फरीदाबाद (म. मो.) करीब डेढ साल पहले सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सूरज कुंड क्षेत्र स्थित खोरी गांव से उजाड़े गये कुछ गरीब मज़दूरों को वैकल्पिक आवास उपलब्ध कराये गये थे। अरावली के क्षेत्र में पंचतारा होटलों के बीच स्थित गरीबों की यह बस्ती मखमल में टाट के पैबंद जैसी लग रही थी। इसलिये वन संरक्षण के नाम पर सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें उजाडऩे का आदेश दिया था। ज्यादा हो हल्ला मचने पर शर्मा-शर्मी इसी कोर्ट ने उजड़े लोगों के पुनर्वास की ब्यवस्था करने के आदेश भी हरियाणा सरकार को दिये थे।
कई महीनों तक इन उजड़े गरीबों को भटकाने के बाद नगर निगम की निगाह डबुआ कॉलोनी स्थित उन खंडहरनुमा 3200 फ्लैटों पर पड़ी जिनका निर्माण जेएनयूआरएम के तहत करीब 15 वर्ष पहले किया गया था। इनकी घटिया क्वालिटी तथा आवंटन की कड़ी शर्तों के चलते मात्र पांच प्रतिशत फ्लैटों का ही आवंटन हो सका था। इस बीच खाली पड़े इन फ्लैटों की हालत बद से बद्तर हो चुकी थी। खोरी विस्थापितों को यहां बसाने का निर्णय तो निगम ने ले लिया लेकिन आवंटन प्रक्रिया इतनी कठिन रख दी कि उसे पूरा कर पाना हरेक के बस का न था। आधार कार्ड, बोटर कार्ड तथा राशन कार्ड आदि के साथ-साथ 10 हजार रुपये नकद तथा 1950 रुपये मासिक, 20 वर्ष तक भरने होंगे। जिस गरीब को महीने भर में मिलते ही केवल 10 हजार हों तो वह कैसे और कहां से इतने रकम निगम को दे पायेगा?
जिन 141 लोगों ने जैसे-तैसे तमाम शर्तें पूरी करके ये दड़बेनुमा फ्लैट ले भी लिये तो इनमें से केवल 104 लोग ही रहने के लिये आये। इन लोगों ने पाया कि यहां न तो बिजली, पानी सीवर की कोई व्यवस्था है और न ही कोई सफाई एवं नागरिक सुविधाओं की। गौरतलब है कि खोरी से उजाड़े गये परिवारों की संख्या 10 हजार से अधिक है।
बीते करीब आठ महीने से इन फ्लैटों में नारकीय जीवन जी रहे इन लोगों की गोहार जब किसी अधिकारी ने नहीं सुनी तो इन लोगों ने जैसे-तैसे सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई।
परिणामस्वरूप सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर यहां एक जांच कमेटी मौका मुआयना करने दिनांक 12 को भेजी गई। इसमें एक सिविल इंजीनियर कंकन चक्रवर्ती, एक स्ट्रेक्चरल इंजीनियर के. चक्रवर्ती और एक आर्किटेक्ट इंशिप्ता मंडल थे। जांच को प्रभावित करने के लिये निगम के तमाम बड़े अधिकारी भी मौके पर पहुंचे हुए थे। निगमायुक्त जितेन्द्र दहिया बेशक सामने नहीं दीख रहे थे, लेकिन थे वहीं आस-पास ही। सामने दिखाई देने वालों में ज्वायंट कमिश्नर गौरव अंतील तथा एसडीओ से लेकर चीफ इंजीनियर तक सभी अफसर शिकायतकर्ताओं की आवाज़ दबाने का प्रयास करते नज़र आ रहे थे। इनमें से एक इंजीनियर तो यह कहते भी सुना गया कि नगर निगम ने एक करोड़ पांच लाख रुपये बिजली विभाग में जमा करा दिये हैं ताकि बिजली चालू हो सके।
है न गजब; साल भर से लोग रह रहे हैं और ये साहेबान अभी पैसे जमा करने की बात कह रहे हैं। ऐसे ही लचर तर्क अन्य सुविधाओं को लेकर भी दिये जा रहे थे। इनका प्रयास था कि ये लोग जांच टीम के सामने ज्यादा कुछ न बोलें।
जांच टीम ने पत्रकारों को कुछ भी बताने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वे अपनी रिपोर्ट सीधे सुप्रीम कोर्ट को ही देंगे।