मजदूर नेता शिव कुमार की गैरकानूनी हिरासत, टार्चर का मामला
चंडीगढ़। मजदूर संगठन इफटू के प्रांतीय संयोजक एवं आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर ने हाईकोर्ट की जाँच में दोषी पाए गए सोनीपत पुलिस के सभी पुलिस अधिकारियों ,चिकित्सा अधिकारियों व न्यायिक मजिस्ट्रेट के विरुद्ध तत्काल क्रिमिनल केस दर्ज करने की मांग की है । आरोप लगाया कि न्यायिक जाँच से प्रदेश सरकार का मजदूर व दलित विरोधी चेहरा बेनक़ाब हो गया है ।
कपूर ने बताया कि तीन कृषि कानूनों के विरुद्ध किसान आंदोलन के दौरान कुंडली औद्योगिक एरिया में किसानों के हक में संघर्षरत मजदूर नेता शिव कुमार को जनवरी 2021 में अवैध हिरासत में रख कर पुलिस ने गम्भीर यातनाएं दी । पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश पर इस मामले की न्यायिक जाँच में कुंडली पुलिस स्टेशन के तत्कालीन पुलिस अधिकारी , पुलिस को बचाने के लिए झूठी मेडिकल रिपोर्ट बनाने वाले सरकारी डॉक्टर व सोनीपत के तत्कालीन ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की मिलीभगत का पर्दाफाश हुआ है। जाँच में दोषी पाए गए सभी अधिकारियों के विरुद्ध तत्काल आपराधिक मुकदमे दर्ज करके फास्ट ट्रैक कोर्ट में कारवाई होनी चाहिए व बर्बरता के शिकार मजदूर नेता शिव कुमार को पचास लाख रुपये की वित्तीय सहायता सरकार को देनी चाहिए। हरियाणा में पूंजीवादी सरकारों द्वारा मजदूरों के शांतिपूर्ण आंदोलनों को बर्बरतापूर्वक कुचलने का लम्बा इतिहास है । कांग्रेस शासनकाल मे भी गुडग़ांव में मारुति , हीरो होंडा, पानीपत में टेक्सटाइल मजदूरों के आंदोलन पर पुलिस दमन उत्पीडऩ किया गया । ताकि पूंजीपति लोग मजदूरों को खुल कर लूट सकें । मजदूरों पर यही बर्बरता मौजूदा आरएसएस,बीजेपी सरकार कर रहीं है । लेकिन मजदूर वर्ग इस तानाशाही को बर्दाश्त नहीं करेगा ।
जांच अधिकारी की रिपोर्ट पीपी कपूर द्वारा दाखिल की गयी याचिका पर उच्च न्यायालय ने न्यायिक जांच के आदेश दिए। फरीदाबाद के तत्कालीन जिला एवं सत्र न्यायधीश दीपक गुप्ता को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया। बाद में दीपक गुप्ता का तबादला पंचकूला हो गया था। वहां से व पदोन्नत होकर इस माह हाईकोर्ट के जज भी बन चुके हैंं।
उन्होंने अपनी जांच रिपोर्ट में लिखा है कि कुंडली पुलिस ने मजदूर नेता शिव कुमार को जनवरी 2021 में उठाकर पांच दिन अपनी अवैध हिरासत में रखकर टॉर्चर किया और उसके बाद उनकी गिरफ्तारी डाली गयी। रिमांड लेने के लिए उन्हें न्यायिक मैजिस्ट्रेट विनय कक्कड़ के सामने पेश किया गया था। जांच अधिकारी ने इसे झूठ माना है, उनका मानना है कि रिमांड देते वक्त मैजिस्ट्रेट ने शिव कुमार को देखा तक नहीं है और बगैर देखें ही रिमांड दे दिया गया। वास्तव में उस समय शिव कुमार चलना तो दूर खड़े होने की हालत में भी नहीं थे। मैजिस्ट्रेट ने बिना देखें रिमांड देकर पुलिस की काली करतूतों को ढककर एक बड़ा अपराध किया है।
इसी प्रकार सिविल अस्पताल के तीन डॉक्टरों ने भी पुलिस के साथ साज-बाज होकर बुरी तरह से घायल एवं चलने में असमर्थ शिव कुमार को पूरी तरह स्वस्थ बताकर पुलिस के हवाले कर दिया था। यदि उन डॉक्टरों ने उनका पूरा ईमानदारी से पूरा मुआयना किया होता तो व उनको पुलिस को सौंपने की बजाए उनकी वास्तविक हालत का विवरण लिखकर तुरन्त अस्पताल में दाखिल कर लेते।
जांच अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में थाना कुंडली के एसएचओ रवि कुमार तथा अतिरिक्त एसएचओ शमशेर सिंह को इस केस का दोषी माना है। जांच में यह भी पाया गया कि टॉर्चर के लिए शिव कुमार को सीआईए में ले जाया गया था। इसके लिए एसएचओ द्वारा इन्कार करने को भी जांच अधिकारी ने अस्वीकार कर दिया। अपनी विस्तूत रिपोर्ट में जांच अधिकारी ने अपने निर्णय को पुख्ता सुबूतों एवं गवाहियों के आधार पर तैयार किया है, जिसे किसी भी तरह से झुठलाया नहीं जा सकता।
इस मामले में पुलिस तो दोषी है ही परन्तु सबसे बड़े दोषी वह मैजिस्ट्रेट साहब हैं जिन्होंने अपने अधिकार एवं कत्र्तव्य का सही ढंग से पालन न करके शिव कुमार को पुलिस के टॉर्चर का शिकार होने दिया। थाना पुलिस के साथ-साथ वे उच्चाधिकारी भी कम दोषी नहीं है जिनका काम थाने की सुपरविजन करना है। इसी प्रकार मैजिस्ट्रेट द्वारा किये गये अपराध को भी उसके ऊपर बैठे न्यायिक अधिकारियों ने नजर अंदाज करके अपने कत्र्तव्य के प्रति लापरवाही बरती है। इसी तरह दोषी डॉक्टरों की निगरानी करने वाले उच्चाधिकारी भी कम दोषी नहीं हैं।
इस देश का दुर्भाग्य है कि दीपक गुप्ता जैसे वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी द्वारा अपराधी घोषित किये गये उक्त लोगों को अब तक जेल नहीं भेजा गया और वह अभी तक अपनी-अपनी कुर्सियों पर तैनात रहकर इसी तरह के काले कारनामे करने को स्वतंत्र हैं।