आलीशान क्रिकेट स्टेडियम का सत्यानाश करके 222 करोड़ डकारने का जुगाड़

आलीशान क्रिकेट स्टेडियम का सत्यानाश करके 222 करोड़ डकारने का जुगाड़
December 21 02:01 2022

फरीदाबाद (म.मो.) सन 1981-82 में मयूर क्रिकेट स्टेडियम के नाम से बने इस शानदार स्टेडियम का नाम बदल कर पहले नाहर सिंह फिर राजा नाहर सिंह क्रिकेट स्टेडियम रखा गया। इसके निर्माण पर शहर की विभिन्न संस्थाओं एवं उद्योगपतियों के अलावा राज्य सरकार ने भी अच्छा-खासा खर्च किया था। नियमानुसार, बहुत ही करीने से, खेलने आने वाली दोनों टीमों के लिये अलग-अलग पेवेलियन बनाये गये थे। शानदार हरियाली घास से ग्राउंड की छवि देखते ही बनती थी।

करीब 11 अंतर्राष्ट्रीय तथा अनेकों रणर्जी ट्रॉफी मैचों का गवाह यह स्टेडियम तब उजडऩा शुरू हो गया जब हरियाणा क्रिकेट एसोसिएशन के ‘मालिक’ रणवीर सिंह महिन्द्रा की क्रिकेट राजनीति का नजला इस पर गिरा। विदित है कि अकूत धन राशि कमाने वाला यह क्रिकेट कारोबार स्टेडियमों के रख-रखाव एवं निर्माण आदि पर अच्छा-खासा खर्च करता है।

हरियाणा के इस एकमात्र स्टेडियम से मुंह फेर कर रणवीर ने अपने गृह जि़ले भिवानी के निकट लाहली गांव में एक नया स्टेडियम बना लिया। तमाम मैच वहीं होने लगे।
परिणामस्वरूप शहर के इस आलीशान स्टेडियम में लगी घास को पानी तक लगाने वाला कोई न रहा। जाहिर है कि देख-भाल के आभाव में स्टेडियम उजडऩे लगा। कभी इस स्टेडियम में सुबह-शाम क्रिकेट खेलने व देखने वालों की भीड़ लगी रहती थी, अब सुनसान रहने लगा था। सन 2014 में आई खट्टर सरकार पर स्टेडियम तथा बडखल झील के उद्धार का दबाव कुछ संगठनों द्वारा बनाया गया। दूसरी ओर गुजरात की व्यापार लॉबी पूरे देश में व्यापार के नाम पर लूट कमाई के अवसर ढूंढ रही थी। इसके चलते खट्टर ने 14 मई 2016 को इसके जीर्णोद्धार की घोषणा की।

करीब तीन साल बाद जनवरी 2019 में इस काम का ठेका रणजीत नामक एक गुजराती कम्पनी को 127 करोड़ में सौंप दिया गया था। काम पूरा करने की कई डेड लाइन निकल चुकी हैं। अब नई डेडलाइन 31 दिसम्बर 2023 रखी गई है। महंगाइ बढऩे के नाम पर लागत खर्च बढ़ा कर 222 करोड़ कर दिया गया है। अभी यह गारंटी भी नहीं है कि इसी रकम व इसी अवधि में काम पूरा हो जायेगा।

स्टेडियम की उपलब्धियां
सैंकड़ों करोड़ की बर्बादी के बाद बनने वाला सम्भावित स्टेडियम से शहर को क्या उपलब्धियां होंगी समय ही बतायेगा। लेकिन उजाड़े गये स्टेडियम ने शहर को दो टेस्ट प्लेयर, 25 रणजी प्लेयरों के अलावा अनेकों क्रिकेटर दिये हैं। इस स्टेडियम की शुरूआत बतौर क्रिकेट कोचिंग सेंटर के रूप में तत्कालीन कोच सरकार तलवार ने 1981-82 में शुरू की थी। उनके वक्त में यहां बाकायदा सरकारी क्रिकेट नर्सरी चलती थी। इसमें बड़ी संख्या में छोटे-बड़े बच्चे क्रिकेट सीखने व खेलने आते थे। आज उस नर्सरी का कोई अता-पता नहीं है।
दरअसल इस शानदार एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर के बने-बनाये स्टेडियम के तथाकथित जीर्णोद्धार का एकमात्र लक्ष्य सैंकड़ों करोड़ की लूट कमाई के अलावा कुछ भी नहीं है। विदित है कि शहर में बच्चों के खेलने के लिये साधारण मैदान तक नहीं है।

खिलाड़ी बच्चे 100-100 रुपये एकत्र करके डेढ-दो हजार रुपये देकर घंटे दो घंटे के लिये मैदान किराये पर लेने के लिये मजबूर होते हैं। दूसरी ओर खट्टर महाशय एक बने-बनाये आलीशान स्टेडियम के ‘जीर्णोद्धार’ पर सैंकड़ों करोड़ फूंक रहे हैं।

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Mazdoor Morcha
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