फरीदाबाद (म.मो.) दिनांक चार दिसम्बर को ईएसआई कॉर्पोरेशन की189 वीं बैठक केन्द्रीय श्रममंत्री भूपेन्द्र यादव की अध्यक्षता में समपन्न हुई थी। इसमें अन्य अनेक प्रस्तावों के साथ-साथ प्रत्येक मेडिकल कॉलेज में नर्सिंग व टेक्निीशियन कॉलेज खोलने का प्रस्ताव भी पारित किया गया था। उसी के संदर्भ में इस सप्ताह स्थानीय मेडिकल कॉलेज में उक्त दोनों कॉलेज खोलने की स्वीकृति प्रदान कर दी गई है।
कहने की जरूरत नहीं कि किसी भी अस्पताल में नर्सिंग व टेक्निीशियन स्टाफ की भूमिका डॉक्टरों से कम नहीं समझी जाती। इसलिये इनकी आपूर्ति के लिये ऐसे कॉलेजों का खोलना अति आवश्यक है। परन्तु सवाल यह उठता है कि स्थानीय मेडिकल कॉलेज में ये दोनों उक्त कॉलेज खोलने की जगह कहां है? क्या ये मौजूदा मेडिकल कॉलेज की छत पर अथवा बेसमेंट के नीचे खोले जायेंगे? विदित है कि यहां पर पहले से ही जगह की भारी कमी महसूस की जा रही है। सुपरस्पेशलिटी के लिये पहले ही 500 बेड की अतिरिक्त बिल्डिंग बनाने का निर्णय एक वर्ष पहले ही लिया जा चुका है। इसके लिये परिसर में स्थित पुरानी बिल्डिंग को तोडक़र, नई बनाने का फैसला हो चुका है। हलांकि धरातल पर आज तक धेले भर का भी काम नहीं हो पाया है।
इसी तरह एमबीबीएस कोर्स में छात्रों की संख्या 100 से बढ़ाकर 150 कर दिये जाने से छात्रावास की कमी होने के चलते छात्रों को कॉलेज से 10 किलोमीटर दूर जाकर रहना पड़ता है। उनके लिये आज तक हॉस्टल निर्माण की कोई प्रक्रिया शुरू नहीं की गई है। 10 किलोमीटर दूर किराये पर लिये गये हॉस्टल पर आने-जाने के खर्च व किराये पर अब तक करोड़ों रूपये खर्च हो चुके हैं, छात्रों की परेशानी अलग से। इसी तरह पोस्ट ग्रेजुएशन डॉक्टरी छात्रों की संख्या भी 90 से अधिक हो चुकी है तथा इतने ही अगले साल और आ जायेंगे। इनके लिये भी हॉस्टल की कोई व्यवस्था नहीं है। विदित है कि इन छात्रों को रात-दिन अस्पताल में ही रहना होता है। इसलिये इनके लिये हॉस्टल अति आवश्यक होता है। लेकिन कॉर्पोरेशन को इसकी रत्ती भर चिन्ता नहीं। अधिकारियों को यह समझने की कोई जरूरत महसूस नहीं होती कि हॉस्टल की कमी के चलते पढ़ाई के अलावा चिकित्सा सेवा में कितनी दिक्कत आती है।
खट्टर सरकार कोरोना के नाम पर दो बार इस अस्पताल को अपने कब्जे में ले चुकी है और नीयत, जरूरत पडऩे पर $िफर से लेने की रहती है। लेकिन इस अस्पताल को आवश्यक अतिरिक्त जमीन देने की उन्हें कोई जरूरत महसूस नहीं होती। विदित है कि मेडिकल कॉलेज व बीके अस्पताल के बीच तीन एकड़ ज़मीन खाली पड़ी हुई है जिस पर विधायक सीमा त्रिखा झोपड़पट्टी बनाना चाहती हैं। इसी तरह साथ लगती चार एकड़ ज़मीन भी इस अस्पताल को दी जा सकती है जिससे इसका आवश्यक विस्तार सम्पन्न हो सके।
कॉर्पोरेशन की उक्त बैठक में डेंटल कॉलेजों में एमडीएस तक की भी पढ़ाई कराने का फैसला किया गया है, जो अभी तक केवल बीडीएस तक की ही पढ़ाई होती आ रही है। इसके अतिरिक्त सभी कॉलेजों में पीएचडी कार्यक्रम भी चलाने का निर्णय लिया गया है। ये निर्णय, नि:संदेह सराहनीय हंै। सवाल तो केवल इतना है कि इन्हें अमलीजामा पहनाने में कितने वर्ष लगेंगे? इसी बैठक में यह भी निर्णय किया गया कि ईएसआई कवर्ड (बीमित) मज़दूरों के बच्चों के लिये इन सभी कोर्सों में सीटें आरक्षित की जायें
मज़दूरों का पैसा शेयर बाजार में लगेगा विदित है कि चिकित्सा सेवायें प्रदान करने के नाम पर कॉर्पोरेशन द्वारा मज़दूरोंं से वसूले गये पैसे को उन पर खर्च न करने के चलते इसके पास डेढ़ लाख करोड़ से अधिक का फंड एकत्रित हो चुका है। इस फंड से चिकित्सा सेवाओं का विस्तार करने की अपेक्षा इसे शेयर बाजार में लगाने का निर्णय लिया गया है। शुरू में कुल धन का पांच प्रतिशत लगा कर देखा जायेगा। उसके परिणाम देखने के बाद इसे 15 प्रतिशत तक बढाया जा सकेगा।
मोदी सरकार का यह फैसला बहुत ही खतरनाक है। मज़दूरों से जिस काम के लिये पैसा वसूला गया, उसे उस काम पर न लगा कर अडाणियों व अम्बानियों को दिया जाना घोर मज़दूर विरोधी कदम है। इस बात की भी कोई गारंटी नहीं होगी कि मज़दूरों का यह पैसा शेयर मार्केट में सुरक्षित रह पायेगा, न जाने कब कौन सी कम्पनी दीवालिया घोषित होकर इस पैसे को डकार जाये। कम्पनियों द्वारा बैंकों के पैसे को डकारे जाने का उदाहरण सर्वविदित है।