सत्यवीर सिंह ‘11 वोट वाले खाती को सरपंच बना दिया, तुम कैसे चौधरी हो’ रणधीर गोलन, विधायक,पुण्डरी, जि़ला कैथल रविवार 4 दिसंबर, शाम 5 बजे, फऱीदाबाद के बीके चौक पर ‘पिछड़ा वर्ग संयुक्त संघर्ष समिति, फरीदाबाद, क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा तथा शहर के तमाम न्यायप्रिय लोगों की और से, पुण्डरी विधायक रणधीर की घोर जातिवादी टिप्पणी के खि़लाफ़ ज़ोरदार प्रदर्शन आयोजित हुआ, जिसकी अध्यक्षता, क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा के उपाध्यक्ष कॉमरेड रामफल जांगड़ा ने की. ‘सामाजिक न्याय एवं अधिकार संघर्ष समिति’ के चेयरमैन दीनदयाल गौतम, देवेन्द्र जांगड़ा, अधिवक्ता राजेश अहलावत, क्रांतिकारी मज़दुर मोर्चा की ओर से कामरेड्स नरेश, सत्यवीर सिंह, बाबूलाल जी, महेश जी के साथ ही सामाजिक सरोकार रखने वाले, शहर के अनेक लोगों ने भाग लिया. ज़ोरदार नारों के बीच, हरियाणा सरकार को आह्वान किया गया कि पुण्डरी विधायक के खिलाफ जातिगत भावनाओं को ठेस पहुँचाने का मुक़दमा तत्काल दर्ज किया जाए, उनकी विधान सभा सदस्यता रद्द की जाए तथा विधायक गोलन जी सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगें. सरकार ने, अगर, इस जातिवादी, रुग्ण मानसिकता ग्रस्त ज़हनियत वाले और समाज को जातिगत आधार पर लड़ाने वाले विधायक के विरुद्ध कार्यवाही नहीं की, तो प्रदेश भर में ज़बरदस्त आक्रोश आन्दोलन आयोजित किए जाएँगे.
फऱीदाबाद के अलावा भी प्रदेश भर में तमाम न्यायप्रिय लोग, विधायक द्वारा की गई टिप्पणी पर, क्रोध से तमतमाए हुए हैं. कैथल में कई प्रदर्शनकारी युवाओं को उस वक़्त पुलिस हिरासत में भी लिया गया, जब वे कुरुक्षेत्र में हो रहे ‘गीता महोत्सव’ में भाग लेने जा रहे थे. लेकिन, अभी तक जातिवादी विधायक के विरुद्ध कोई कार्यवाही होने के संकेत नजऱ नहीं आए. 7 दिसंबर को भी कैथल में एक जन-आक्रोश सभा हुई जिसमें विधायक रणधीर गोलन के विरुद्ध कार्यवाही करने की मांग की गई.
जातिवादी कोढ़ जनित रुग्ण मानसिकता और दंभ, समाज के एक हिस्से में इस क़दर भरी हुई है कि जऱा सी हताशा से बाहर छलक पड़ती है. ज्यादा तक़लीफ़देह बात ये है कि ऐसी ज़हरीली ज़हनियत वाले लोग, सभी बुर्जुआ पार्टियों और खास तौर पर भाजपा द्वारा प्रश्रय पाते हैं. सदियों से दबे-कुचले, साधनहीन समाज से सम्बन्ध रखने वाला कोई व्यक्ति, अगर, दबे-कुचले वर्ग की तक़लीफों के प्रति सच्ची संवेदनशीलता और हमदर्दी की बदौलत, इन साधन संपन्न, रसूखदार, स्वयंघोषित ‘चौधरियों’ के मुक़ाबले कोई चुनाव जीत जाता है, तब इनका जातिवाद दम्भ उबाल मारने लगता है और फिर वही ज़हरीला लावा उनके मुंह से फूट पड़ता है. ‘सारा खेड़ी’ गाँव में, जो जिले के पुण्डरी विधानसभा क्षेत्र में आता है, अति पिछड़ी, ‘खांटी (जांगड़ा-विश्वकर्मा)’ जाति के कुल 11 वोट हैं लेकिन फिर भी उसी जाति में जन्मे एक व्यक्ति ने हाल में हुआ सरपच का चुनाव जीत लिया. ये घटना तो उस क्षेत्र के विधानसभा प्रतिनिधि के लिए गर्व करने की थी कि किसी व्यक्ति ने अपनी जाति के नाम पर नहीं बल्कि अपनी छवि और कारकिर्दगी के आधार पर चुनाव जीता, जैसा दुर्भाग्य से हमारे देश में कम ही होता है. हुआ इसके उलट. तथाकथित अगड़ी बहुसंख्यक अपनी जाति ‘रोड़’ के स्वयंभू ठेकेदार, रंधीर सिंह गोलन, विधायक पुण्डरी, के पेट में ऐसी मरोड़ उठी, कि वे अपने अन्दर छुपे ज़हरीले जातिवादी दंभ के लावे को दबाए रखने का नियंत्रण खो गए. ‘माननीयता’ वाले,ऊपरी छद्म आवरण को चीरकर, उनके असल विचार उजागर हो गए. कुरुक्षेत्र में संघ प्रायोजित ‘गीता महोत्सव’ में, 26 नवम्बर को एक सभा में बोलते हुए, गोलन ने फऱमाया, ‘11 वोट वाले खाती को सरपंच बना दिया तुम कैसे चौधरी हो’. वैकल्पिक सोशल मीडिया की बदौलत द्वारा फ़ैली इस ख़बर पर जब जन-आक्रोश फूट पड़ा तो ‘माननीय’ विधायक को समझ आया कि गुस्से में तमतमाए लोग उन्हें दौड़ा लेंगे. उसी डर से, उन्होंने बंद कमरे में माफ़ी माँगते हुए एक विडियो बनाया और उसे वायरल कर मामले को रफ़ा-दफ़ा करने की कोशिश की, लेकिन उनकी इस कायराना हरक़त में वे क़ामयाब नहीं हुए. हरियाणा का जागरुक समाज उनके विरोध में उठ खड़ा हुआ.
‘रोड़’ जाति के स्वयंभू ठेकेदार, रंधीर गोलन का पिछला इतिहास बाक़ी जातिवादियों जैसा ही है. 2014 में वे भाजपा के विधायक बने. भाजपा सरकार ने उन्हें ‘हरियाणा पर्यटन विकास निगम’ का चेयरमैन बनाया. पर्यटन विभाग का उन्होंने ऐसा विकास किया कि उनका रिकॉर्ड भाजपा के मापदंड पर भी खरा नहीं उतरा. साथ ही, उनके विरुद्ध उनकी पुत्रवधू द्वारा दहेज़ प्रताडऩा का मुक़दमा दायर होने के बाद, उन्हें भाजपा ने भी टिकट देने से इंकार कर दिया. इस ‘अपमान’ को अपनी समस्त जाति का अपमान बताते हुए, उन्होंने, 2019 विधानसभा चुनाव में, ख़ुद को ‘पीडि़त’ की तरह प्रस्तुत किया, टसुए बहाए और चुनाव जीत गए. जीतने के बाद, उनकी ‘किस्मत’ बुलंद हुई, भाजपा-जजपा दोनों मिलकर भी 46 विधायकों का बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाए.
