(तुर्की के महान कवि की कविता)
पृथ्वी सूर्य के दस चक्कर लगा चुकी है. अगर आप पृथ्वी से पूछेंगे तो वह कहेगी कि “यह इतना कम वक्फ़ा था कि जिक्र करने के लायक भी नहीं ” मगर आप मुझसे पूछेंगे तो मैं कहूँगा “मेरी जिंदगी के दस साल चले गये” जिस दिन मुझे जेल में ठूंसा गया मेरे पास एक छोटी सी पेंसिल थी. जो लिख लिख कर मैंने एक सप्ताह में ख़त्म कर दी अगर तुम पेंसिल से पूछोगे तो वह कहेगी “मेरी पूरी जिंदगी गयी ” अगर मुझसे पूछोगे तो मैं कहूँगा कितनी जिंदगी ? बस एक सप्ताह
जब पहली दफ़ा मैं इस काल कोठरी में आया था तो उस्मान हत्या की सज़ा काट रहा था साढ़े सात साल बाद इस जेल से वह चला गया कुछ समय जेल से बाहर मौज़ मारकर फिर तस्करी के एक मामले में फिर वह यहाँ आया और छह महीने के खत्म होते ही यहाँ से चला गया किसी ने कल सुना कि उसकी शादी हो गयी है और आगामी वसंत में उसके बच्चा होगा।
जिस दिन मुझे इस काल कोठरी में फेंका गया था उस दिन गर्भ में आए बच्चे अब अपने जन्मदिन की दसवीं वर्षगांठ मना रहे हैं अपने लंबी पतली टांगों पर कांपते हुए उस दिन पैदा हुई बछेड़ी अब आलसी घोड़ी बन कर अपने चौड़े पु_ों को हिला रही होंगी हालाँकि जैतून की नयी टहनी अभी भी नयी है और बढ़ रही है
उन्होंने मुझे बताया है कि जब से मैं यहाँ आया हूँ हमारे अपने कस्बे में नए चौक बनाये गये हैं और छोटे से घर में रहनेवाला मेरा परिवार अब एक ऐसी सडक़ पर रहता है जिसे मैं नहीं जानता एक ऐसे दूसरे घर में रहता है जिसे मैं देख नहीं सकता
जिस दिन मुझे इस काल कोठरी में फेंका गया था कच्ची रुई की तरह रोटी सफ़ेद थी और उसके बाद रोटी पर राशनिंग लगा दी गयी। इस काल कोठरी में रोटी के मुठ्ठी भर टुकड़ों के लिए लोग एक दूसरे की हत्या कर देते हैं अब हालात कुछ बेहतर हैं लेकिन हमारे पास जो रोटी है वह बेस्वाद है।
जिस साल मुझे काल कोठरी में फेंका गया था तब दूसरा विश्व युद्ध शुरू नहीं हुआ था। दचाऊ के यंत्रणा शिविर में गैस की भ_ियां नहीं बनायी गयी थीं हिरोशिमा में अणुबम नहीं फटा था आह! वक्त ऐसे गुजऱ गया जैसे कत्लेआम में बह जाता है बच्चे का खून अब सब बीत चुका है लेकिन अमेरिकी डॉलर ने पहले ही तीसरे विश्व युद्ध की चर्चा छेड़ दी है इसके बावजूद दिन उस दिन से भी अधिक चमकीला है
जब मुझे काल कोठरी में फेंका गया था उस दिन से मेरे लोग अपनी कोहनियों के बल आधा ऊपर उठकर खुद आये हैं पृथ्वी सूर्य के दस चक्कर लगा चुकी है हालाँकि मैं उसी अदम्य आकांक्षा से आज वही बात फिर दोहराता हूँ जो मैंने दस साल पहले लिखा था
पृथ्वी में चीटियों की तरह समुद्र में मछलियों की तरह आकाश में परिंदों की तरह तुम बहुत इफऱात में हो
तुम कायर हो या बहादुर निरक्षर या साक्षर और चूंकि तुम ही हो सभी कामों के रचयिता या विध्वंसक केवल तुम्हारे साहसी कारनामे गीतों में दर्ज किये जायेंगे और बाकी सब मसलन मेरी दस साल की तकलीफ़ें कोरी बकवास है
(अनुवाद विनोद दास)