इसलिए वे राष्ट्रपिता हैं – 1 “हमे यह नहीं भूलना चाहिए कि गांधी को हमने राष्ट्रपिता कहा है न कि भारत पिता या हिंदुस्तान का पिता । गांधी से पहले भारत या हिंदुस्तान देश था, लेकिन राष्ट्र नहीं था । देश भौगोलिक संकल्पना है। नदी, पहाड़, प्रदेश इनकी सीमाओ से बनता है । राष्ट्र तो उस देश मे रहने वाले नागरिकों के परस्पर साथ जीने के नित्य संकल्प से उजागर होता है। यह सटीक बात पद्मभूषण न्यायमूर्ति चन्द्रशेखर धर्माधिकारी ने राकेश पाण्डेय के संचयन व सम्पादन पुस्तक ‘गांधी और हिन्दी’ की भूमिका मे लिखी है । राष्ट्रवाद की विभिन्न अवधारणओं से आगे जाकर वे कहते हैं “ऐसी राष्ट्रभावना स्वतंत्रता आंदोलन मे गांधीजी ने निर्माण की। कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक और द्वारका से लेकर दिबरुगढ तक की जनता कंधे से कंधा मिला कर आजादी के आन्दोलन मे एक साथ, समानता और समान भावना से धर्म भाषा और प्रदेश पर आधारित भेदभाव भूलकर शामिल हुई ।” गांधीजी ने अनेक अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन चलाए उसमें देश के अमीर- गरीब, अनपढ़- पढक़र, बूढ़ेे-युवा, आदमी-औरत सभी ने भाग लिया तभी आजादी मिली और भारत एक राष्ट्र बना ।
इसलिए वे राष्ट्रपिता हैं – 2 भारत का प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन 1857 मे हुआ । अँग्रेजो ने बर्बरतापूर्ण कार्यवाही की । देश की आज़ादी के लिए गम्भीरतापूर्वक प्रयास होते रहे, बलिदान होते रहे इस बीच 1915 मे गांधीजी भारत आए। मेरे गांधी के लेखक नारायण देसाई लिखते हैं “जब भारत का जनसाधारण राजनीतिक स्वाधीनता के प्रति उदासीन था, गांधी ने उनमे एक राष्ट्रीय आंदोलन पैदा किया । इस लिहाज से, वे राष्ट्रपिता हैं ।” गांधीजी सकारात्मक राष्ट्रवाद के पैरोकार रहे वे सर्वसमावेशी, विभिन्नता मे एकता का सूत्र लेकर चले। सत्य , अहिंसा, सत्याग्रह उनके साधन रहे जो भारतीय जन मानस मे सदियों से स्थापित मूल्य है इससे उन्होंने विभिन्न धार्मिक, भाषाई, जातिगत, क्षेत्र, समुदाय को एक सूत्र मे समेटा । उन्होंने समान भावना जाग्रत की जो समान परम्परा , समान हित पर आधारित थी । महान सेनानी आजाद हिंद फौज के संस्थापक सुभाषचंद्र बोस जिनका आज़ादी का मार्ग पवित्र पर गांधीजी से भिन्न था ने गांधी को राष्ट्रपिता कहा ।
इसलिए वे राष्ट्रपिता हैं – 3 स्वतंत्रता कायर को नहीं मिलती – गांधी “करेंगे या मरेंगे। या तो हम भारत को आजाद करेंगे या आजादी की कोशिश मे प्राण दे देंगे।” राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने यह विचार 8 अगस्त 1942 को मुम्बई बड़ी संख्या मे उपस्थित अपने अहिंसक अनुयायीओ से कहे। उन्होंने आगे कहा “स्वतंत्रता के लिए हम प्राण दे देंगे …. जो जान देगा उसे जीवन मिलेगा और जो जान बचा लेगा जीवन से वंचित हो जाएगा स्वतंत्रता कायर या डरपोक को नहीं मिलती।” जैसे- जैसे भाषण समाप्ति की और बढ़ता गया वैसे- वैसे उनकी दृढता और स्पष्ट होती गई । फिर उन्होंने कहा “वर्तमान संघर्ष मे हमे खुल्लम खुल्ला कार्यवाही करनी है और अपनी छाती पर गोलियां खानी है और भागना नहीं है ।” उनका भाषण सुनकर लोग जोश से भर गए । गांधीजी सहित लाखो गिरफ्तार किए गए । बापू को भी जेल मे डाला गया कस्तूर बां , महादेव देसाई का जेल मे ही निधन हो गया । देश आजाद हो गया । गांधी सहित करोडो लोगों के समर्पण से हमे आजादी मिली। गांधीजी के मार्ग पर ज्यादा लोग चले इसलिए उनको राष्ट्रपिता कहते है ।
