खट्टर सरकार की शिक्षा विरोधी नीति के विरुद्ध शिक्षक उतरे मैदान में

खट्टर सरकार की शिक्षा विरोधी नीति के विरुद्ध शिक्षक उतरे मैदान में
January 10 00:49 2023

सत्यवीर सिंह
झूट, पाखंड, नस्लवाद, मर्दवाद, काल्पनिक शत्रु का भय, इतिहास का विकृतीकरण; फ़ासीवाद के पहिये होते हैं. यही कारण है कि कहीं के भी हों, फ़ासिस्ट सबसे ज्यादा ज्ञान-विज्ञान से डरते हैं. इसीलिए उनका सबसे घातक हमला शिक्षा पर होता है. शिक्षा और उसके मूल तत्व-वैज्ञानिक, तकऱ्पूर्ण सोच को समूल नष्ट कैसे किया जा सकता है; इस काम में हरियाणा, देश में सबसे आगे है. शिक्षा के व्यवसायीकरण, निजीकरण की प्रक्रिया तो कांग्रेस पार्टी के राज में ही पूरी हो चुकी थी. भाजपा-संघ सरकार ने उसमें भगवाकरण और जोड़ दिया है. ‘शिक्षा पर सरकार को एक भी पैसा ना ख़र्च करना पड़े, जो झेल सकता है वह पढ़े, जिसकी जेब में जान नहीं वह पढक़र क्या करेगा’, आजकल इस परियोजना पर काम चल रहा है.

लुटेरे कॉर्पोरेट जानते हैं कि उनकी शिक्षा की दुकानों पर आए लोगों को, वे तब ही अच्छी तरह लूट पाएँगे, जब या तो सरकारी स्कूल-कॉलेज बंद पड़ जाएँ या उनकी फ़ीस भी बेतहाशा बढ़ जाए. सरकार इसी दिशा में आगे बढ़ रही है, क्योंकि वर्तमान व्यवस्था में सरकार का ‘धर्म’ होता है कि वह अपने कॉर्पोरेट आकाओं की इच्छा पूरी करे. हरियाणा सरकार की, शिक्षा के सत्यानाशीकरण की परियोजना का जवाब, हरियाणा के अध्यापकों ने शानदार तरीक़े से दिया है. शिक्षकों के 6 जत्थे प्रदेश के 6 कोनों से चले. पश्चिम में सिरसा जि़ले के प्रसिद्द गाँव चौटाला, दक्षिण में महेंद्रगढ़ जि़ले के गाँव नांगल चौधरी, दक्षिण-पूर्व में गुडगाँव जि़ले के गाँव फिऱोज़पुर झिरका, सबसे दक्षिणी-पूर्वी छोर पलवल जि़ले में होडल, उत्तर में कालका और उत्तर पूर्व में यमुनानगर के गाँव छछरौली से चले. समाज का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं जो शिक्षा से प्रभावित ना होता हो. इसीलिए, समाज में व्यापक ‘जन-जागरण’ अभियान चलाते हुए, आन्दोलनकारी शिक्षकों के जत्थे, 29 दिसंबर को जींद पहुंचे और वहां एक सभा हुई.

‘अखिल भारतीय शिक्षा अधिकार मंच (All India Forum for Right To Education, AIFRTE)’ देश भर के शिक्षकों, छात्रों, शिक्षाविदों, मज़दूर संगठनों का एक साझा मंच है, जो शिक्षा का बेड़ा गकऱ् होने के खि़लाफ़, देश स्तर पर अनेक कार्यक्रम चलाता है. जन-जागरण एवं जन-आन्दोलन संगठित कर शिक्षा का मूल तत्व बचाने की ज़द्दोज़हद में लगा हुआ है. इस मंच ने शिक्षकों की इस शानदार तहरीक का पूरी शिद्दत से समर्थन किया था.  AIFRTE के चेयरमेन प्रोफ़ेसर जगमोहन जी (जो शहीद-ए-आज़म भगतसिंह के भांजे हैं), सभा के प्रमुख वक्ताओं में शामिल थे. ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा, फरीदाबाद’, AIFRTE की राष्ट्रीय परिषद का सदस्य है. चूँकि हरियाणा के सभी सम्बद्ध संगठनों को इस कार्यक्रम में शरीक़ होना था, इसलिए क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा, फऱीदाबाद का 4 सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल, शिक्षा के इस शानदार आन्दोलन से अपनी प्रतिबद्धता (solidarity) रेखांकित करने, 29 दिसंबर की जींद रैली व सभा में सक्रीय रूप से शरीक हुआ.