भाजपा को निर्दलीय विधायकों की मदद की दरक़ार हुई और ‘माननीय’ गोलन जी तत्काल उसी पार्टी की ‘मदद’ को मचल गए, जिसे कोसते हुए, जिसके दमन का ख़ुद को पीडि़त बताते हुए वे चुनाव जीते थे. गऱीबों को मिलने वाली बची-खुची सब्सिडी को देश पर बोझ बताते हुए, ‘रेवड़ी संस्कृति’ का विरोध करने का पाखंड करने वाली भाजपा, उनसे ‘मदद’ ग्रहण कर सरकार बनाने के बाद, उन्हें मंत्री पद से तो नहीं नवाज़ पाई लेकिन फिर भी ‘जन-सेवा’ के लिए उन्हें ‘हरियाणा पशुधन विकास बोर्ड’ का चेयरमैन बना दिया. पशुधन के विकास के लिए ‘माननीय’ ने कौन सा तीर मारा है, ये हरियाणा के लोग अच्छी तरह जानते हैं!! ये कारनामा, चूँकि, भाजपा ने किया है इसलिए इसे कृपया ‘रेवड़ी संस्कृति’ ना समझा जाए!! समस्त ‘रोड़’ जाति को अपनी निजी पूंजी समझने वाले और उसे विश्वकर्मा जाति के विरुद्ध भडक़ाने वाले, इन ‘माननीय’ विधायक की एक और ‘ख्याति’ भी हरियाणा के लोगों को मालूम है. चंडीगढ़ से प्रकाशित ‘द ट्रिब्यून’ की 9 जुलाई, 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, उनकी पुत्रवधू शैलजा ने पुलिस में एफआईआर दजऱ् कराई. उनकी शादी विधायक जी के सुपुत्र अमन गोलन से हुई थी. उनका बयान है कि शादी के बाद से ही, ‘माननीय’ विधायक समेत, समस्त गोलन परिवार उन्हें ना सिफऱ् और दहेज़ लाने के लिए आतंकित कर रहा था, बल्कि लडक़े की बजाए लडक़ी पैदा करने के ‘गुनाह’ के लिए भी उन्हें लगातार सज़ा दे रहा था. उन्हें उनके मायके करनाल छोड़ दिया गया है. विधायक जी ने, हालाँकि, इन आरोपों को निराधार बताया. समाज में जातिवादी कोढ़ की वज़ह क्या है?
शायद ही कोई दिन जाता हो, जब कलेजा चीरने वाली ऐसी ख़बर ना पढऩे को मिले, कि मासूम बेक़सूर लोगों को महज़ इसलिए भेदभाव, अपमान, प्रताडऩा और कई बार तो भयानक बर्बरता झेलनी पड़ी कि उनका जन्म एक विशेष जाति में हुआ था. 1936 में प्रकाशित, डॉ अम्बेडकर की शानदार रचना ‘जाति का उन्मूलन (Annihilation)’ को एक ज़माना बीत गया. छुआछूत भी आज कानूनी जुर्म है. संविधान, किसी भी तरह की सामाजिक गैर-बराबरी को स्वीकार नहीं करता, लेकिन जाति-उन्मूलन तो छोडिए, जाति-द्वेष और ज्यादा गहरा होता नजऱ आ रहा है. आज वैसा आनुवंशिक श्रम-विभाजन या वर्ण-विभाजन मौजूद नहीं है, जिसने जाति व्यवस्था को जन्म दिया था और जिसने जाति व्यवस्था को, समाज के बड़े और मेहनतक़श हिस्से की प्रताडऩा और शोषण का घातक औज़ार बनाया. फिर भी, लेकिन, जातिगत उत्पीडऩ ना सिफऱ् मौजूद है बल्कि वह दिन-ब-दिन और अधिक मुखर, और अधिक पीड़ादायक होता जा रहा है.
‘भारत में ब्रिटिश राज्य और उसके आगामी परिणाम (The Future Result of British Rule in)’ नामक लेख में कार्ल मार्क्स ने 1853 में लिखा था, “रेल व्यवस्था प्रस्थापित होने से, वज़ूद में आया आधुनिक उद्योग, उस आनुवंशिक श्रम विभाजन को नष्ट कर डालेगा जिस पर भारत में मौजूद जातियां टिकी हुई हैं और जो भारत के विकास और उसके शक्तिशाली होने की राह में रोड़ा हैं.” रेल व्यवस्था का बहुत ही सघन, महीन जाल देशभर में बिछ चुका है. औद्योगिक विकास भी चरम पर पहुँच गया. आनुवंशिक श्रम विभाजन भी नहीं रहा. अर्थात पूंजीवादी व्यवस्था देश के कोने-कोने में सर्वग्राही रूप में फैलकर अपने अधिकतम विकास के शिखर को छू चुकी. जाति व्यवस्था का भौतिक आधार समाप्त हो गया, फिर भी जाति व्यवस्था नहीं जाती. वह समाप्त नहीं हुई या उसे समाप्त नहीं होने दिया गया? मूल प्रश्न ये है.
