कंवल भारती हम बदलेंगे, जग बदलेगा, बदलेगा जुग सारा। भागो नहीं दुनिया को बदलो, यही क्रान्ति का नारा।।टेक।। 1 इन्सानों ने इन्सानों की बस्ती में आग लगाई। ऊँचनीच की नफऱत में, अपनी जिंदगी गँवाई। कैसे प्यार बढ़े मन में, जब नफऱत घनी समाई। अपने ही हाथों हमने यह दुनिया नरक बनाई । कुछ भी इसमें ना अच्छाई, फिर क्यों ना दोष हमारा।।1।। भागो नहीं दुनिया को बदलो, यही क्रान्ति का नारा।।टेक।। 2 ख़ून चूसने वालों को अब तक तुमने पहचाना ना। वो लोग तुम्हारी जाति में हैं, तुमने उनको जाना ना। वो लोग तुम्हारे धर्म गुरु हैं, हरगिज धोखा खाना ना। वो लोग तुम्हारे नेता हैं, उनके झांसे में आना ना। उनको अब अजमाना ना, वो दुश्मन बड़ा तुम्हारा।।2।। भागो नहीं दुनिया को बदलो, यही क्रान्ति का नारा।।टेक।। 3 धर्म तुम्हारा दुश्मन है, तुमको लाचार बनावेगा। तुम गऱीब हो इसको वह तक़दीर का लेख बतावेगा। संतोष सबर करके जीने का वह उपदेश सुनावेगा। पूंजीवाद के विरुद्ध तुम्हारे गुस्से को शान्त करावेगा। नरक का डर दिखलावेगा, भगवान को अगर बिसारा।।3।। भागो नहीं दुनिया को बदलो, यही क्रान्ति का नारा।।टेक।। 4 सेठों की बन्द तिज़ोरी में जो भरा हुआ सरमाया है। अपने खून पसीने से जनता ने उसे कमाया है। वह बन्द पड़ा धन जनता के काम कभी ना आया है। कँवल कहें उसे धर्मगुरुओं और नेताओं ने खाया है। जिज्ञासु ने समझाया है, इनसे पाना छुटकारा।।4।। भागो नहीं दुनिया को बदलो, यही क्रान्ति का नारा।।टेक।। हम बदलेंगे , जग बदलेगा, बदलेगा जुग सारा। भागो नहीं दुनिया को बदलो, यही क्रान्ति का नारा।।टेक।।