डॉ. रामवीर
बीजेपी में सर्वेसर्वा होते थे अडवानी, दिन बदले तो हुए बेचारे पार्टी में बेमानी ।
आगे की घटनाएं सभी की हैं जानी पहचानी, अपना पाला पोसा चेला करने लगा मनमानी ।
जिस सीढ़ी से चढ़ा उसी को गिरवाने की ठानी, अडवानी को चेले से ही पड़ गई मुहकी खानी ।
चेला था चालाक गजब का वो पैसे का पीर, राजनीति में पैसा ही था उस के लिए शमशीर ।
राजा की प्रभुता धनमूलक उसने सुना हुआ था, इसी लिए धनपति सेठों को उसने चुना हुआ था ।
सेठों में भी अपने प्रान्त के सेठ स्वभाषाभाषी, उनको सब ठेके मिलते और सत्ता की शाबाशी ।
दो ही घोड़े दिखे दौडते अम्बानी औ अडानी, इन के सिवा अन्यों का हाल देख होती हैरानी ।
धनबल और सत्ता होवे तो होगी ही नादानी, धीरे धीरे बहने लगता है सिर पर से पानी ।
मोदी जी ने जैसे गिराया अपना गुरु अडवानी, वैसे ही मोदी को कहीं न ले डूबे अडानी ।
परमानैंट नहीं है कोई दुनिया आनी जानी, अडवानी हो अथवा अडानी सब की यही कहानी ।