पाखंडियों से सवाल करो; ज्ञान-विज्ञान से नाता जोड़ो

पाखंडियों से सवाल करो; ज्ञान-विज्ञान से नाता जोड़ो
October 23 09:05 2022

सत्यवीर सिंह
11 अक्तूबर को मोदी जी, व्यक्तिगत तीर्थ यात्रा के लिए नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री की हैसियत से, महाकालेश्वर मंदिर में बने, 900 मीटर के बरामदे का उद्घाटन करने के लिए, उज्जैन में थे. उन्होंने ‘फैशन परेड’ वाले जादूगरी अंदाज़ में, सर से पांव तक, पुजारियों वाली भगवा ड्रेस, लम्बा तिलक और पूरे माथे पर चन्दन लपेटा हुआ था. पुजारियों से भी ज्यादा घनघोर तरीक़े से हो रही पूजा का, एक-एक दृश्य अनगिनत कैमरों द्वारा, सभी चेनलों पर लाइव दिखाया जा रहा था. अब ये दस्तूर ही बन गया है. जिस संविधान की शपथ लेकर वे प्रधानमंत्री बने थे और कैमरों के सामने संसद की सीढियों को चूमकर, संविधान की रक्षा करने के लिए, नाटकीय अंदाज़ में संसद में प्रवेश किए थे, उसी संविधान में लिखा हुआ है कि भारत एक समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष देश है!! धर्मनिरपेक्षता के दावे की धज्जियाँ उड़ाने का इससे अश्लील तरीका नहीं हो सकता. बार-बार ‘जय-जय महाकाल’ का उद्घोष करते हुए, कट्टर सनातनी हिंदुत्व के प्रचार का, ये उनका सबसे उल्लेखनीय नाटकीय प्रदर्शन था. बच्चों के शिक्षा पाठ्यक्रमों से वैज्ञानिक, तकऱ्पूर्ण सोच और हमारी क्रांतिकारी विरासत से सम्बंधित शिक्षा सामग्री को चुन-चुन कर निकाला जा रहा है. धार्मिक अन्धविश्वास, तर्क-विहीन, आस्था-आधारित बेहूदा- वाहयत गपोड़ों को ‘हमारा प्राचीन वैदिक ज्ञान’ कहकर परोसा जा रहा है.
सरकारी कार्यक्रम के तहत, उसे प्रचारित-प्रसारित किया जा रहा है. धार्मिक ज़हर फ़ैलाने वाली, अकूत धन-बल से लैस, ‘संत-मंडली’, जन- मानस की सोच विकृत करने के अपने काम में दिन-रात लगी हुई है. बौड़मपंथी, बे-सिरपैर के ‘ज्ञान’ प्रसार की खुली अखिल भारतीय सरकारी प्रतियोगिता चल रही है. जो जितनी ज्यादा बेहूदी बातें कर रहा है, वह उतने ही बड़े सरकारी सम्मान से नवाज़ा जा रहा है.

समाज में वैज्ञानिक सोच और तथ्य-आधारित तकऱ्पूर्ण, समझ पैदा कर, उसे क़ायम रखने के लिए, एक व्यापक जन-आन्दोलन चलाने की, आज जैसी ज़रूरत पहले कभी नहीं रही. इसी उद्देश्य से ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा, फरीदाबाद’ ने रविवार, 16 अक्तूबर को, अपरान्ह 4 बजे, आज़ाद नगर सेक्टर 24 के चन्द्रिका प्रसाद स्मारक सामुदायिक केंद्र में ‘ज्ञान-विज्ञान शिविर’ का आयोजन किया. देश में वैज्ञानिक सोच आन्दोलन से जुड़े, साथी रमेश श्योराण ने अपने मुख्य वक्तव्य में बताया, कि आदिम समाज से आगे विकास क्रम में जब उत्पादन तत्कालित ज़रूरत से ज्यादा हुआ और समाज में वर्ग विभाजन पैदा हुआ, उसके बाद धर्म और तरह-तरह के ईश्वर पैदा हुए. शुरू में, प्राचीन आपदाओं को ठीक से ना समझ पाने के कारण उन्हें ‘ईश्वर की मंजूरी’ कहकर समझा जाता था. उसके बाद धर्म सत्ता से जुड़ा और धर्म को सत्ताधारी वर्ग ने अपनी सत्ता क़ायम रखने के लिए, एक औज़ार के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. इसमें अधिकाधिक जटिलताएं आती गईं और धर्म की मदद से लोगों को आपस में बांटा गया, लड़ाया गया. वैज्ञानिक शोध, धार्मिक पाखंडों के गुब्बारों को फोड़ देते हैं, इसीलिए सुकरात और गलीलियो को धार्मिक पाखंडियों ने ज़हर देकर मार डाला. अंधविश्वासियों ने, वैज्ञानिक चेतना का हमेशा विरोध किया.

