एम्पलाईज प्रोविडंट फंड ऑर्गेनाजेइशन (ईपीएफओ) मज़दूरों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये बनाई गई एक सरकारी संस्था है जो उनकी भविष्यनिधि (प्रोविडंट फंड) पेंशन व बीमा आदि का प्रबन्धन करती है। इस फंड में मुख्य हिस्सा (करीब 90 प्रतिशत) मज़दूरों द्वारा ही नियोक्ता के जरिये भरा जाता है लेकिन सारे निर्णय सिर्फ 10:1 के करीब पैसे देने वाली सरकार द्वारा ही लिये जाते हैं। कहने को तो इसके बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज में मज़दूर यूनियनों के भी कुछ सदस्य होते हैं लेकिन सरकार के विरुद्ध आवाज उठाने की आज तक उन्होंने शायद ही कभी हिम्मत की हो।
ईपीएफओ की साल 2021-22 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2022 में इसके पास कुल 18.30 लाख करोड़ रुपये जमा थे। इसमें 11 लाख करोड़ भविष्य निधि और 6.75 लाख करोड़ रुपये पेंशन फंड के थे। जाहिर है इतनी बड़ी राशि में से कुछ हड़पने के लिये सभी पूंजीपतियों की लार टपकती रहती थी लेकिन 2015 से पहले ईपीएफओ अपने पैसे को शेयर मार्केट में निवेश नहीं कर सकता था ताकि मज़दूरों के पैसे को शेयर मार्केट में लूटने से बचाया जा सके। लेकिन 2015 में सरकार ने इसका पांच प्रतिशत पैसा शेयर मार्केट में लगाने की छूट दी जो सीमा सितम्बर 2016 में बढ़ाकर 10 प्रतिशत और मई 2017 में 15 प्रतिशत कर दी गई। जाहिर है यह सब मज़दूरों के हित में कम और पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिये ज्यादा था। ईपीएफओ की रिपोर्ट के मुताबिक 31 मार्च 2022 को इसने लगभग 1.60 लाख करोड़ रुपया शेयर मार्केट में लगाया था जो इसके पास जमा कुल राशि का 8.7 प्रतिशत था। लेकिन साल 2022-23 में इसने मज़दूरों के इस साल जमा हुए 2.54 लाख करोड़ रुपये में से 38,000 करोड़ रुपये यानी लगभग 15 प्रतिशत शेयर मार्केट में लगा दिये।
हिंडनबर्ग, अडानी ईपीएफओ 24 मार्च 2023 को एक अमेरिकन कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी दो साल की खोजबीन के बाद जारी की एक रिपोर्ट में अडानी समूह पर अपने एकाऊंट्स में हेराफेरी करने, आपराधिक धोखाधड़ी और अपने शेयरों की कीमतों को चालाकी से बढ़ाने के आरोप लगाये। रिपोर्ट में अडानी समूह द्वारा मॉरीशस आदि देशों में स्थित मुखौटा (शैल) कंपनियों का इस्तेमाल कर भ्रष्टाचार मनी लॉन्ड्रिंग और कर चोरी करने का आरोप भी था। इस रिपोर्ट के बाद अडानी समूह की कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट आई और उनकी बाजार पूंजी 100 अरब डॉलर गिरकर लगभग आधी रह गई। यह सब यहां बताना इसलिये जरूरी है कि ‘ईपीएफओ’ ने शेयर बाजार में लगायी पूंजी का कुछ हिस्सा अडानी ग्रुप की कंपनियों में भी निवेश कर रखा है।
निवेश हालांकि ईपीएफओ ने शेयर बाजार में सीधा-सीधा किसी कंपनी में पैसा नहीं लगा रखा बल्कि उसने अपना पैसा ‘इटीएफ’ यानी ‘इन्डेक्स ट्रेडड फंड’ के जरिये लगा रखा है। दो तरह के इन्डेक्स हैं-एक नेशनल स्टॉक एक्सचेंंज (एनएसई) से जुड़ा-निफ्टी और दूसरा बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) से जुड़ा सेंसेक्स। एनएसई के निफ्टी-50 इंडेक्स में अदानी समूह की दो कंपनियां शामिल हैं-अडानी पोर्ट व सेज और दूसरी अडानी एंटरप्राइजेज। जो भी कंपनी ‘इटीएफ’ में पैसा लगाती है उसको इन्डेक्स में शामिल सभी कंपनियों में पैसा लगाना होता है बल्कि स्वत: लग जाता है। यानी अगर किसी ने ‘इटीएफ’ के जरिये निफ्टी-50 में पैसा लगाया तो उसको सभी 50 कंपनियों में पैसा लगाना होगा और यह पैसा उसी रेश्यो (अनुपात) में लगाना होगा जो उस स्टॉक एक्सचेंज ने तय कर रखा है। जैसे कि निफ्टी-50 में यदि अडानी की कंपनी ‘वेटेज’ दो है तो इटीएफ के जरिये 50 रुपये लगाने वाले हर व्यक्ति को दो रुपया अडानी की कंपनी में लगाने होंगे।
