विवेक कुमार फरीदाबाद (म.मो) अचानक इंडिया टीवी के एक चापलूसी पोस्टर पर नजर पड़ी जिसमे “मोदी की चीते वाली चाल” टाइटल से एक शो किया जाना बताया गया था। जबकि पोस्टर में मोदी के साथ तेंदुए की तस्वीर फॉटोशॉप की हुई थी। सोचा कि जब देश के मुख्य टीवी चैनल को ही नहीं पता कि तेंदुए और चीते में क्या अंतर है तो मोदी ने इतना बड़ा चीता मँगा कर ख्वामखाह ही इतने नोट फूँक दिए जबकि बचे पैसों से एक कुर्ता और सिलवा लेते। अबे जंगली बिल्ली पकड़ के चीता बोल देते तो भी क्या ही पता चलता किसी को और चल जाता तो क्या ही हो जाता।
फिर थोड़ा और सोचा कि यार चीते आए हुए हैं, हम कब देखेंगे उसे? इंटरनेट खोला तो देखा कि भाई एक तो प्रेग्नेंट है। फिर दूसरी खबर देखी कि नहीं है। तब तक अखबार उठा लिया तो देखा कि प्रेग्नेंट थी पर मिसकैरेज हो गया ऐसा किसी अधिकारी ने बताया। मुझे तो लगता है कि चीते ने मोदी के साथ वही तेंदुए वाला इंडिया टीवी का पोस्टर देख लिया कि नाम तो मेरा और फोटो सौतन की।
ऐसा ही एक पोस्टर गाय के नाम पर भी पहले दिल्ली के टोडापुर गाँव में दिखा था कि “गाय को बचाना है उसे राष्ट्रीय पशु बनाना है” और ठीक उसके नीचे गाय मरी पड़ी थी। बहरहाल हम इस बात की ताल ठोंक कर चुनौती देते हैं कि मोदी जी और उनके चेले विडाल बिल्लियों की बिंदी प्रजाति की फोटो देखकर नाम और उनका प्राकृतिक आवास बता दें तो हम मान लेंगे कि दुनिया का सारा ज्ञान पुराणों में है। खैर, चीता इम्पोर्ट हुआ और उसके नाम का भी फीता कटा पर असल में हम दुनिया भर में जिस जानवर के नाम से जाने जाते हैं उसका नाम है बाघ और उसके लिए क्या किया सरकार ने इसपर आजकल कोई बात ही नहीं होती। तो यहाँ से बात होगी भारत में बाघ की क्योंकि उसे बनाना वनाना कुछ नहीं वह पहले ही राष्ट्रीय पशु है और उसे किसी मोदी के फर्जी मार्केटिंग की भी जरूरत नहीं। उसे तो जरूरत है सरकार की ईमानदार कोशिश की।
कम ही लोग यकीन करेंगे कि बाघों के अंगों की तस्करी में अव्वल है भारत, जबकि चीन बहुत पीछे है। 23 वर्षों में बाघों की अवैध तस्करी की दुनिया भर में कुल 2,205 घटनाएं सामने आई हैं जिनमें से 34 फीसदी यानी ।59 घटनाएं अकेले भारत में दर्ज की गई हैं।
“डाउन टू अर्थ” पत्रिका की रिपोर्ट की माने तो एक तरफ देश में जहां बाघों को बचाने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं वहीं साथ ही भारत में इनका अवैध व्यापार बाकी कई अवैध व्यापारों की ही तरह दिन रात बढ़ रहा है। पिछले 23 वर्षों में इनकी अवैध तस्करी की दुनिया भर में कुल 2,205 घटनाएं सामने आई हैं जिनमें से 34 फीसदी यानी ।59 घटनाएं अकेले भारत में दर्ज की गई हैं। जो 893 यानी जब्त किए गए 26 फीसदी बाघों के बराबर है।
रिपोर्ट के अनुसार पिछले 23 वर्षों में जनवरी 2000 से जून 2022 के बीच 50 देशों और क्षेत्रों में बाघों और उनके अंगों की तस्करी की यह जो घटनाएं सामने आई हैं उनमें कुल 3,377 बाघों के बराबर अंगों की तस्करी की गई है। गौरतलब है कि दुनिया में अब केवल 4,500 बाघ ही बचे हैं, जिनमें से 2,967 भारत में हैं । बताते चलें कि 20वीं सदी के आरम्भ में इनकी संख्या एक लाख से ज्यादा थी।
ऐसे में यदि इसी तरह उनका शिकार और तस्करी होती रही तो यह दिन दूर नहीं जब दुनिया में यह विशाल बिल्ली प्रजाति जल्द ही विलुप्त हो जाएगी। गौरतलब है कि इनकी बरामदगी 50 देशों और क्षेत्रों से हुई है, लेकिन इसमें एक बड़ी हिस्सेदारी उन 13 देशों की थी जहां अभी भी बाघ जंगलों में देखे जा सकते हैं।
रिपोर्ट से पता चला है कि पिछले 23 वर्षों में तस्करी की जितनी घटनाएं सामने आई हैं उनमें से 902 घटनाओं में बाघ की खाल बरामद की गई थी। इसके बाद 608 घटनाओं में पूरे बाघ और 411 घटनाओं में उनकी हड्डियां बरामद की गई थी। ट्रैफिक ने आगाह किया कि है कि बरामदी की यह घटनाएं बड़े पैमाने पर होते इनके अवैध व्यापार को दर्शाती हैं लेकिन यह इनके अवैध व्यापार की पूरी तस्वीर नहीं हैं क्योंकि बहुत से मामलों में यह घटनाएं सामने ही नहीं आती हैं।
2018 के बाद से भारत में बाघों के अवैध शिकार की घटना बढ़ी हैं। भारत और वियतनाम में इस तरह की घटनाओं में वृद्धि दर्ज की गई है। भारत में तो बाघ से जमीन खाली कराने के नए तरीके मोदी राज में स्थापित होते जा रहे हैं जिनमे से अवनी नामक बाघिन का यवतमाल में प्रशासन द्वारा मारा जाना प्रमुख घटना है। इसी पर विद्या बालन की फिल्म शेरनी भी बनी। रिपोर्ट में जो आंकड़े सामने आए हैं उनके अनुसार 2022 की पहली छमाही में भी स्थिति गंभीर बनी हुई है। इस दौरान इंडोनेशिया, थाईलैंड और रूस ने पिछले दो दशकों में जनवरी से जून की तुलना में बरामदी की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है। अकेले इंडोनेशिया में 2022 के पहले छह महीनों में करीब 18 बाघों के बराबर अवैध तस्करी की घटनाएं सामने आई है जो 2021 में सामने आई तस्करी किए बाघों की कुल संख्या से भी ज्यादा हैं।
इन आंकड़ों को देख कर मोदी और उनके चेलों को अगले चुनाव में बैठे बिठाए एक भयंकर प्रचार का साधन मिल सकता है, पर कैसे? हम बताते जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक शायद हम आखिरी पीढ़ी हो सकते हैं जो बाघों को उनके प्राकृतिक आवास में देख रही है। इसके बाद शायद वे भी जंगलों से विलुप्त हो जाएँ और मोदी जी को किसी अन्य देश के चिडिय़ाघर से टाइगर इम्पोर्ट करने का सुनहार आपदा स्वरूप अवसर मिल जाए।