उत्तर स्पष्ट है. देश में पूंजीवादी सत्ता, मार्क्स के उक्त कथन के 94 साल बाद, उस वक़्त प्रस्थापित हुई, जब वह, प्रतिक्रियावादी ही नहीं, उस हद तक संकटग्रस्त हो चुकी थी, कि लगभग एक तिहाई दुनिया में समाप्त हो चुकी थी. जन्मजात रोगी, पूंजीवाद ने, हमारे देश में, बहुत चालाकी से समाज में मौजूद किसी भी सामंती बीमारी को पूरी तरह समाप्त नहीं होने दिया. उतना ही ‘जनवाद’ लाया गया जितना उसके मुनाफ़ा कूटने के लिए आवश्यक था. जातिवाद, मज़हबी ज़हालत, पित्रसत्तावाद, ये सारे के सारे रोग, हमारे देश में पूंजीवाद की शुरुआत से ही मौजूद रहे. सामंतवादी सोच के विरुद्ध सामाजिक क्रांति करना, उस वक़्त पूंजीवादी राजसत्ता के हित में नहीं था, इसलिए उस ओर कोई क़दम नहीं उठाया गया. ऐसा नहीं कि ये भूलवश हुआ. आज, जब व्यवस्थाजन्य संकट असाध्य हो गया है, तो इन ज़ख्मों को नए सिरे से कुरेदा जा रहा है, फोड़े को और पकाया जा रहा है, इन रोगों को बढ़ावा दिया जा रहा है. ये काम, सत्ताधारी पार्टियों द्वारा, पहले छुपे तरीक़े से होता था, आज डंके की चोट पर हो रहा है. बस इतना फर्क़ है.
सनातनी हिन्दू राष्ट्र बनाने, संविधान का सत्यानाश करने के लिए उसका भगवाकरण करने, मनु-स्मृति को लागू करने की बातें, आज महज़ बातें नहीं रह गई हैं. इस विनाशकारी रास्ते पर हम काफ़ी दूर निकल चुके हैं. ऐसे में, अगर महिला उत्पीडन, दलित दमन, अल्पसंख्यकों पर अन्याय विकराल रूप लेते जा रहे हैं, तो क्या इसकी वज़ह सामंतवाद है? पूंजी, साम्राज्यवादी, इजारेदार पूंजी, सट्टेबाज़ वित्तीय पूंजी की अवस्था तक पहुँचने के बाद, आज जब उसका आधा शरीर क़ब्र में है, तब क्या वह सामंती उत्पादन संबंधों की ओर लौटेगी? क्या पुण्डरी के विधायक ने, ये जातिगत टिप्पणी, जिसका हर जिंदा इन्सान ने पूरी ताक़त से विरोध करना चाहिए, अपना सामंती शोषण ज़ारी रखने के लिए की है? किसी भी जाति का व्यक्ति हो, क्या आज कोई उसकी रैय्यत है? भले कोई किसान महज एक एकड़ ज़मीन का मालिक क्यों ना हो, या खेत मज़दूर ही क्यों ना हो, क्या वह विधायक किसी से ज़बरन अपनी बेगार करा सकता है?
