फरीदाबाद (म.मो.) अमृतानंदमयी मठ द्वारा ग्रेटर फरीदाबाद के सेक्टर 88 में 2600 बेड का अस्पताल बनाया गया है। करीब 6 हजार करोड़ की लागत, कुछ लोगों के अनुसार 4 हजार करोड़ की लागत से 133 एकड़ में बने इस अस्पताल का पूरा खर्चा अम्मा के ट्रस्ट ने उठाया है। यानी ये पूरी तरह से निजी क्षेत्र का उपक्रम है। आगामी एक-दो वर्ष में यहां मेडिकल कॉलेज भी शुरू करने की योजना बताई जा रही है।
देश के सबसे बड़े बताये जा रहे इस अस्पताल का लोकार्पण दिनांक 24 अगस्त को भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया। रैली में उपस्थित होने वाली भीड़ में दक्षिण भारतीयों की संख्या काफी अधिक होने की सम्भावना को समझते हुए, एक कुशल मदारी की तरह मोदी कुछ जुमले मलयाली भाषा में रट कर आये थे। क्षेत्र विशेष के लोगों का मन जीतने के लिये यह फार्मूला मोदी जी हर क्षेत्र में आजमाते रहे हैं। यहां भी उनका निशाना ठीक बैठा और खूब तालियां बटोरी।
अपने 19 मिनट के भाषण के दौरान मोदी जी ने अस्पताल तथा इसे बनाने वाली अम्मा की जमकर तारीफ करते हुए इसे न केवल फरीदाबाद बल्कि पूरे एनसीआर के लिये एक वरदान बताया। अम्मा ने तो बिना कोई इन्कम टैक्स, जीएसटी, उत्पाद शुल्क आदि वसूले बगैर ही इतना बड़ा अस्पताल बना दिया। लेकिन मोदी जी ने आठ साल तक इस देश की जनता को लूटने के बाद क्या बनाया? किसी एक अस्पताल, किसी एक यूनिवर्सिटी किसी एक आईआईटी का नाम तो बताते। बनाना तो क्या था बने बनाये संस्थानों में आधे से अधिक पद रिक्त पड़े हैं। दूर क्या जाना यहां का बीके अस्पताल और छांयसा का अटल बिहारी मेडिकल कॉलेज ही देख लो।
इसी भाषण के दौरान उनके मन में छिपा ‘पीपीपी’ मॉडल भी निकल कर बाहर आ गया। विदित है कि इस मॉडल में बड़ा निवेश तो पब्लिक का होता है और प्रौफिट प्राईवेट पार्टनर का होता है। इसमें ऐसी-तैसी पब्लिक की होती है। इसका उदाहरण स्थानीय ईएसआई मेडिकल कॉलेज में ठेके पर दिये गये आईसीयू तथा डॉयलेसिस विभागों में खूब भुगता जा चुका है। ईएसआई वालों ने तो उन ठेकेदारों से मुक्ति पा ली है लेकिन बीके अस्पताल में ह्दय रोग, डॉयलेसिस तथा एमआरआई आदि अभी भी ठेके पर लूट मचा रहे हैं। गौरतलब है कि अम्मा ने अपना कोई भी विभाग किसी ठेकेदार को नहीं सौंपा है। मोदी को यहीं से सबक सीख लेना चाहिये।
अस्पताल के बारे में बताया जा रहा है कि आरम्भ में 300-500 बेड ही खोले जायेंगे, फिर धीरे-धीरे मरीज़ों की संख्या के अनुसार बेड बढ़ाते जायेंगे। अस्पताल के जानकार सूत्रों के अनुसार इसे पूरी क्षमता तक पहुंचने में कम से कम पांच साल लग सकते हैं। मरीजों से क्या वसूला जायेगा इसके बारे में अभी तक खुल कर तो कुछ नहीं बताया जा रहा है लेकिन समझा जा रहा है कि ओपीडी कार्ड के लिये 300 रुपये वसूले जायेंगे जबकि यहां पर अन्य व्यापारिक अस्पतालों द्वारा इससे कहीं ज्यादा वसूले जा रहे हैं। जाहिर है हर नई दुकान पुरानी के मुकाबले में अपने दाम सस्ते रखती ही है। इसी ट्रस्ट द्वारा केरल व अन्य स्थानों पर चलाये जा रहे अस्पतालों में केवल कहने भर की ही रियायत गरीबों को मिलती है। यहां भी रियायत पाने वालों की एक श्रेणी अम्मा के भक्तों के रूप में पहले से ही तैयार है।