इसलिए वे राष्ट्रपिता हैं – 4 मैं दया की प्रार्थना नहीं कर रहा हूं- गांधी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने यंग इंडिया मे तीन लेख लिखे । जिनको ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध अनादर, घृणा और अप्रीति माना गया। उन्हें 11 मार्च, 1922 को गिरफ्तार किया और 18 मार्च को अदालत मे प्रस्तुत किया जहां उन्होनें कहा “मैं यहा किसी हल्की नहीं बल्कि बडी से बडी सजा को स्वीकार करने के लिए तैयार हूं । मैं दया की प्रार्थना नहीं कर रहा हूं, जुर्म को हल्का करने वाली किसी कार्यवाही को अपने बचाव के लिए पेश नहीं कर रहा हूं… जो भी बडी से बडी सजा दी जा सकती है मैं वहीं देने को कहता हूं और उसे खुशी से स्वीकार करूँगा। “न्यायाधीश ने 6 साल की सजा दी।
सिडनी रोलेट एक्ट के विरोध मे देशभर मे प्रदर्शन हुए, हिंसा हुई, जलियांवाला बाग, चोरी चौरा, मुम्बई, मद्रास की जिम्मेदारी गांधीजी ने ली। सजा के बाद गांधीजी ने कहा “निश्चित ही यह मेरी दृष्टि मे हल्की से हल्की सजा है ।” सच को स्वीकार करने, जिम्मेदारी लेने, अहिंसा और सत्याग्रह के मार्ग पर चलने से ही गांधी राष्ट्रपिता है ।
स्त्रोत – बापू ने कहा संकलन इसलिए वे राष्ट्रपिता हैं – 5 “स्वाभिमानी मनुष्य के सामने इसके सिवा दूसरा कोई सुरक्षित और सम्मान युक्त मार्ग नहीं है की आदेश का अनादर करने के बदले में जो दण्ड प्राप्त हो, उसे चुपचाप सहन कर लिया जाए । “यह बात गांधीजी ने जबरन नील की खेती के विरोध मे चम्पारण मे किए सत्याग्रह के दौरान तब कहीं जब उन्हें चम्पारण छोडऩे का आदेश दिया । गांधीजी ने आदेश नहीं माना कोर्ट मे पेश हुए । सरकारी वकील सुनवाई मुल्तवी रखना चाहते थे पर गांधी उसी समय सुनवाई चाहते थे । उन्होनें कहा “मुझे चम्पारण छोडऩे के नोटिस का अनादर करने का अपराध स्वीकार करना है । “फिर उन्होनें कहा” आप मुझे जो सजा देना चाहते है उसे कम कराने की भावना से मै यह बयान नहीं दे रहा हूं ।” कानून तोडना और इसके कारण मिलने वाली सजा को सहर्ष स्वीकार करना ना की उससे बचने के उपाय करना ही सत्याग्रह है । सत्याग्रह अथवा कानून की सविनय अवज्ञा की यह घटना उनको राष्ट्रपिता बनाती है जो सत्य की और ले जाती है ।
स्रोत – सत्य के प्रयोगइसलिए वे राष्ट्रपिता हैं – 6 सन 1908 का यह वाकिया इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ है। यह घटना बताती है की महान लोग अपने देश, उसूल के लिए व्यक्तिगत हित, परिवार हित का त्याग करते हैं । उन दिनो गांधीजी अफ्रीका मे थे और जबरन पंजीकरण के विरोध मे जेल मे थे उन को मित्र एलबर्ट वेस्ट पत्र मिला जिसमें पत्नि कस्तूर के अत्यधिक रक्तस्राव होने और अस्पताल मे भर्ती की जरूरत बताते हुए जुर्माना भरने और अपनी सजा कम करवाने को कहा जिससे उनकी उपस्थिति मे इलाज हो ।
गांधीजी ने कस्तूर को लिखा “तुम्हारे स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हूं पर मैं इस स्थिति मे नहीं हूं की वहा पहुचकर तुम्हारी देखभाल कर सकूँ । तुम जानती हो कि मैंने इस संघर्ष के लिए जीवन मे सब कुछ छोड़ दिया । …. तुम्हारी मृत्यु सत्याग्रह के लिए महान बलिदान होगी।” ऐसे ही महान त्याग के लिए गांधीजी राष्ट्रपिता हैं। -भारत दोसी