फरीदाबाद (म.मो.) इस शहर के लिये न तो नगर निगम नया है और न ही पुलिस महकमा। इसके बावजूद दिनों-दिन सडक़ों पर होने वाली अवैध पार्किंग के चलते सदैव जाम की स्थिति बनी रहती है। इस समस्या के लिये पुलिस वाले नगर निगम को व निगम वाले पुलिस को जिम्मेवार ठहराते रहते हैं। वास्तव में जिम्मेदार दोनों ही बराबर के हैं, बल्कि पुलिस वाले कहीं ज्यादा। जब समस्या ज्यादा बढने लगती है तब दोनो महकमे मिल कर पार्किंग स्थल चिन्हित करने की नौटंकी करने लगते हैं ।
यूं तो ये नौटंकी हर दूसरे-तीसरे साल चलार्ई जाती है परन्तु फिलहाल नौटंकी का यह शो बीते करीब चार-पांच माह से चल रहा है। इसमें कुछ स्थानों पर सफेद पेंट से मोटी लाइनें भी खींची गई थी जो अब तक लुप्त भी हो चुकी हैं। रेहड़ी वालों के लिये स्थान निश्चित करने का एजेंडा ठंडे बस्ते में जा चुका है। अवैध पार्किंग वाले वाहनों को क्रेनों द्वारा उठवा कर लूट कमाई की योजनायें भी बनाई गई। लेकिन कुल हासिल निल बटा सन्नाटा। जबानी जमा खर्च चाहे जितना मर्जी करा लो लेकिन काम ही नहीं करना।
स्कूलों के जो मैदान बच्चों के खेलने के लिये पचासों वर्ष पहले छोड़े गये थे उन पर अब प्रशासन की गिद्ध दृष्टि है। पहले इन्हें पार्किंग के नाम पर हथियाया जायेगा और बाद में इन्हें औने-पौने में बेच खाया जायेगा। स्कूलों पर नजर डालने से पहले निगम प्रशासन, जगह-जगह पड़े अपने भूखंडों पर क्यों नहीं पार्किंग व्यवस्था करता? दर-असल व्यवस्था तो वह तब करे न जब उसे कुछ करना हो।
ट्रेफिक पुलिस पर बड़ा सवाल तो यह बनता है कि बाटा चौक से लेकर हार्डवेयर चौक तक जाने वाली सडक़ के दोनो ओर हर समय खड़े रहने वाले बड़े-बड़े ट्रकों व ट्रालों के लिये कौन सी पार्किंग बनने का इंतजार किया जा रहा है? इसी तरह एक-दो नम्बर चौक, बीके चौक, नीलम चौक सहित तमाम चौकों पर जिस तरह से ऑटो वालों ने कब्जा कर रखा है, उन्हें कौन सी पार्किंग में शिफ्ट किया जायेगा? और तो और अजरोंदा मोड़, जहां पर एसीपी व डीसीपी ट्रैफिक बैठते हैं, वहां भी ऑटो वालों की धमाचौकड़ी क्यों नहीं पुलिस को दिखती? उपरोक्त बताये गये तो केवल कुछ उदाहरण मात्र हैं, वरना हालत तो शहर भर की सभी सडक़ों पर एक जैसी ही है।
चौराहा चाहे ओल्ड का हो, अजरौंदा का हो, बाटा का हो या बल्लभगढ़ बस स्टैंड का हो, इन सभी स्थानों पर तमाम ऑटो व अन्य वाहन राजमार्ग पर खड़े रहते हैं। यदि ट्रेफिक पुलिस थोड़ा भी हाथ पैर हिलाए तो इन्हें बगल की सर्विस लेन पर शिफ्ट करके राजमार्ग को जाम से बचाया जा सकता है। लेकिन ट्रेफिक पुलिस का तो ध्यान यातायात चलाने पर न होकर अपनी दिहाड़ी बनाने की और ज्यादा रहता है।
बल्लबगढ़ बस अड्डा क्षेत्र का उल्लेख करना अति आवश्यक है। सोहना मोड़ से लेकर बसअड्डे से आगे तक तो वाहनों की पूरी अराजकता बनी रहती है। राष्ट्रीय राजमार्ग के समानान्तर बनाई गई सर्विस लेन पर दुकानदारों का पूरा कब्जा है। बस अड्डे के बाहर ऑटो वालों का तो कब्जा है सो है निजी अवैध बड़े वाहनों वाले भी आवाज लगा-लगा कर सवारियां लेतीे हैं। अन्य राज्यों की बसें तो अड्डे के बाहर से ही सवारियां लेती हैं, हरियाणा रोडवेज की बसें भी मजबूरन राजमार्ग पर खड़े होकर सवारियां उठाती हैं। सवारियां उठाने को लेकर रोडवेज़ तथा निजी वाहनों के बीच अक्सर मार-पीट भी होती रहती है। यह प्रशासन का निकम्मापन नहीं तो और क्या है?