क्यूआरजी हॉस्पिटल में गुर्दा प्रत्यारोपण पर लगा प्रतिबंध

क्यूआरजी हॉस्पिटल में गुर्दा प्रत्यारोपण पर लगा प्रतिबंध
March 08 07:01 2023

गरीब महिला के फर्जी दस्तावेज तैयार कर गुर्दा निकाला, रसूखदार व्यक्ति को लगा दिया महिला के पति को सरकारी नौकरी दिलाने का प्रलोभन दिया गया था

रीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) शहर के फाइव स्टार क्यूआरजी हॉस्पिटल में गुर्दा प्रत्यारोपण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। डायरेक्टर पंडित बीडी शर्मा पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (पीजीआईएमएस) रोहतक ने यह आदेश हॉस्पिटल में ट्रांसप्लांट ऑफ ह्यूमन ऑर्गंस एक्ट 1994 के नियमों को ताक पर रख एक जरूरतमंद महिला का गुर्दा रसूखदार व्यक्ति को लगाए जाने के कारण जारी किया है। पीडि़ता ने इस मामले में क्यूआरजी हॉस्पिटल के खिलाफ सेक्टर 17 थाने में एफआईआर भी दर्ज कराई है।

क्यूआरजी हॉस्पिटल में धोखा देकर गुर्दा निकालने का खेल पलवल निवासी रिंकी पत्नी अनिल सौरोत के साथ हुआ। रिंकी ने 16 दिसंबर 2022 को हॉस्पिटल के नेफरो डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डॉ. श्रीराम कांवरा, कोऑर्डिनेटर स्वाति, गुर्दा रिसीवर विनोद मंगोत्रा उसकी पत्नी अंबिका मंगोत्रा, राजा सहित सात लोगों के खिलाफ केस दर्ज कराया था। रिंकी के मुताबिक साल 2020 में उसने फेसबुक पर एक विज्ञापन देखा जिसमें कहा गया था कि सरकारी नौकरी चाहिए तो अंगदान करें। उन्होंने विज्ञापन को क्लिक कर दिया। दूसरे दिन राजा नाम के व्यक्ति ने कॉल कर उसे पीबीआर विकासपुरी दिल्ली बुलाया। यहां ऑफिस में राजा के साथ विनोद मंगोत्रा मिला, उसे किडनी की सख्त जरूरत थी। दोनों ने गुर्दा देने के बदले पति अनिल सौरोत को सरकारी नौकरी दिलाने का वादा किया। आरोप है कि विनोद मंगोत्रा ने अनिल और बच्चों को अपने घर में बंधक बनाकर रख लिया। इसके बाद 28 साल की रिंकी का 42 वर्षीय अंबिका मंगोत्रा के नाम से फर्जी आधार कार्ड बनवाया गया। आधार कार्ड में विनोद मंगोत्रा को उसका पति दर्शाया गया। दोनों की शादी का फर्जी रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट तैयार कराया गया।

रिंकी का आरोप है कि जब उसने विरोध किया तो पति और बच्चों को जान से मारने की धमकी और रसूख का डर दिखा कर चुप करा दिया गया। क्यूआरजी हॉस्पिटल में उसकी मर्जी के बगैर उसका गुर्दा निकाल कर विनोद मंगोत्रा को लगाया गया। आरोप है कि क्यूआरजी हॉस्पिटल के प्रबंधन और नेफरो डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डॉ श्रीराम कांवरा की मिलीभगत से यह सब हुआ। न्याय के लिए भटकती रिंकी को डॉ. बीआर आंबेडकर सोशल जस्टिस फाउंडेशन ट्रस्ट के पुनीत गौतम ने मदद दी। मामला तूल पकडऩे पर डायरेक्टर पीजीआईएमएस ने 24 जनवरी को मेडिकल सुपरिंटेंडेंट पीजीआईएमएस रोहतक की अध्यक्षता में 5 सदस्यीय कमेटी का गठन किया और मामले की जांच रिपोर्ट 10 दिन में मांगी। कमेटी ने अभी पूरी जांच रिपोर्ट नहीं सौंपी है लेकिन जांच में क्यूआरजी हॉस्पिटल की कमियां उजागर होने पर डायरेक्टर ने हॉस्पिटल में गुर्दा प्रत्यारोपण पर रोक लगा दी है। यह रोक पुलिस की जांच पूरी होने तक लगी रहेगी। इस संबंध में मजदूर मोर्चा ने क्यूआरजी हॉस्पिटल के नेफ्रो डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डॉ. श्रीराम कांवरा, कोऑर्डिनेटर स्वाति और मेडिकल सुपरिंटेंडेंट से उनका पक्ष जानने का प्रयास किया लेकिन किसी ने भी बात नहीं की। हॉस्पिटल का पक्ष आने पर प्रकाशित किया जाएगा।

