कुछ राइटविंग वाले लेखकगण इसे फैक्ट की तरह बनाकर किताब वगैरह में भी लिखने लगे हैं, कुछ दिन बाद ये रिफरेंस का रूप ले लेगा। फिर लोग किताब का नाम लेकर कोट करेंगे फलनवा की किताब में लिखा है।
अगर ये सच है तो अंग्रेजों के आने के समय भारत में अनपढ़ों की संख्या इतनी ज्यादा थी कैसे थी? क्या 100- डेढ़ सौ गुरुकुल मिलाकर एक विद्यार्थी पढ़ाते थे?
आप सोचते रहिए कि अगर इतने गुरुकुल मिलकर भी भारत को गुलाम होने से नहीं बचा सके तो इनमें कौन सी शिक्षा दी जाती रही होगी?
आप ये भी सोचिए कि नालन्दा जैसे विश्वविद्यालय जब कई बार फूंके जाने के बाद भी अवशेषों के साथ बचे हुए हैं तो ये गुरुकुल क्या गांव की पुलिया पर चलाए जाते थे, और पुलिया ही कौन सी ही रही होगी? बाढ़ आयी गुरुकुल के सम्पूर्ण अवशेष ही बह गये, कुछौ ना बचा?
ना ज्ञान, ना इमारत?
दावा है कि हायर एजुकेशन भी मिलती थी, मैं पूछता हूं कितनी हायर?
करोड़ों साल पुराने डायनासोर तक के अवशेष मिल जा रहे हैं बस वैदिक विमान का ब्लैक बॉक्स नहीं मिल रहा?
सोचिए एक गुरुकुल में अगर एक भी गुरु रहा होगा तो इस हिसाब से भारत तो फुल्ली विश्व गुरु रहा होगा।
इतने गुरु और विश्व गुरुओं के बावजूद अगर मुगलों से ठाठ से शासन किया, फिर अंग्रेजों ने तमाम राजपूत शासकों को दरबारी और पेंशनधारी बनाकर छोड़ दिया तो गुरुकुल के गुरु घंटाल लोग क्या कर रहे थे? किसको कौन सी शिक्षा दे रहे थे?
जितनी संख्या इसमें लिखी हुई है,
सात लाख बत्तीस हजार, इतने तो गांव भी नहीं हैं अभी तक भारत में। तमाम जातियों के अलग अलग गांव होते हैं। पढऩे-लिखने का अधिकार किसको था, किन जातियों को था? जिसको था उसके कितने गांव रहे होंगे? 7 लाख 32 हजार ही क्यों?
लिखने वाले ने सात हजार एक सौ एक क्यों नहीं लिखा? थोड़ा शुभ हो जाता… इंग्लैंड का पहला स्कूल 1811 में नहीं बल्कि 597्रष्ठ में खुला था,नाम था किंग्स स्कूल कैन्टबरी। इनको लगता है कि 1600 में ईस्ट इंडिया चलाने वाले अनपढ़ थे क्योंकि इनके हिसाब से इंग्लैंड पहला स्कूल तो 1811 में बना था। लोग मूर्खता की चादर ओढ़ बिछा रहे हैं… इसलिए फेकम फेकाई में मत फंसिए। मुकेश खन्ना के असली या नकली अकाउंट को छोडि़ए, मैं मैसेज के कंटेंट की बात कर रहा हूं, बिल्कुल सेम बात कि भारत में सात लाख गुरुकुल थे डीयू में मेरे प्रोफेसर ने क्लासरूम में बोली है। इसलिए मैं इस मैसेज के कंटेंट की ही बात कर रहा हूं। -साइबर नजर