बीके अस्पताल में फर्जी खरीदारी का खेल लाखों-करोड़ों की लोकल परचेज फिर भी दवाइयां नदारद

बीके अस्पताल में फर्जी खरीदारी का खेल लाखों-करोड़ों की लोकल परचेज फिर भी दवाइयां नदारद
October 09 15:11 2022

फरीदाबाद (म.मो.) बीते काफी समय से शहर का मीडिया व सक्रिय नागरिक सोशल मीडिया द्वारा चिल्ला-चिल्ला कर बता रहे हैं कि बीके अस्पताल में मामूली से मामूली सामान व दवायें आदि भी उपलब्ध नहीं होते। जख्म पर बांधने के लिये पट्टी, गौज व बीटाडीन आदि-आदि तक भी मरीज को खुद बाहर से खरीद कर लानी होती है। ग्लूकोज़ चढ़ाने के लिये कनौला सहित पूरा सिस्टम बाजार से लाना पड़ता है।

ये सब तमाशा तब हो रहा है जब एक अप्रैल 2022 से लेकर सितम्बर तक करीब 50 लाख रुपये की लोकल परचेज की जा चुकी है। खरीदा गया पूरा सामान स्टोर में आ भी गया और मरीज़ों पर खर्च भी कर दिया गया। उसके बाद स्टॉक निल कर दिया गया। भरोसेमंद सूत्रों की यदि माने तो न कोई सामान आया है और न ही कहीं खर्च हुआ है, केवल बिल आये हैं जिन्हें पास करके तुरन्त पेमेंट भी कर दी गई है। जिस राज्य में नगर निगम 200-200 करोड़ रुपये बिना काम किये ही डकारे जा सकते हों वहां 40-50 लाख की क्या औकात है? वह बात अलग है कि पूरी तफ्तीश किये जाने पर इस खरीदारी का घोटाला कई गुणा बड़ा भी हो सकता है।

लोकल परचेज के नाम पर बिलों का यह कारोबार गर्ग मेडिकल स्ओं से बल्लबगढ़ से चलता बताया गया है। जानकार बताते हैं कि इस स्टोर का मालिक प्रशान्त, फार्मेसिस्ट शैलेन्द्र हुड्डा का दोस्त है। यह सारी खरीदारी शैलेन्द्र व विपिन हुड्डा बीएमई (बायो मेडिकल इंजीनियर) के माध्यम से होती है। घोटाले की खबर पंचकूला स्थित मुख्यालय में बैठी तत्कालिन डीजी डॉ. वीना सिंह राठी तक पहुंची तो उन्होंने शैलेन्द्र को दो माह के लिये सिरसा जि़ले के गांव चौटाला की पीएचसी में भेज दिया है। इस खेल में शैलेन्द्र तो मात्र एक छोटा सा प्यादा है जबकि असली खिलाड़ी तो पीएमओ डॉ. सविता यादव है। उन्हें छेडऩे की हिम्मत शायद इस लिये नहीं हो पा रही कि वे सीधे स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज द्वारा संरक्षित हैं।

जहां उक्त गर्ग मेडिकल स्टोर की पेमेंट हाथों-हाथ की जा रही हैं वहीं दसियों फर्म ऐसी भी हैं जिनकी पेमेंट बीते तीन-तीन-चार-चार साल से रूकी पड़ी हैं क्योंकि उन्होंने मुंहमांगा कमीशन देने से इनकार कर दिया। भरोसेमंद सूत्रों की यदि माने तो 10-20 परसेंट कमीशन तो लगभग हर फर्म राजी-खुशी दे ही देती है; परन्तु बात वहां बिगड़ती है जब कमीशन 40 परसेंट मांगा जाय अथवा माल खरीदे बिना केवल बिल ही लिये जायें।

इन फर्मों में से एक हैं रीमेडिका फार्मास्यूटिकल जिसने बिल नम्बर 0 93261217 के द्वारा 87 हजार 360 रुपये का माल करीब 5 साल पहले सप्लाइ किया था। सप्लाइ ऑडर का नम्बर था 5146311217। इस माल की बाकायदा स्टोर में एंट्री दर्ज है और पूरी तरह से इस्तेमाल भी हो चुका है। पेमेंट करने के लिये तमाम सम्बन्धित अधिकारियों के हस्ताक्षर हो चुके हैं। चेयरमैन होने के नाते केवल पीएमओ ने हस्ताक्षर नहीं किये क्योंकि मुंहमांगा कमीशन नहीं मिल रहा। इसी फर्म का दूसरा बिल नम्बर जीएसटी 00 8726518 जो 95 हजार 278 रुपये का है। इसका परचेज ऑडर नम्बर 2015 है जो 14 मई 2018 को जारी हुआ था।

एक अन्य फर्म केएचबायो मेडिकल का बिल नम्बर 141 है जो 17 सितम्बर 2018 को जारी हुआ था। उसकी रकम है 18 हजार 480 रुपये। इसी तरह की एक और फर्म सूचर इंडिया है जिसने 28,6,18 को 60 हजार 749 रुपये का बिल नम्बर 1090000582 दिया था। कमीशन न देने के चलते आज तक पेमेंट केवल इसलिये अटकी हुई है कि पीएमओ साहिबा अपने हस्ताक्षर नहीं कर रही हैं। ये चन्द मामले तो केवल उदाहरण स्वरूप हैं खोज-बीन करने पर इससे कहीं ज्यादा बड़ा घोटाला सामने आयेगा।

समझने वाली बात यह है कि अस्पतालों पर छापेमारी की नौटंकी करने वाले स्वास्थ्यमंत्री तो अम्बाला में रहते हैं, हो सकता है उन्हें वहां से ये सब घोटाले नजर न आते हों। परन्तु शहर में दनदनाते विधायक, सांसद एवं मंत्रियों को यह सब नजर क्यों नहीं आता?

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Mazdoor Morcha
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