अस्पताल को चलाने के लिये इसे राज्य व केन्द्र सरकार के पैनलों पर भी रखा जायेगा अर्थात यहां इलाज कराने वाले सरकारी कर्मचारियों का बिल भुगतान सरकार करेगी। इसके अलावा बीते पांच साल से ठप्प पड़ी आयुष्मान योजना को भी इसके साथ जोड़ कर जीवित करने का प्रयास किया जायेगा। विदित है कि फिलहाल निजी अस्पताल आयुष्मान के तहत मरीज़ों को लेने से बचते आ रहे हैं।
अम्मा के अस्पताल में शोधकार्य बताया जा रहा है कि चौदह मंजिला इमारत में चार मंजिल केवल शोध कार्य के लिये रखी गई हैं। किसी भी बड़े अस्पताल एवं मेडिकल कॉलेज में शोध कार्य को एक अनिवार्यता माना जाता है। चिकित्सा विज्ञान में दिन प्रति दिन नई-नई खोजें इसी के चलते सामने आ रही हैं। लेकिन ये कार्य केवल वहीं सम्भव हो पाते हैं जहां पर सरकार अथवा प्रबन्धन इस काम को प्रोत्साहित करे।
फरीदाबाद के ईएसआई मेडिकल कॉलेज में कार्यरत प्रोफेसर, मुख्यालय के न चाहते हुए भी शोध कार्य में लगे रहते हैं क्योंकि यह उनके पेशे का एक अभिन्न अंग है। यदि वे इसको त्याग दें तो वे अपनी पेशेवर क्षमता में पिछड़ जायेंगे। ‘मज़दूर मोर्चा’ प्रोफेसरों द्वारा तैयार किये गये ऐसे महत्वपूर्ण शोध पत्रों का उल्लेख कई बार कर चुका है।
जरा ईएसआई मेडिकल सेवाओं की ओर भी झांक लेते मोदी जी संदर्भवश, जनता को स्वास्थ्य सेवायें देने में मोदी सरकार की रुचि को समझने के लिये ईएसआई कार्पोरेशन की कार्यशैली को देखा जा सकता है। गुडग़ांव क्षेत्र में ईएसआई कवर्ड 20 लाख मज़दूर हैं यानी कि 20 लाख परिवार, जिनके वेतन का साढे चार प्रतिशत ईएसआई कार्पोरेशन वसूल लेती है। इसके बदले इस क्षेत्र में मात्र 100 बेड का एक व 50 बेड का दूसरा अस्पताल है। इनकी कार्य क्षमता किसी अच्छी डिस्पेंसरी से अधिक नहीं है।
मोदी राज के आठ साल पूरे होने पर मानेसर में 500 बेड के एक अस्पताल की आधारशिला रखी गई थी। इसके लिये मात्र साढे सात एकड़ ज़मीन 120 करोड़ में खरीदी गई। अम्मा की दूर-दृष्टि तथा पैसे का सदुपयोग देखिये कि उन्होंने साढे छ: सौ करोड़ में 133 एकड़ जमीन खरीद कर आगामी 50 साल तक कि विस्तार योजना तैयार कर ली जबकि उनके पास तैयार मरीजों की कोई सूची नहीं है।
उधर कार्पोरेशन जिसके पास पहले से ही 20 लाख मज़दूर परिवारों यानी कुल संख्या जोड़ें तो 80 लाख सम्भावित उन लाभार्थियों की सूची मौजूद हैं जो बाकायदा कार्पोरेशन को अपने वेतन का साढे चार प्रतिशत देते आ रहे हैं। यह मोदी सरकार की सोच एवं दूर-दृष्टि का अभाव ही तो है जो उसने मात्र साढे सात एकड़ का प्लॉट और वह भी इतने महंगे दामों में खरीदा।
यदि मोदी सरकार वास्तव में ही मज़दूरों की भलाई एवं उन्हें बेहतर चिकित्सा सेवायें उपलब्ध कराने की सोच व समझ रखती तो इन्हीं 120 करोड़ रुपयों से उस क्षेत्र में 150-200 एकड़ ज़मीन खरीद सकती थी। संभावित लाभर्थियों की इतनी बड़ी संख्या को देखते हुए वहां दो से तीन हजार बेड के अस्पताल का निर्माण किया जाता। इतने बड़े अस्पताल के साथ एक मेडिकल कॉलेज, व पैरामेडिकल कॉलेज इत्यादि खोले जा सकते थे। मजे की बात तो यह है कि इस पर खर्च करने के लिये ईएसआई कार्पोरेशन के पास मज़दूरों का डेढ़ लाख करोड़ रुपया जमा पड़ा है।