फरीदाबाद (म.मो.) अतिरिक्त सैशन जज के आदेश पर गबन, धोखाधड़ी व जालसाजी की गम्भीर धाराओं के तहत दिनांक 14 सितम्बर को दर्ज हुई एफआईआर पर कोई भी कार्रवाई करने पर खट्टर सरकार ने रोक लगा दी है। ‘मज़दूर मोर्चा’ शुरू से ही यह लिखता आ रहा है कि किसी भी छोटे या बड़े अधिकारी की हिम्मत नहीं हो सकती कि वह सरकारी संरक्षण एवं हिस्सा-पत्ती के बिना बड़े घपले-घोटाले कर सके। डीईओ मुनीष चौधरी इसका जीता-जागता एवं ताजा-तरीन उदाहरण है।
करीब 17-18 वर्ष पूर्व जब मुनीष सर्व शिक्षा अभियान में बतौर अधिकारी तैनात थी तो इन्होंने एक मुश्त 25 लाख 89 हजार का सरकारी चेक अपने खाते में जमा करा लिया था। उस तथा कुछ अन्य मामलों को लेकर उक्त मुकदमा थाना सेक्टर 17 में दर्ज हुआ था। नियमानुसार तो इस संज्ञेय अपराध में तुरन्त गिरफ्तारी के बाद तफ्तीश शुरू हो जानी चाहिये थी। गिरफ्तारी न सही अधिकारी का तुरन्त तबादले के बाद पूरे रेकॉर्ड की छानबीन तो शुरू हो ही जानी चाहिये थी। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। हो भी कैसे सकता है? जब ऊपर से नीचे तक सब खाऊ पीर बैठे हों और सबसे बड़ा संरक्षक स्थानीय सांसद एवं केन्द्रीय मंत्री हो।
उपलब्ध जानकारी के अनुसार सरकारी इशारों पर चलते हुए पुलिस ने मामले को ठंडे बस्ते में डाल कर इसे लम्बा लटकाये रखने की नीति अपनाई। मुकदमा दर्ज होने के बाद कार्रवाई के लिये सरकारी अनुमति की जरूरत समझ में आई तो एसीपी से डीसीपी व डीसीपी से मंडलायुक्त के बीच पत्राचार का सिलसिला चलाया गया। दिनांक 27.9.22 को मंडलायुक्त ने इधर-उधर घुमा कर कार्रवाई की परमीशन देने से इनकार कर दिया। संदेश बड़ा साफ है कि जब सरकार बेइमान तो चोर भी पहलवान। यदि शिकायतकर्ताओं के तमाम प्रयासों के बावजूद भी यह परमीशन न मिली तो मुनीष साफ बचकर निकल जायेगी। लेकिन मौसम सदैव एकसा नहीं रहता, मौसम के पलटी मारते ही सब कुछ बदल जाता है।
विदित है कि मुनीष द्वारा किये गये उक्त घोटाले की जांच तत्कालीन एडीसी संजय जून ने सम्पन्न करके मुनीष को न केवल निर्दोष घोषित कर दिया था बल्कि घोटाले की फाइल भी उस दिन से लापता है।
शिक्षा विभाग में सर्वशिक्षा अभियान घोटालों एवं लूट कमाई की एक खुली खान है। यहां पर खाने व खिलाने वाले में दम चाहिये, फिर रोकने-टोकने वाला कोई नहीं है। लूट कमाई की इस खान का मालिक बतौर चेयरमैन एडीसी ही होता है। तत्कालीन एडीसी संजय जून ही पिछले दिनों यहां के मंडलायुक्त रह चुके हैं। ऐसे में भला कोई मंडलायुक्त मुनीष के विरुद्ध आपराधिक मुकदमा चलाने की स्वीकृति कैसे दे सकता है? इस मामले को लेकर शिक्षा विभाग में यह चर्चा जोरों पर है कि मामले को रफा-दफा करने के लिये मुनीष की ओर से करीब दो करोड़ खर्च किये जा चुके हैं। क्या फर्क पड़ता है, जब अकूत धन लूट रखा हो तो दो-चार करोड़ खर्च हो भी जाय तो कोई बात नहीं।