पोशाक में दु:ख

पोशाक में दु:ख
November 13 10:40 2022

हरभगवान चावला

वह बड़ा आदमी बड़े दु:ख में था
सिफऱ् दु:ख में होना काफ़ी नहीं था
वह शानदार डिज़ाइनर पोशाक में भी था
उसके डिज़ाइनर हैट ने तो गज़़ब ढा दिया था
दु:ख के माहौल में भी इसने लोगों को गुदगुदाया
दु:ख में अगरचे ऐसी पोशाक पाप जैसी थी
पर ऐसी ही पोशाकें उसकी पहचान थीं
एक दु:ख के लिए वह पहचान क्यों खोता?
सो, पोशाक में वह था, उसके भीतर दु:ख था
दु:ख में भी उसे अपना कर्त्तव्य पालन करना था
भाषण उसका कर्त्तव्य था, भाषण उसका शौक़ भी था
भाषण के दौरान उसने बार-बार याद दिलाया
कि भाषण देकर वह अपने कर्त्तव्य का निर्वहन कर रहा है
भाषण के दौरान वह इस दु:ख का उल्लेख करता रहा
रह-रहकर उसकी आँखों से दु:ख ऐसे छलकता रहा
जैसे कीचड़ से भरी सडक़ों पर दौड़ती चमचमाती
गाड़ी के पहियों के नीचे उछल-उछल जाता है कीचड़
कर्त्तव्य के लिए आयोजित भाषण के बाद
चर्चा न दु:ख की थी, न कर्त्तव्य भाषण की
चर्चा में उसकी पोशाक रही, सबसे बढक़र हैट रहा चर्चा में
और रहे भी क्यों नहीं –
ऐसे दु:ख तो रोज़ घटते हैं, भाषण भी रोज़ होते हैं
इतना विलक्षण, इतना भव्य हैट कब देखने को मिलता है?

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