खेला: अडानी की कंपनी अडानी पोर्ट तो 2015 से ही निफ्टी इन्डेक्स का हिस्सा था। जबकि अडानी एंटरप्राइजेज सितम्बर 2022 में इसका हिस्सा बनी। जाहिर है साल 2022-23 में ईपीएफओ द्वारा शेयर मार्केट में लगाये गये 38,000 करोड़ रुपये का बड़ा हिस्सा इस कंपनी में लगा होगा। दिसम्बर 2022 में अडानी एंटरप्राइजेज के एक रुपये के शेयर की कीमत 4190 थी जो 29 मार्च 2023 को 1740 रुपये रह गई। तो स्पष्ट है कि ईपीएफओ के इससे निवेश की कीमत भी 60 प्रतिशत कम रह गई होगी।
‘हिंडनबर्ग रिपोर्ट’ की रिपोर्ट आने के बाद अडानी की कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट के बावजूद अडानी की इन दोनों कंपनियों की निफ्टी 50 शेयर इन्डेक्स में अगले छह महीने के लिये बनाये रखा गया है। जबकि फरवरी 2023 में इसके मुख्य कंपनी अडानी एंटरप्राइजेज के शेयर लगभग 68 प्रतिशत गिर कर 1400-1500 के बीच झूल रहे थे।
उपरोक्त सारे विवरण से स्पष्ट है कि ईपीएफओ को ‘अडानी पोर्ट’ में किये गये निवेश पर 35 प्रतिशत और ‘अडानी एंटरप्राइजेज’ में किये गये निवेश पर 50 प्रतिशत के करीब घाटा अभी तक हो चुका है। जानकारों के अनुसार ये घाटा 3000 से 4000 करोड़ रुपये का होने का अनुमान है। ईपीएफओ अपने मुनाफे से मज़दूरों को प्रोविडंट फंड पर ब्याज और पेंशन देती है। अडानी की कंपनियों में निवेश से हुये घाटे की भरपाई मज़दूरो को मिलने वाली पेंशन व ब्याज से होनी स्वाभाविक है। पिछले साल ही ईपीएफओ ने भविष्यनिधि पर ब्याज की दर घटाकर 8.1 प्रतिशत वार्षिक कर दी थी जो 45 साल में सबसे कम है। उधर ट्रस्टीज के रूप में बैठे मज़दूरों के नुमाइन्दों को इस बारे में कुछ भी मालूम नहीं है। ‘द हिन्दू’ अखबार में छपी एक रिपोर्ट (27 मार्च 2023) के अनुसार ईपीएफओ संगठन के कई ट्रस्टीज द्वारा अडानी कंपनियों में लगाये गये पैसे और उसमें हुए नुक्सान के बारे में कुछ नहीं पता था। पर उनका मानना था कि 27-28 मार्च 2023 को होने वाली ईपीएफओ की मीटिंग में इसकी चर्चा होगी। लेकिन 27-28 मार्च आकर चली गई, मीटिंग भी हो गई, पर इस विषय पर किसी ने चूं तक नहीं की। मोदी सरकार से डरे बैठे मज़दूर यूनियनों के प्रतिनिधियों की भी मोदी के गहरे दोस्त अडानी के ऊपर सवाल उठाने की या जानकारी लेने की हिम्मत नहीं हुई। गौरतलब है कि यूरोप का एक छोटा सा देश नॉर्वे, हिंडनबर्ग रिपोर्ट के आने से पहले ही अडानी समूह के सारे शेयर बेच कर न केवल घाटे से बचा बल्कि मुना$फा भी कमा गया। सरकार की बदनीयति को समझने वाली अनेकों भारतीय कंपनिया अपने मज़दूरों का पैसा ईपीएफओ में जमा कराने की बजाय खूद अपने ट्रस्ट चलाती हैं।
अडानी समूह की आर्थिक धोखाधड़ी के कारण कई सरकारी उपक्रमों-एलआईसी, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया आदि को भी भारी नुक्सान हुआ है जो अन्तत: जनता को ही भुगतना पड़ेगा। लेकिन मज़दूर प्रतिनिधि मज़दूरों के नुक्सान को रोक सकते थे यदि वे 24 जनवरी 2023 के बाद अडानी के शेयरों में शुरू हुई गिरावट के समय ही ईपीएपीओ का पैसा उसकी कंपनियों से निकलवा देते। लेकिन अडानी को डूबने से बचाने के लिये कटिबद्ध मोदी सरकार जब जनता को सारा पैसा उस पर लूटाने को तैयार बैठी हो तब ईपीएफओ जैसे संगठनों की उसको रोकने की क्या औकात! खुद मज़दूरों का भी एक बड़ा तबका मोदी की हिंदू हृदय सम्राट की छवि का पुजारी है तो न तो मोदी पर सवाल उठेंगे न मज़दूरों के नेताओं पर। मज़दूरों और आम जनता का पैसा अडानी जैसे लुटेरों को बचाने के लिए उनकी सेवा में मोदी द्वारा प्रस्तुत किया जाता रहेगा।