सभा में उमड़ा जन सैलाब बता रहा था, कि हरियाणा की जागरुक जनता, शिक्षा का सत्यानाश होते हुए चुपचाप देखते नहीं बैठेगी. हालाँकि, ये आन्दोलन ‘हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ व जनशिक्षा अधिकार मंच’ द्वारा आयोजित थे जो सीपीएम, हरियाणा, से सम्बद्ध हैं लेकिन अनेकों मज़दूर संगठनों ने इसमें अपनी प्रभावशाली भागीदारी दर्ज कराई. इन जत्थों को, लोगों का बेमिसाल साथ व सहयोग मिला. ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ और प्रदेश भर के छात्रों, मज़दूरों के संगठन भी इससे जुड़ चुके हैं. आम लोगों को शायद अंदाज़ भी नहीं होगा, कि हरियाणा सरकार किस तरह प्रदेश में शिक्षा का बेड़ा गकऱ् कर रही है. शिक्षकों ने एक पम्फलेट द्वारा इस तथ्य को समझाते हुए ‘जन जागरण’ किया, जिसके मुख्य बिन्दू नीचे दिए गए हैं. लोगों को इन्हें पढऩा- जानना चाहिए, और भावी पीढिय़ों को ज़हालत की अँधेरी गुफ़ा में धकेले जाने की, इस सरकारी साजि़श को नाकाम करने के लिए, शिक्षकों की इस तहरीक़ का साथ देना चाहिए.

1) हरियाणा ने तबादला ड्राइव के नाम पर कुल 14,503 स्कूलों में से 4,801 बंद कर दिए हैं. प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के कुल 38,476 पद रिक्त हैं. ये सच्चाई, ख़ुद हरियाणा सरकार ने विधान सभा में स्वीकार की थी. तथाकथित ‘युक्तिकरण (rationalization)’ के बाद शिक्षकों के खाली पद मात्र 13,476 बचे हैं. सरकार कैसा ‘युक्तिकरण’ कर रही है, लोगों को जानना चाहिए?

2) गाँव का स्कुल बंद होने से मज़दूर, किसान, कारीगर और गरीब आदमी अपने बच्चे को, पड़ोस या कस्बे के स्कुल में कैसे छोडक़र आएगा? परिवहन का साधन भी हो तो इसका खर्च कैसे जुटाएगा?

3) अधिकतर उच्च विद्यालयों में, गणित/ विज्ञान, हिन्दी/संस्कृत, अंग्रेजी/सामाजिक विज्ञान के पदों की क्लबिंग कर दी गई है तथा प्राचार्य व मुख्याध्यापक के पद भी कैप्ट कर दिए गए हैं. उन विषयों को कौन पढाए? ऐसी हालत में बच्चे स्कूल छोड़ जाएँगे और अगले साल कम छात्र रह जाने पर ऐसे स्कूल का दूसरे में विलय कर दिया जाएगा. यानी स्कूल लगातार बंद होते जाएंगे.

4) 1 किलोमीटर के भीतर एक प्राइमरी, 3 किमी के भीतर एक मिडिल और 5 किमी के भीतर 500 छात्र संख्या पर एक सीनियर सेकेंडरी स्कूल रहेगा. एक ही गाँव में, अलग से कन्या स्कूल या दो से अधिक विद्यालय हैं, तो उन्हें सह-शिक्षा बनाकर एक ही स्कूल रखा जाएगा. ‘बेटी बचाओ-बेटी पढाओ’ भी केवल चुनावी पुलाव ही साबित हुआ.

5) मुख्यमंत्री का बयान है कि एक अध्यापक से 4 विषय पढ़वाए जाएँगे. पूँजीवाद की सीधी लूट (नव- उदारीकरण) के दौर में श्रम के शोषण का नया स्वरूप है. लागत खर्च घटाने के नाम पर, फिक्स्ड टर्म नौकरी यानी एक, दो या चार साल के लिए भर्ती (अग्निवीर, कौशल रोजग़ार नियम) तथा मल्टीटास्किंग यानी एक आदमी से चार-पांच तरह के अलग-अलग काम लेना आदि का चलन आम हो गया है. ऐसा होने पर हमारे पढ़े-लिखे लडक़े-लड़कियों को नोकरी मिलने के अवसर बचेंगे ही नहीं.

