कोर्ट के आदेश से 27 लाख के गबन का केस दर्ज
फरीदाबाद (म.मो.) दिनांक 13 सितम्बर को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमृत सिंह की अदालत ने जि़ला शिक्षा अधिकारी के वरुद्ध 27 लाख के गबन का मुकदमा दर्ज करने के लिये पुलिस आयुक्त को आदेश दिये हैं। 14 सितम्बर को थाना सेक्टर 17 में भारतीय दंड संहिता की धारा 201, 402, 420, 467, 468, 471, 506, 120बी तथा भ्रष्टाचार अधिनियम की धारा 7, 7ए, 10 लगाई गई है।
डीईओ मुनीष चौधरी का अधिकांश सेवाकाल शिक्षा विभाग के सर्व शिक्षा अभियान में बीता है। सर्वविदित है कि यह अभियान अपने आप में ही घोटालों व गबन का पर्यायवाची है। मुनीष जैसी भ्रष्ट अधिकारियों को लूट कमाई का इससे बढिया अवसर और कहां मिल सकता था? वर्ष 2005-6 के आसपास जब इनकी तैनाती यहां पर हुई थी तो करीब 25 लाख की ग्रांट चेक सरकार की ओर से इनके पास आया था। इस ग्रांट के द्वारा इन्हें विभिन्न स्कूलों व उनके छात्रोंं के लिये कई तरह के काम कराने थे।
अपने नाम से आये चेक को मुनीष चौधरी ने सीधे अपने निजी बैंक खाते में जमा करा दिया। कुछ माह पश्चात विभाग के किसी सयाने बाबू ने इन्हें चेताया कि सरकारी रकम को इस तरह से सीधे-सीधे नहीं हड़पा जाता। सरकारी रकम को अपने निजी खाते में रखना ही अपने आप में अपराध है। सलाह पर अमल करते हुए मुनीष ने उक्त रकम को तुरंत अपने खाते से निकाल कर सरकारी खाते में जमा कराया। उसके बाद शुरू हुआ झूठे बिलों का फर्जीवाड़ा।
विभाग में मौजूद कुछ सतर्क आंखे यह सब कुछ गौर से देख रही थी, लिहाजा शिकायतों का सिलसिला चल पड़ा। सर्व शिक्षा अभियान के चेयरमैन होने के नाते वर्ष 2007-8 में तत्कालीन अतिरिक्त जिला उपायुक्त संजय जून ने जांच का नाटक करके मुनीष को दोषमुक्त कर दिया। इतना ही नहीं उसके बाद से केस से सम्बन्धित बिलों आदि की फाइल भी लापता है। शिकायत करने वाले भला कब रूकने वाले थे, लिहाजा शिकायतों का सिलसिला लगातार चलता रहा।
मुनीष व उसके पति रिटायरर्ड एसई धर्म सिंह जो नगर निगम के घोटालों में काफी चर्चित रहे हैं, ने हर जगह जांच अधिकारी को ‘मैनेज’ कर लिया। लेकिन वर्ष 2019 में शिक्षा विभाग के ही एक उच्चाधिकारी इनके द्वारा मैनेज नहीं हो पाये। उस अधिकारी ने साफ-साफ लिखा बताते हैं कि या तो खर्च का हिसाब दो या रकम को वापस जमा कराओ। अब क्योंकि खर्च की फाइल तो नष्ट की जा चुकी है इसलिये अधिकारी ने मुनीष को दोषी ठहरा दिया। इसी को आधार मानकर माननीय अतिरिक्त सैशन जज ने मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिये हैं।
गौरतलब है कि मुनीष चौधरी की पूरी नौकरी इसी शहर की है। स्कूल में बच्चों को पढ़ाने में इन्होंने ज्यादा समय ‘बर्बाद’ करने की अपेक्षा विभागीय दफ्तरों में अधिक बिताया है। ऐसी भी चर्चा है कि स्कूल की नौकरी के दौरान भी मुनीष महीनों-महीनों लगातार गैरहाजिर रहकर फर्जी हाजिरी भरवाती रही है। दफ्तर की नौकरी के दौरान भी ये साहिबा दफ्तर कम जाती रही हैं और दफ्तर खुद इनके घर पर अधिक आता रहा है। यानी कि डाक आदि लेकर सम्बन्धित बाबू लोग इनके घर से ही दस्तखत करा कर ले जाते रहें हैं।
बीते माह तिरंगा अभियान को लेकर इन्होंने जिला प्रशासन एवं हरियाणा सरकार की जो फजीहत कराई थी उसका कड़ा नोटिस लेते हुए तत्कालीन उपायुक्त जितेन्द्र यादव ने इन्हें बूरी तरह से लताड़ते हुए रूल 7 के तहत इन्क्वायरी करने की बात कही थी। यह तो मुनीष की किस्मत जोड़ मार गई जो जितेन्द्र यादव का दबादला हो गया, वरना सबक तो वे भी इन्हें अच्छा-खासा सिखाने वाले थे।
मुनीष चौधरी का यह सारा खेल उसके व उसके पति धर्म सिंह के राजनेताओं व प्रशासनिक अधिकारियों से घनिष्टता के बल पर ही चलता आया है। मुनीष चौधरी का सारा लेखा-जोखा, वर्षों से मीडिया में प्रकाशित हाते रहने के बावजूद, उक्त सम्बंध ही हैं जिनके बल पर, अयोग्य एवं भ्रष्ट होते हुए भी वह इस महत्वपूर्ण जिले की शिक्षा अधिकारी बन बैठी। जानकार बताते हैं कि जि़ले के भाजपाई विधायक राजेश नागर को छोडक़र शेष तीनों विधायक, एक केन्द्रीय मंत्री तथा खट्टर के कलेक्शन एजेंट अजय गौड़ के समर्थन से मुनीष इस पद पर तैनात हो पाई थी। अब देखना है कि ये ताकतें उक्त पुलिस जांच से मुनीष को कैसे और कब तक बचा पाती हैं?
