआ।” नूंह से 15 किमी दूर एक गांँव का है; फिऱोज़पुर नमक। यहां का पानी इतना खारा है कि कभी उसे सुखाकर नमक बनता था, जिस पर सरकार ने पाबंदी लगा दी है। इस गांव में पीने के लिए पानी टैंकरों से आता है। मोदी के ‘अमृत काल’ में ये गऱीब किसान-पशु पालक महीने में 3,000 रुपये पीने के पानी पर ख़र्च करने को मजबूर हैं। सडक़ किनारे हुक्का गुडग़ुड़ा रहे, मोहम्मद रिज़वान और मुश्ताक़ अली ने भी वही दोहराया, जो मोहम्मद इरफ़ान ने और नाम न छापने की शर्त पर न जाने कितने मेवातियों ने बताया था।

सांप्रदायिक हिंसा की शुरुआत तो, अंग्रेजों ने 1857 के बाद ही कर दी थी. पहली जंग-ए-आज़ादी में, वे समझ गए थे कि इस देश को गुलाम बनाकर रखना है तो हिन्दू और मुसलमानों को आपस में लड़ाते रहना होगा. अंग्रेज़ों के मौजूदा भूरे वारिस, समाज में ज़हर घोलकर, सरमाएदारों की मौजूदा दरकती सत्ता को महफूज़ रखने की तरक़ीब को बहुत ऊँचे स्तर तक ले जा चुके हैं. इस वक़्त जिसे ‘सांप्रदायिक दंगे’ कहा जाता है, वह सांप्रदायिक हिंसा नहीं है, बल्कि चंडीगढ़ उच्च न्यायलय के शब्दों में, नस्ली हिंसा है, जिसमें राज-सत्ता, समाज के एक हिस्से को, हिटलर की तबाही मचाने वाली नाज़ी हमलावरों के मारक दस्तों की तरह, तैयार कर रही है. सत्ता के साथ मिलकर, ये भगवा फासिस्ट टोलियाँ, अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज को निशाने पर ले रही हैं.

इस घृणित फ़ासिस्ट हिंसा का एक ख़ास पैटर्न है. पहले, मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को चिन्हित करो. उसके बाद उस पूरे क्षेत्र को ही अपराधी, देशद्रोही, पाकिस्तानी एजेंट बताने का अभियान छेड़ दो. हिटलर के प्रचार मंत्री, गोएबेल की तजऱ् पर झूठ फ़ैलाने, बार-बार दोहराने का एक महाभियान छेड़ दो. चौबीस घंटे चलने वाले, मुख्य गटर धारा के टुकडख़ोर, उन्मादी, अपराधी, दंगाई, आतंकी, दरबारी मीडिया के गले का पट्टा खोल दो. देखते ही देखते, वह सच को झूठ और झूठ को सोलह आने सच साबित कर देगा. फिर कुछ शोहदे पाले जाते हैं. उन्हें पाला-पोसा जाता है. पैसा दंगाईयों के पास अकूत है. हथियार, तलवारों, त्रिशूलों के ढेर लग जाते हैं. ज़ोर से छींक देने पर, ‘कम्युनिटी स्टैण्डर्ड भंग हो गए’ कहकर ब्लॉक कर डालने वाले फेसबुक, व्हाट्सएप को, ज़हरीले, भडक़ाऊ विडियो चलाने में कोई दिक्कत नहीं. हिंसा में पुलिस, हिंसकों के सहभागी होने या चुपचाप तमाशा देखने के दो विकल्पों में से एक को चुन लेती है.

हिंसा की आग ठंडी होने से पहले ही, ‘सरकारी बुलडोजऱ सेना’ मोर्चा संभाल लेती है. पीडि़तों की दुकानें, घर, टपरियां तबाह कर दी जाती हैं, जिसके सदमे से, आर्थिक रूप से टूट चुके लोग, कभी उबर नहीं पाते. दूसरी तरफ़ दंगाई टोले के ‘सीनियर सिटिजऩ’, हत्यारों-बलात्कारियों-ठगों को बचाने के लिए पंचायतें आयोजित करने में लग जाते हैं. वकील टोली अदालतों में हमलावर हो जाती है. इसके बाद भी, अगर, किसी जज ने, अपने करियर को दांव पर लगाकर, सज़ा सुनाने का साहस दिखाया, तो हत्यारे कुछ दिन परोल पर रहते हैं और बाद में छुड़ा लिए जाते हैं. बाद में, वे मंत्री पदों से नवाज़े जाते हैं. क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा, हरियाणा सरकार से मांग करता है कि;

1) नूंह की हिंसा के सूत्रधार, मास्टर-माइंड मोनू मानेसर और बिट्टू बजरंगी को तत्काल, सख्त से सख्त धाराओं में गिरफ्तार किया जाए. जेलें ऐसे लोगों के लिए ही बनी हैं. ये अपराधी-उन्मादी, समाज की शांति के लिए ख़तरा हैं.
2) नूंह की हिंसा की न्यायिक जाँच कराई जाए. सभी क़सूरवारों को दंडित किया जाए. बिना जाँच किए, किसी भी व्यक्ति को ना सताया जाए.
3) दंगे कैसे गढ़े गए, श्रद्धालुओं की आड़ में, लम्बी-लम्बी गाडिय़ाँ लेकर, तलवारें, त्रिशूल, कट्टे और बंदूकें लेकर आने वाले इन उन्मादी नफरतियों को पालने-पोसने वाले, बचाने वाले, इनका खर्च उठाने वाले कौन हैं; उनकी जाँच भी, प्रस्तावित न्यायिक जाँच के दायरे में हो.
4) नफऱत फ़ैलाने, ज़हर उगलने और अपराधियों को बचाने वाली, अल्पसंख्यकों का बहिष्कार करने की गुहार लगाने वाली पंचायतों पर पूर्ण पाबंदी लगे. हिंसा भडक़ाने वाले और नरसंहार तक का आह्वान करने वालों को, सख्त धाराओं में गिरफ्तार कर जेलों में डाला जाए, भले वे किसी भी रंग, डिजाईन की पौशाकें क्यों ना पहनते हों.
5) जिन लोगों की टपरियां, दुकानें बुलडोजऱ द्वारा तबाह की गई हैं. उन्हें माननीय चंडीगढ़ उच्च न्यायलय ने भी ‘नस्ली हिंसा’ माना है. अत: सभी पीडि़तों को समुचित मुआवज़ा तत्काल दिया जाए.
6) खोरी ज़मालपुर निवासी, हाजी ज़मात अली का लूटा गया पशु-धन, उन्हें वापस कराया जाए. लुटेरों के खि़लाफ़ एफआईआर दजऱ् है, उन्हें तत्काल गिरफ्तार किया जाए.

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Mazdoor Morcha
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