कविता/ हिन्दू राष्ट्र

कविता/ हिन्दू राष्ट्र
December 20 03:13 2022

हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हो चुकी थी; हिन्दू राष्ट्र के रोड़े हटाए जा चुके थे; मुसलमान, ईसाई और कम्युनिस्ट खदेड़ दिए गये थे; भारत माता की जय और वंदे मातरम् विशुद्ध हिन्दू नारे बनाये जा चुके थे। अब शासक भी हिन्दू थे और उनके दलाल और करिंदे भी; अयोध्या भी हिन्दू और आतंक भी; पुलिस का दरोगा भी और जज-मजिस्ट्रेट भी। जिनको वे लूटते-पीटते रहते थे वह जनता भी हिन्दू और सिफऱ् और सिर्फ हिन्दू बची थी।

नोटबंदी की कतार और जीएसटी की मार में बस हिन्दू ही हिन्दू! चैन-वैन से साँस लेने का चलन नहीं, गर्व से हिन्दू साँस खींचने का जमाना! दलित मुकम्मल पद-दलित हिन्दू और आदिवासी संसाधन रहित हिन्दू! कज़ऱ् में डूबता हिन्दू किसान, आत्मघात से दे देता अपनी हिन्दू जान! हिन्दू सेठ मुनाफ़े से लबरेज़ मुस्कुराता, हिन्दू श्रमिक के शोषण पर इतराता, हिन्दू बैंक से हिन्दू पैसा लेकर फरार हो जाता! हिन्दू ही किया करता हिंदू से व्यभिचार, हिंदू ही शिकारी और हिंदू ही शिकार!

हिन्दू हाथों में गौरक्षा विधान लिये, हिन्दू धरती पर बस हिंदू महान जिये। चाँद-सितारे और सूरज भी हिन्दू, हवा-पानी और कण-रज भी हिन्दू। हिन्दू दंगा हो और हो हिन्दू इंसाफ़, हिन्दू गंगा धुले सिफऱ् हिन्दू का पाप! मूर्तियाँ बनाने वाले सभी हिन्दू हों, मूर्तियाँ बनने वाले भी हों हिन्दू ही। शर्तिया बनाने वाले सभी हिन्दू हों, शर्तिया बनने वाले भी हों हिन्दू ही।

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Mazdoor Morcha
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