चंडीगढ़ (म.मो.) 9 नवम्बर को अजय गौड ने मुख्यमंत्री खट्टर के राजनीतिक सलाहकार पद से इस्तीफा दे दिया जिसे तुरन्त मंजूर कर लिया गया। इसकी जगह तुरन्त भारत भूषण भारती को नियुक्त कर दिया गया। संदर्भवश भारत के ये भूषण वही महापुरुष हैं जिन्होंने हरियाणा स्टाफ सिलेक्शन कमीशन के चेयरमैन होते हुए हरियाणा सरकार की ऐसी फजीहत कराई थी कि सरकार को पीछा छुड़ाना मुश्किल हो गया था। उस समय इन्हें पद से हटा कर खट्टर ने राहत की सांस ली थी। समझा जा सकता है कि अक्ल से पैदल ऐसा व्यक्ति मुख्यमंत्री को कैसी सलाह दे पायेगा। लगता है ऐसे ही सलाहकारों की बदौलत हरियाणा के शासन-प्रशासन का बेड़ा गर्क हुआ पड़ा है।
अब तक इस पद पर बने रहे अजय गौड़ की सलाहों का नजारा हरियाणा भर की जनता देख ही रही है। क्या अजय गौड अथवा भारती, खट्टर की अपेक्षा कहीं ज्यादा बड़े राजनीतिक वैज्ञानिक हैं जिनकी सलाह खट्टर के लिये आवश्यक होती है? मान ही लिया जाय कि आरएसएस के प्रचारक से मुख्यमंत्री बने खट्टर को राजनीति का कोई ज्ञान नहीं है तो भी क्या उनका पूरा मंत्रीमंडल एवं विधायक दल इस लायक नहीं है कि जो इन्हें राजनीतिक सलाह दे सके? इनके अलावा मुख्यमंत्री के पास एक से एक बेहतरीन, पढे-लिखे तथा कुशाग्र बुद्धिमान अफसरों की लम्बी-चौड़ी फौज भी हैं। जरूरत केवल इतनी है कि खट्टर यह समझ सकें कि किससे क्या ज्ञान लेना है और किसको कहां इस्तेमाल करना है।
दरअसल भाजपा द्वारा अपने लगुए-भगुओं की सरकारी खर्च पर न केवल रोजी-रोटी बल्कि शाही ठाठ-बाठ का इन्तजाम करने की नीति के तहत इस तरह के अनेकों पद स्वीकृत किये गये हैं। कितने तो राजनीतिक सलाहकार, मीडिया एडवाइजर, दर्जनों चेयरमैन बना कर चंडीगढ़ में बैठा रखे हैं। इन्हें सरकारी आवास ड्राइवर सहित कार तथा शोभा बढ़ाने के लिये गन मैन दे रखे हैं। इनके दफ्तर व स्टाफ का खर्च तो अलग से है ही। इसी तरह का एक पाखंड सीएम वींडो का भी है। इस धंधे में भी कई संघियों को रोजगार मिला हुआ है। इनकी भीतरी जानकारी रखने वाले अनुभवी एवं भुक्तभोगी लोग, बताते हैं कि इन पदों पर आसीन लोग मुख्यमंत्री से अपनी निकटता के चलते खुल कर अपनी दुकानदारी चलाते हैं। इन्हें सत्ता के गलियारों में घूमते हुए प्रशासनिक कार्यों में हस्तक्षेप करते हुए देखा जाता है। किसी को नियुक्ति, तबादला, सीएलयू किसी भी प्रकार का एनओसी तथा कोई भी अटकी हुई फाइल निकलवाने के लिये इन्हें सर्वोत्तम दलाल समझा जाता है। कुल मिलाकर धंधा तो इनका दलाली का है और इन्हें ढोने का खर्चा गरीब कर दाता के सिर पर है।
ऐसा भी नहीं है कि ये उच्च पदस्थ सत्ता के दलाल सारी दलाली खुद ही डकार जायें। इनके जिम्मे पार्टी तथा संघ के लिये ‘चंदा’ एकत्र करने का कोटा भी होता है। इनके द्वारा पदों से दिये गये इस्तीफे केवल दिखावटी होते हैं। बीते दिनों किसी नौकरी घोटाले कि गुप्त बात लीक हो जाने पर ऐसे ही एक सलाहकार नीरज दफतुआर से भी इस्तीफा तो ले लिया गया था लेकिन उनका धंधा ज्यों का त्यों बरकरार है।
अजय गौड सेक्टर 17 फरीदाबाद के रहने वाले हैं। वे यहां के जिला भाजपा अध्यक्ष रह चुके हैं। वर्ष 2019 में हुए विधानसभा के चुनावों में वे टिकट के उम्मीदवार थे। उम्मीदवार तो वे 2014 में भी थे परन्तु 2019 में उनका दावा काफी मजबूत था। इसे देखते हुए खट्टर ने उन्हें अपना बगलगीर बना कर एक प्रकार से सत्ता में हिस्सेदारी प्रदान कर दी। अब सवाल उठता है कि गौड के इस्तीफे की नौबत क्यों आई? जैसा कि ऊपर लिखा जा चुका है इस्तीफा केवल नाम-मात्र का दिखावा होता है बाकि सारा धंधा ज्यों का त्यों चलता रहता है। और तो और गनमैनों की टोली तथा गाड़ी-घोड़ा सब कुछ ज्यों का त्यों कायम रहता है।
राजनीतिक चर्चाओं के मुताबिक खट्टर उन्हें सक्रिय राजनीति में उतारना चाहते हैं। किसी भी राज्य का कोई भी मुख्यमंत्री कभी नहीं चाहता कि राज्य के किसी क्षेत्र विशेष में कोई एक नेता उनसे भी भारी हो जाय। इसलिये हमेशा सत्ता संतुलन बनाये रखने के लिये किसी न किसी एक नेता को उभारने का प्रयास करता है। फरीदाबाद क्षेत्र में कृष्णपाल गूजर का राजनीतिक कद जरूरत से ज्यादा बढ़ता जा रहा है। वे यहां के मुख्यमंत्री सरीखे हो चुके हैं। उन्हें संतुलित करने के लिये खट्टर ने पहले विपुल को उभारने का प्रयास किया था, लेकिन विपुल समय से पहले ही पंचर हो गये। अब गौड पर दाव खेला जा रहा है। सम्भावना जतायी जा रही है कि नगर निगम के मेयर पद के लिये गौड या उनकी पत्नी को खड़ा किया जाय। विदित है कि कृष्णपाल भी इस पद के लिये अपने बेटे को तैयार करने में जुटे हुए हैं, जिसे खट्टर कभी स्वीकार करने वाले नहीं हैं।