6) गऱीब परिवारों के बच्चों की शिक्षा पर हमले का सिलसिला पिछले कई सालों से चल रहा है. पांच वर्ष पहले, जेबीटी कोर्स बंद कर दिया गया. फीस बेतहाशा बढ़ा दी गई. हाल में ‘चिराग’ योजना शुरू की गई है. इसके तहत, जो बच्चा सरकारी स्कुल छोडक़र जाएगा, उसकी 700 से 1100 रु मासिक फ़ीस सरकार देगी. यह निजीकरण की खुली साजिश है. आशंका यह भी है कि जो स्कूल परिसर विलय से खाली हुए हैं, उन्हें अडानी ग्रुप को सौंप कर, लूट की खुली छूट दी जाएगी, जिससे छोटे निजी स्कूल भी बंद हो जाएँगे.

7) बारहवीं से बाद की शिक्षा का भी यही हाल है. नई शिक्षा नीति के अनुसार 3000 से कम संख्या वाले कॉलेज नहीं रहेंगे. ऐसा होने पर, कस्बों व देहात में खुले सैकड़ों कॉलेज बंद हो जाएँगे. दूसरा, सरकार अब कॉलेज-यूनिवर्सिटी को ग्रांट नहीं, लोन देगी. संस्थाएं अपना काम ख़ुद चलाएँ, यानी दाखिले-फ़ीस आम व्यक्ति से वसूल कर, उच्चतर शिक्षा दी जाएगी. सरकारी कॉलेज में 80,000 रुपये सालाना में एमबीबीएस हो जाती थी. अब उसकी फीस 10,00,000 रु सालाना हो गई है. यानी गऱीब तो छोडिए, मध्यम वर्ग का भी कोई बच्चा अब डॉक्टर नहीं बन पाएगा.

8) शिक्षा पर हमला भयानक है. बड़े पूंजीपति और सांप्रदायिक गठजोड़ की सत्ता से हमारी भावी पीढिय़ों को बचाने का सवाल है. शिक्षा केवल अक्षर ज्ञान नहीं है, उद्देश्य केवल नोकरी नहीं है, बल्कि यह हमें इंसान बनाती है. गरिमा के साथ जीने का हुनर देती है, आपस में प्यार से रहना सिखाती है, इंसान को अंधविश्वास से निकालकर, वैज्ञानिक दृष्टिकोण सिखाती है, ठीक और ग़लत की पहचान करना सिखाती है. नई शिक्षा नीति इस बुनियादी समझ से उलट है. उसे या तो पूंजीवादी कंपनियों को मुनाफ़ा देने वाले भावनाशून्य पुजऱ्े चाहिएं अथवा उनके शासन के अंध भक्त. हमें अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा के लिए मिलकर रास्ता बनाने के लिए संघर्ष करना होगा.

9) हम चाहते हैं कि नर्सरी से 12 वीं तक शिक्षा सभी के लिए नि:शुल्क हो. गऱीब-अमीर, अध्यापक- कर्मचारी, अधिकारी-कर्मचारी, नेता-मंत्री-जज और साधारण मज़दूर-किसान के बच्चे एक साथ, बिलकुल एक समान माहौल में पढ़ें. पहली पीढ़ी के ऐसे सभी बड़े/ क़ामयाब लोग सरकारी स्कूलों ने ही पैदा किए थे.

10) यह काम बड़ा है लेकिन है बहुत ज़रूरी. शिक्षा के बिना हमारे बच्चों का जीवन चौपट हो जाएगा. अकेले कोई कुछ नहीं कर सकता. एक आवाज़ में मिलकर बोले थे, तो अंग्रेजों को भी भागना पड़ा था. मोदी सरकार को भी, किसानों की एकजुटता और उनके साथ दूसरे तबक़ों के आ जाने पर खेती के काले क़ानून वापस लेने पड़े थे. इसीलिए, आईये, हम सब मिलकर सार्वजनिक शिक्षा की गुणवत्ता और प्रसारके लिए काम करें.

शिक्षकों की अपील: जो जागरुक शिक्षक, इस जनशिक्षा को बचाने के अभियान में लगे हैं, सरकार उनसे वार्ता द्वारा समस्या हल करने की बजाए, तानाशाहीपूर्ण रवैये से उत्पीडन का रास्ता अपनाकर दमन कर रही है. अत: आप सभी भाई-बहन से अपील है कि क्षेत्र, वर्ग, धर्म, लिंग का भेदभाव मिटाकर, व्यापकलामबंदी करते हुए, शिक्षा आन्दोलन को सफल बनाने में तन-मन-धन से जुट जाएँ.

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Mazdoor Morcha
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