हरभगवान चावला वह बड़ा आदमी बड़े दु:ख में था सिफऱ् दु:ख में होना काफ़ी नहीं था वह शानदार डिज़ाइनर पोशाक में भी था उसके डिज़ाइनर हैट ने तो गज़़ब ढा दिया था दु:ख के माहौल में भी इसने लोगों को गुदगुदाया दु:ख में अगरचे ऐसी पोशाक पाप जैसी थी पर ऐसी ही पोशाकें उसकी पहचान थीं एक दु:ख के लिए वह पहचान क्यों खोता? सो, पोशाक में वह था, उसके भीतर दु:ख था दु:ख में भी उसे अपना कर्त्तव्य पालन करना था भाषण उसका कर्त्तव्य था, भाषण उसका शौक़ भी था भाषण के दौरान उसने बार-बार याद दिलाया कि भाषण देकर वह अपने कर्त्तव्य का निर्वहन कर रहा है भाषण के दौरान वह इस दु:ख का उल्लेख करता रहा रह-रहकर उसकी आँखों से दु:ख ऐसे छलकता रहा जैसे कीचड़ से भरी सडक़ों पर दौड़ती चमचमाती गाड़ी के पहियों के नीचे उछल-उछल जाता है कीचड़ कर्त्तव्य के लिए आयोजित भाषण के बाद चर्चा न दु:ख की थी, न कर्त्तव्य भाषण की चर्चा में उसकी पोशाक रही, सबसे बढक़र हैट रहा चर्चा में और रहे भी क्यों नहीं – ऐसे दु:ख तो रोज़ घटते हैं, भाषण भी रोज़ होते हैं इतना विलक्षण, इतना भव्य हैट कब देखने को मिलता है?