जातिवादी दमन की दो मुख्य वज़ह हैं. पहली, लंगड़े-लूले-पैदायशी रुग्ण पूंजीवाद ने समाज के व्यापक जनवादीकरण की प्रक्रिया को उसके अंजाम तक नहीं पहुँचाया. इसलिए सड़ी सामंती ज़हनियत, समाज के एक बड़े हिस्से की खोपड़ी में मौजूद है. जऱा से झटके से वह बाहर छलक पड़ती है. रणधीर गोलन तो ‘माननीय’ विधायक हैं, मिथ्या ही सही, आज के ज़माने में हेंकड़ी की एक वज़ह उनके पास है, लेकिन राजस्थान के उस स्कूल मास्टर के दिमाग में ‘सामंती’ अकड़ आने की क्या वज़ह थी, जिसने एक मासूम बच्चे को पीट-पीटकर इसलिए मार डाला, क्योंकि उसे प्यास लगी थी और उसने घड़े से पानी पी लिया था. उस विडियो में उस स्तर का वहशीपन है कि उसे देखा नहीं जाता. जाति दम्भ के नशे में, कंगालिकरण को प्राप्त हुआ व्यक्ति भी उत्पीडक़ बन जाता है क्योंकि उसकी ज़हानियत में भी वह बीमारी मौजूद है. दूसरी वज़ह ये है कि आज हर कि़स्म का उत्पीडक़ राज्य से प्रश्रय पा रहा है. सरकारें बलात्कारियों को जेलों से रिहा करा रही हैं, बाबाओं को पेरोल पर छुड़ा रही हैं जिससे वे गपोड़पंथी प्रवचन कर सकें. चुने प्रतिनिधि ऐसे बलात्कारी बाबाओं को सबके सामने, कैमरे पर अपना पिताजी संबोधित करते हैं. ये सब अंजाने में नहीं हो रहा. पूंजीवाद अंजाने में कुछ नहीं करता. राज-सत्ता को आज इस पाखंड की ज़रूरत महसूस हो रही है. वर्त्तमान व्यवस्था को आज जनवाद, बराबरी, जाति-उन्मूलन, धर्मनिरपेक्षता, स्त्री सशक्तिकरण की नहीं, अपनी जान की चिंता है. जातिवादी दम्भियों समेत, अधिकतर उत्पीडक़, आज, उत्पीडऩ के विडियो ख़ुद बनाकर वायरल करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि इसके लिए वे पुरष्कृत होंगे, बड़ी कुर्सी पाएँगे. वे राज-सत्ता की उपयोग की वस्तु हैं.
जातिगत दमन और अल्पसंख्यक दमन के हर मुद्दे को अधिकतम गंभीरता से लिए जाने की ज़रूरत है. मात्र दमित जाति या मज़हब को ही नहीं, बल्कि सारे जागरुक, जि़म्मेदार समाज को इनके खि़लाफ़ एक साथ उठ खड़े होना चाहिए. हर जातिवादी, मज़हबी हिमाक़त का मुंहतोड़ जवाब दिया जाना ज़रूरी है. पुण्डरी विधायक द्वारा, भरी सभा में किए गए शर्मनाक गुनाह को, उनके द्वारा बंद कमरे में माफ़ी मांगने के बाद, जाने नहीं दिया जाना चाहिए. उनकी विधान सभा सदस्यता समाप्त होने, न्यायोचित दंड मिलने तक आक्रोश प्रदर्शन ज़ारी रहने चाहिएं. उनका सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए. लेकिन इतना काफ़ी नहीं, ये पूरे कार्य का एक हिस्सा मात्र है. समाज का अतिरिक्त शोषित और सबसे लड़ाकू तबक़ा, तब ही वर्ग चेतना से लैस होकर निर्णायक क्रांतिकारी संघर्ष में उतरेगा, जब उसके अतिरिक्त शोषण के विरुद्ध सारा शोषित समाज उसका कॉमरेड बनेगा. सिफऱ् द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सैद्धांतिक पाठ पढाना काफी नहीं.
उसके बाद ही, समूचे मेहनतक़श, मज़दूर वर्ग के गुस्से की ज़द में समाज के असली दुश्मन, पूंजीवाद-साम्राज्यवाद-फासीवाद को लिया जा सकेगा. तब ही उस पर निर्णायक जित हांसिल होगी और उसके बाद ही ये सारे रोग हमेशा-हमेशा के लिए समूल नष्ट होंगे. आज, संविधान द्वारा मिली जो भी जनवादी जगह, आज़ादी मौजूद है, उसे भी ये मानवद्रोही व्यवस्था निगलती जा रही है. इसे रोकना होगा. रामधारी सिंह दिनकर की ये कालजयी पंक्तियाँ आज हर जिंदा इन्सान को, हर रोज़ पढऩा ज़रूरी है.
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध तटस्थ रहना आज कोई विकल्प रह ही नहीं गया है, वह आज घोर अपराध है. जातिवाद के कोढ़ की जड़ को अगर हम ठीक से नहीं समझे तो मेहनत बेक़ार चली जाएगी. हम मवाद को पोंछते जाएँगे और असली नासूर अपनी जगह फलता-फूलता रहेगा. इन जातिवादियों, पित्रसत्तावादियों, हिन्दुत्ववादी बहुसंख्यकवादियों के पीछे छुपे असली दुश्मन को पहचानकर, उसे अपने निशाने पर लेना होगा.