फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा)। मूर्ख बनने को तैयार रहने और बार-बार धोखा खाने वाली जनता ने मान लिया था कि केरल से आई अमृतानंदमयी मां यानी अम्मा ने ग्रेटर फरीदाबाद में जो चेरीटेबल अस्पताल एवं मेडिकल कॉलेज स्थापित किया है वह उनका मुफ्त नहीं तो सस्ते में इलाज करने के लिये बना है। नासमझ लोगों की अक्ल को और कुंद करने के लिये इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी से कराया गया। इससे अस्पताल को व्यापक प्रचार तो मिला ही साथ में लोगों का यह विश्वास और भी सुदृढ़ हो गया कि अस्पताल गरीबों की निष्काम सेवा के लिये ही बनाया गया है।
झूठ की पोल खुलने में ज्यादा देर नहीं लगी। लुभावने प्रचार में बहक कर बड़ी संख्या में मरीज़ इस तथाकथित चेरीटेबल अस्पताल की ओर खिंचने लगे। अस्पताल की दुकानदारी को बढ़ावा देने के लिये भाजपाई खट्टर सरकार ने न केवल अस्पताल को जाने वाली सडक़ों को चकाचक कर दिया बल्कि रोडवेज़ की बसें भी इस रूट पर चला दीं। लेकिन जो मरीज़ वहां एक बार गया, अपनी जेबकटती देख कर दोबारा तो क्या बीच में ही इलाज छोडक़र भाग आया। इस तरह के तमाम मामले एक लाख रुपये से नीचे के होने के चलते ज्यादा नहीं उछल पाए। परन्तु बीते सप्ताह पड़ोस के गांव पलवली के केस में आठ घंटे में जब इन्होंने नौ लाख का बिल खड़ा कर दिया और वह भी मरीज के मरने के बाद, तो अस्पताल द्वारा लूट कमाई सुर्खियों में आ गई। इसकी विस्तृत रिपोर्ट ‘मज़दूर मोर्चा’ के गतांक में प्रकाशित की गई है।
इस संस्थान की भीतरी जानकारी रखने वाले भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार इसे यहां स्थापित करने का निर्णय व्यापारिक हितों की दृष्टि से लिया गया था। केरल के कोच्चि स्थित अम्मा के अस्पताल में विदेशी मरीजों को पहुंचने में का$फी कठिनाई होती है। इसके विपरीत इस संस्थान को ऐसी जगह स्थापित किया गया है कि जहां से इन्दिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट तथा जेवर में शीघ्र चालू होने वाला एयरपोर्ट काफी नजदीक पड़ते हैं। जाहिर है इससे विदेशी मरीजों को आने में काफी सुविधा रहेगी। इसके अलावा एनसीआर का पूरा क्षेत्र भी अच्छी-खासी कमाई देने वाला है। यदि अम्मा को चेरिटी ही करनी थी तो बिहार, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, विदर्भ आदि के उन क्षेत्रों में यह अस्पताल क्यों नहीं स्थापित किया जहां के लोगों ने अस्पताल देखा ही नहीं?
लगभग तमाम व्यापारिक अस्पताल ग्राहक फांसने के लिये जगह-जगह ‘फ्री जांच कैम्प’ लगाते रहते हैं। इनमें ‘फ्री के’ बहकावे में बहुत से लोग पहुंच जाते हैं। अक्सर इन कैम्पों में कुछ लोगों को छोटी-मोटी गोली आदि देकर चलता कर दिया जाता है। करीब 10-20 प्रतिशत लोगों को गंभीर बीमारी बता कर अपने-अपने अस्पताल में आने को कहा जाता है। अम्मा के अस्पताल ने भी यही ट्रिक अपनाई। लेकिन किसी एक को भी कोई दवा-गोली न देकर अपने अस्पताल में आकर कटने को कहा। धर्म एवं चैरिटी के आवरण में लगाये गये इन कैम्पों में शुरू-शुरू में तो काफी लोग आए लेकिन अस्पताल में जाकर कटने के बाद, अब लोगों ने इन कैम्पों का ही विरोध करना शुरू कर दिया है।