मुनीष चौधरी ने नौकरी को कभी घर की खेती से अधिक नहीं समझा फरीदाबाद जि़ले की रहने वाली मुनीष चौधरी ने 1988 में बतौर टीजीटी नौकरी की शुरूआत की थी। इस दौरान हमेशा अपने घर के नजदीक वाले स्कूल में ही अपनी तैनाती कायम रखी थी। वर्ष 2003 में प्रिंसिपल, 2011 में खंड शिक्षा अधिकारी, 2019 में डिप्टी डीईओ 2021 में डीईईओ तथा जून 2022 में डीईओ के पद पर तैनात हो गई। मजे की बात तो यह है कि इस सारे सेवा काल के दौरान, मात्र चार माह पलवल लगाने के अलावा सारी नौकरी फरीदाबाद शहर में की है।
नौकरी चाहे स्कूल में की हो या विभागीय दफ्तर में, इन्होंने कभी नौकरी को नौकरी नहीं समझा। महीनों-महीनों स्कूल से फर्लो मारकर अपने बच्चों के साथ कोटा में रहना पड़ा तो भी कभी इन्होंने छुट्टी के लिये आवेदन नहीं किया। यहां तक कि विदेश यात्रा करने तक के लिये इन्होंने कभी विभाग से छुट्टी अथवा स्वीकृति लेने की जरूरत नहीं समझी। अपने व अपने पति धर्म सिंह के राजनेताओं व प्रशासनिक अधिकारियों से सम्बन्धों के बल पर मुनीष सदैव अपने विभाग में हावी रही है। कभी किसी प्रिंसिपल अथवा डीईओ की हिम्मत नहीं हुई कि इनसे कभी कोई पूछ-ताछ कर सके।
जानकार बताते हैं कि पिछले दिनों जब रितु चौधरी यहां बतौर डीईओ तैनात थी तो उन्होंने मुनीष को दफ्तर आने व कुछ काम करने को कहना शुरू किया तो तत्कालीन एडीसी सतबीर मान से लेकर मुख्यालय में बैठे टुक्कडख़ोरों ने उल्टे डीईओ रितु को ही धमकाना शुरू कर दिया। मुनीष की पहुंच तो देखिये कि इस बाबत मुख्यालय से डीईओ के नाम एक कड़ा चेतावनी पत्र तक आ गया कि यदि उसने मुनीष को कुछ कहा तो उल्टे उसी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जायेगी। इसी धमकी को फलीभूत करते हुए एक कर्मठ एवं ईमानदार डीईओ का न केवल यहां से तबादला कर दिया गया बल्कि परेशान करने के इरादे से बेमतलब की जांचें भी शुरू कर दी गई। मुनीष के हौंसले तो देखिये 14 तारीख को मुकदमा दर्ज होने के बावजूद 16 तारीख तक भी डीईओ की कुर्सी पर जमी बैठी है। जानकार बताते हैं कि इसी दिन उसके पति धर्म सिंह व दो अन्य सारा दिन मुनीष के दफ्तर में कमरा बंद करके बैठे रहे। यह सब उनका राजनीतिक रसूख भी है जो अब तक उसे गिरफ्तार करना तो दूर पद से हटाया भी नहीं गया।
हर तरह से नालायक, निकम्मी एवं भ्रष्ट होने के बावजूद जिस अधिकारी को इतना प्रोत्साहन मिलता रहा हो, जिसके खिलाफ होने वाली हर शिकायत को दबा दिया जाता रहा हो तो उसका दिमाग तो खराब होना ही था। इसी के चलते मुनीष ने कभी अफसरों को अफसर और मातहतों को गुलाम से अधिक कुछ नहीं समझा। सदैव खुले खेत में बेफिक्री से चरती रही।