आज भी सरकारें, विज्ञान का सिफऱ् तकनीकी विकास मात्र ही चाहती हैं और वह भी बस सीमित दूर तक, जिससे उत्पादन तो बढ़ जाए लेकिन लोगों का सोचने-परखने का वैज्ञानिक नज़रिया ना बन पाए. इन्सान, विज्ञान पढक़र इंजिनियर तो बन जाए, लेकिन बिल्डिंग बनाकर, उसकी सुरक्षा के लिए उस पर काली हंडिया लटकाए, डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर के गेट पर लिखे- ‘साईं तेरा सहारा’, लड़ाकू जेट पर निम्बू-मिर्ची लटकाए, उस पर सिंदूर लगाए. भूत-प्रेत, जादू-टोना और मौत का दिन लिखा हुआ है,

इतना ही नहीं, मानव-बलि तक की सम्पूर्ण मानव समाज को शर्मसार कर देने वाली घटनाएँ, हमारे देश में आज भी घट रही हैं, जबकि देश सूचना तकनीक विज्ञान का दुनिया भर का हब है. ये सारी कुशिक्षा, जान-पूछकर, योजनाबद्ध तरीक़े से फैलाई जा रही है जिससे तकऱ्पूर्ण सोच विकसित ना होने पाए और लोगों को आराम से बहकाया, बरगलाया, गुमराह किया जा सके. उन्हें, इकट्ठे  होकर, संगठित होकर, संघर्ष द्वारा अपनी मुक्ति के रास्ते से भटकाया जा सके. जब भी लोग इकट्ठे  होकर सरकार से अपने जीवन-मरण के मुद्दों पर सवाल करें, तब उन्हें हिन्दू-मुस्लिम में बांटकर लड़ाया जा सके.

दीपावली का त्यौहार नज़दीक होने पर, घरों की साफ-सफाई में लगे होने के बावजूद, शिविर में अच्छी तादाद में महिलाओं और युवाओं ने भाग लिया. सभी ने, पण्डे-पुजारियों द्वारा उनके स्वार्थ में फैलाए जा रहे, अपने जीवन के अंधविश्वासों में फंसने और उनसे निबटने के रोचक किस्से साझा किए. साथी रमेश श्योराण ने बताया कि ‘ज्ञान-विज्ञान प्रसार’ के ऐसे शिविर हर महीने, लगातार होने चाहिएं, जिनमें महिलाओं को ज़रूर शामिल होना चाहिए क्योंकि मज़हबी ज़हालत, कूपमंडूकता, अंध-विश्वासों के दुष्परिणाम उन्हें ही सबसे ज्यादा भुगतने पड़ते हैं।

उन्होंने ये भी बताया कि अगली बार वे फरीदाबाद के बाहर से उन साथियों को भी बुलाएँगे, जो वैज्ञानिक तरीक़ों से, प्रैक्टिकल द्वारा जादू-टोनों और स्वामियों-बाबाओं के चमत्कारों का भंडाफोड़ कर के दिखाएँगे. सभा में साथी, विजय, नरेश, सत्यवीर, रिम्पी, वीरसेन (सोनू), उषा, बीनू, दीपक, बाबूलाल, विक्की, शेखर दास ने भी अपने अनुभव और विचार साझा किए. ऐसे कार्यक्रम हर महीने किए जाएँगे, सभा ने सर्वसम्मति से ये प्रस्ताव पारित किया.

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Mazdoor Morcha
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