फरीदाबाद (म.मो.) पांच नम्बर स्थित थाना एनआईटी के सामने वाले चौक से शहीदे-आजम भगत सिंह की न केवल मूर्ति वहां से हटा दी गई है बल्कि उनका नाम तक भी वहां से मिटा दिया गया है। बीते करीब 30 साल पहले, भगत सिंह के नामुराद भतीजे बाबर सिंह ने ओम प्रकाश चौटाला की चापलूसी करते हुए उनके हाथों से भगत सिंह की मूर्ति स्थापित कराई थी। बेशक ‘मज़दूर मोर्चा’ चौटाला को इस लायक नहीं समझता कि उनके हाथों इतने बड़े क्रांतिकारी की मूर्ति स्थापित कराई जाती।
दरअसल जैसा चापलूसी भरा एवं क्रांति विरोधी चरित्र बाबर सिंह का था, उनका भी कोई हक नहीं बनता कि वे ऐसे महान क्रांतिकारी के नाम को बेच-बेच कर खायें। आज वहीं काम उनका बेटा यदविंदर सिंह कर रहा है जो कुछ दिन भगत सिंह को भारत रत्न दिलाने व संसद भवन में इनकी मूर्ति स्थापित करने का ढोल पीट कर खट्टर की गोदी में जा बैठा। नौटंकी के तौर पर उसने भगत सिंह के नाम पर एक कागजी युवा ब्रिगेड खड़ी कर दी। मुख्यमंत्री खट्टर ने उसे इस ब्रिगेड का चेयरमैन बना कर तमाम सरकारी सुविधायें प्रदान कर दी।
‘वीर’ सावरकर की तर्ज पर हुकूमत से मोटा वेतन, कार व कोठी की सुविधा पा कर युवा ब्रिगेड का यह चेयरमैन भगत सिंह को इस कदर भूल गया कि भारत रत्न व संसद भवन में मूर्ति की बात तो दूर अपने पिता द्वारा स्थापित कराई गई मूर्ति तक को नहीं बचा पाया। बीते कई वर्षों से मूर्ति के आस-पास अच्छे-खासे झाड़-झंखाड़ खड़े हो गये थे। इनके बीच मूर्ति की हालत भी खराब होते जा रही थी। परन्तु इस नालायक चेयरमैन को कभी उसकी सुध लेने की नहीं सूझी।
बद्हाल हो चुके मूर्ति स्थल का सौंदर्यीकरण करने के नाम पर संघी सरकार ने आंखों में खटकते कांटे की तरह भगत सिंह को वहां से गायब कर दिया। उसके स्थान पर न जाने किन तीन लोगों की बेढंगी मूर्तियां खड़ी कर दी। मूर्तियों के नीचे जो पट्टिका लगी है उसके नीचे लिखा है। ‘‘विभाजन विभीषका स्मारक, मनोहर लाल मुख्यमंत्री, कृष्ण्पाल गुर्जर केन्द्रीय मंत्री, डॉ. कमल गुप्ता मंत्री हरियाणा सरकार, सीमा त्रिखा विधायक’’ स्थल पर न तो भगत सिंह का नाम लिखा गया है और न ही सुखदेव व राजगुरू का। लेकिन इन शहीदों के प्रति जनता की भावनाओं को समझते हुए खट्टर तथा अन्य संघी नेताओं ने इन मूर्तियों को भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरू ही बताया है। जबानी कही हुई बात तो आई-गई हो जाती है लेकिन लिखत तो स्थायी रहती है। इसके अलावा मूर्तियां कहीं से भी इन शहीदों की प्रतीत नहीं होती। जाहिर है संघी शासक भगत सिंह की क्रांतिकारी एवं साम्यवादी विचारधारा से इतना खौफ खाते हैं कि वे जनसाधारण के दिलो-दिमाग से भगत सिंह का नामों निशान मिटा देना चाहते हैं। उनके स्थान पर माफीवीर, पेंशनखोर सावरकर जैसों को बतौर नायक पेश करना चाहते हैं।