अंग प्रत्यारोपण का खेल क्यों नहीं आ रहा नजर
पीजीआईएमएस के डायरेक्टर ने 24 जनवरी को जांच कमेटी गठित कर दस दिन में रिपोर्ट तलब की थी।
एक माह से अधिक का समय गुजरने के बावजूद कमेटी जांच पूरी नहीं कर सकी है। रिंकी का आरोप है कि उसका अंबिका मंगोत्रा के नाम से नकली आधार कार्ड बनवा कर उसे विनोद मंगोत्रा की पत्नी बताया गया। ट्रांसप्लांट ऑफ ह्यूमन ऑर्गंस रूल्स 1995 के 2008 में किए गए अमेंडमेंट के तहत अंग प्रत्यारोपण करने वाले हॉस्पिटल के मेडिकल ऑफिसर को यह सुनिश्चित करना होगा कि अंगदान करने वाला यदि पति या पत्नी है तो विवाह कब हुआ, कितने बच्चे हैं, अंगदान करने वाले ने फार्म दस पर संयुक्त रूप से सहमति दी है या नहीं। दंपति होने की हालत में उनका परिवार के साथ कोई पुराना चित्र जिसमें पति पत्नी के साथ बच्चे भी हों लगाया जाना चाहिए।

रिंकी का आरोप है कि हॉस्पिटल में उससे किसी तरह की सहमति नहीं ली गई, कुछ कागजों पर जबरन हस्ताक्षर करवाए गए। उसकी छोटी बहन का वीडियो भी बनवाया गया जिसमें छोटी बहन कहती नजर आई कि जीजा अनिल सौरोत की तबीयत बहुत खराब है। उनकी किडनी बदला जाना जरूरी है। इसके लिए दीदी यानी रिंकी विनोद मंगोत्रा को अपनी किडनी देंगी जबकि विनोद मंगोत्रा की पत्नी अंबिका मंगोत्रा अनिल सौरोत के लिए किडनी दान करेंगी। नियमों के तहत यदि अंगदान करने वाला कोई करीबी या रिश्तेदार नहीं है तो अस्पताल के मेडिकल ऑफिसर को यह भी सुनिश्चित करना होता है कि अंगदान के लिए कोई लालच या धन का लेनदेन तो नहीं किया गया है, अंगदान करने वाले को इसके जोखिम, जैसे कि मौत होने की संभावना से भी अवगत कराया जाना चाहिए।

संदर्भवश पूर्व मंत्री सुषमा स्वराज तथा अरुण जेटली का मामला गौरतलब है। इन दोनों ने ही नई दिल्ली स्थित एम्स में ही अपना गुर्दा प्रत्यारोपण कराया था। दोनों ने ही मरते दम तक यह पता लगने नहीं दिया कि उन्हें गुर्दा किस रिश्तेदार ने दान दिया था। जाहिर है कि इन दोनों ने भी वही फ्रॉड किया था जो विनोद मंगोत्रा ने किया है। यदि वह दोनों मंत्री ईमानदार होते तो लालू प्रसाद यादव की तरह बेटी से गुर्दा लेने की बात घोषित करते।

सोशल मीडिया पर क्यों नहीं पड़ती सरकार की नजर
रिंकी के मुताबिक सरकारी नौकरी के बदले अंगदान का विज्ञापन उसने फेसबुक पर देखा था। इसका मतलब है कि अंगों का कारोबार करने वाले सोशल मीडिया पर लुभावने विज्ञापन देकर जरूरतमंद युवक-युवतियों को अपने जाल में फंसा कर उनकी जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर सख्त निगरानी रखने वाली सरकारी संस्थाओं को इस तरह के अवैध विज्ञापन क्यों नहीं नजर आते?

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Mazdoor Morcha
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