फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा)। बल्लभगढ़ की राजीव कॉलोनी में रविवार शाम अपने घर के बाहर खेल रही आठ साल की बच्ची खुशी को आवारा कुत्ते ने बुरी तरह नोच डाला। परिवार वाले बचाने का प्रयास करते रहे लेकिन कुत्ता एक शिकार की तरह बच्ची पर हमला करता रहा। काफी मशक्क़त के बाद बच्ची को छुड़ाया जा सका। यहीं चावला कॉलोनी में सोमवार शाम एक बुजुर्ग को सांड ने अपने सींग में उलझा कर दूर फेक दिया। उनका बीके अस्पताल में इलाज चल रहा है। आवारा पशुओं से आम आदमी की रक्षा के कोई इंतजाम नहीं हैं। निगम अधिकारी न्यायालय के आदेश का हवाला देकर पल्ला झाड़ रहे हैं।
बीके सिविल अस्पताल के आंकड़ों के मुताबिक रोजाना औसतन 32-35 केस कुत्ता काटने के आते हैं। इससे कहीं ज्यादा केस ईएसआई अस्पताल मेें पहुंचते हैं। इसी तरह आवारा जानवर के हमले से घायल होने के छह से आठ मामले बीके आते हैं। आवारा कुत्तों की जनसंख्या नियंत्रण और उन पर अंकुश लगाने का काम नगर निगम के जिम्मे है। इसी तरह लावारिस गाय-सांड को पकड़ कर गौशाला या कांजी हाउस में रखनेे की जिम्मेदारी भी नगर निगम की है। पालतू कुत्तों का पंजीकरण, उनके टीकाकरण और स्वास्थ्य परीक्षण कराना भी निगम का काम है। आवारा कुत्तों पर अंकुश लगाना तो दूर शहर में उनकी संख्या कितनी है निगम के अधिकारियों को तो यह भी नहीं पता। यानी इनकी जनसंख्या नियंत्रण के लिए निगम कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। स्वास्थ्य अधिकारी प्रभजोत कौर ने बताया कि कोर्ट के आदेश के मुताबिक हम आवारा पशुओं को पकड़ कर रख नहीं सकते। यदि कोई पशु बीमार होता है तो एनजीओ के सहयोग से उसका इलाज करवा कर उसी जगह छोड़ दिया जाता है जहां से उसे पकड़ा गया था। अब सवाल यह पैदा होता है कि कुत्तों की रक्षा के लिए तो कोर्ट का आदेश तो प्रभावी हो रहा है लेकिन जिन नागरिकों के खून पसीने की कमाई से यह नगर निगम फल फूल रहा है उन नागरिकों की रक्षा कौन करेगा। क्या इन अधिकारियों को संविधान में दिए गए सुख चैन से जीने के अधिकार की चिंता नहीं है? यह कुत्तों के तथाकथित अधिकारों की रक्षा तो ज्यादा करते हैं इंसानों की रक्षा की इन्हें कोई चिंता नहीं है। जनता को वरगलाने के लिए दावे किए जाते हैं कि कुत्तों की नसबंदी व टीकाकरण किया जा रहा है। इस काम पर लंबा चौड़ा बजट भी डकारा जा रहा है लेकिन यह बताने को कोई भी तैयार नहीं है कि कौन से कुत्ते का कहां और कब नसबंदी और टीकाकरण किया गया। जो शासन व्यवस्था इंसानों का टीकाकरण तो कर नहीं पा रही, वह कुत्तों का क्या करती होगी समझा जा सकता है। इसके लिए जनता को प्रशासन के भरोसे रहने के बजाय कुत्तों से निपटने के लिए खुद ही अपना हाथ जगन्नाथ करना होगा।