फरीदाबाद (म.मो.) यातायात के तमाम नियमों को धता बताते हुए लाखों की संख्या में कांवड़ ढोने के लिये जनता सडक़ों पर उमड़ी जा रही है। भक्तों को प्रोत्साहित करने के लिये सरकार कोई कोर-कसर न छोड़ते हुए हर तरह की सुविधा उन्हें प्रदान कर रही है। उनके लिये विशेष रेलगाडिय़ां व बसें चलाई जा रही हैं। पाठक भूले नहीं होंगे कि दो साल पूर्व कोरोना काल में इसी देश की जनता को छोटे-छोटे बच्चों के साथ सैंकड़ों-हजारों किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ी थी। उस वक्त स्पेशल तो क्या नॉरमल गाडिय़ां तक भी नहीं चलने दी गई थी। इस अभियान में सैंकड़ों गरीब आपने प्राणों से हाथ धो बैठे थे।
पैदल भक्तों के अलावा कांवडिय़ों के अनेकों गिरोह अपनी-अपनी क्षमता अनुसार छोटे-बड़े ट्रकों द्वारा इस यात्रा को सम्पन्न करते हैं। इन ट्रकों पर अति उच्च ध्वनि के वाद्य यंत्र (डीजे) आदि बजाते हुए पूरी सडक़ को घेर कर ये लोग चलते हैं। गौरतलब है कि बीसियों लोग ट्रक में सवार रहते हैं और इतने ही लोग ट्रक के आगे-आगे चलते हैं। जाहिर है कि ऐसे में ट्रक भी धीमी गति से चलते हुए अच्छा-खासा वायु प्रदूषण करते हैं। वाद्य यंत्रों की आवाज इतनी बुलंद होती है कि आस-पास के घरों की खिड़कियों के शीशे खरखराने लगते हैं और कई बार तो टूट भी जाते हैं। इन भक्तों पर न ध्वनि प्रदूषण कानून, न वायु प्रदूषण और न ही कोई यातायात का कानून लागू होता है।
सावन का महीना शुरू होते ही शिव के जलाविषेक करने हेतु गंगा से जल लाने की प्रथा बहुत पुरानी है, लेकिन उस वक्त इसकी आड़ में वह हुड़दंगबाज़ी नहीं होती थी जो आज हो रही है। उस समय श्रद्धालु बड़े प्रेम-भाव से शान्तिपूर्वक गंगा तट की ओर जाते थे और ऐसे ही जल भरेी कांवड़ लेकर आते थे, रास्ते में कहीं कोई झगड़ा-फसाद नहीं होता था। लेकिन इसके विपरित आज तमाम सडक़ों पर भारी पुलिस प्रबन्ध के बावजूद झगड़े-फसाद की खबरें सुनने को मिल जाती है। बेशक कांवड़ यात्रा की ड्यूटी में जुटी पुलिस को काफी मशक्कत करनी पड़ती है, फिर भी वे इस बात से संतुष्ट रहते हैं कि इस दौरान आपराधिक वारदातों की संख्या बहुत घट जाती है।
कांवडिय़ों के रास्ते जगह-जगह विश्राम शिविर बनाये जाते हैं जहां पर खाने-पीने तथा विश्राम की उचित व्यवस्था विभिन्न धार्मिक संगठनों द्वारा की जाती है। मुख्यमंत्री अजय सिंह विष्ट के उत्तर प्रदेश में तो इनके ऊपर हेलिकॉप्टरों द्वारा फूल वर्षा कर इनको प्रात्साहित किया जाता है। सरकार इतना सब कुछ करे भी क्यों न, क्योंकि धर्म की यही तो वह अफीम है जिसकी पीनक में इन भक्तों को महंगाई, बेरोजगारी तथा भुखमरी आदि कुछ नहीं दिखता, दिखता है तो केवल धर्म एवं भगवान।
भक्तों के विश्वास को इतना दृढ़ बना दिया जाता है कि वे अपने तमाम दुखों का निवारण उसी में खोजते हैं और खोजते, खोजते पीढ़ी दर पीढ़ी खोजते ही रह जाते हैं। इस पीनक में वे कभी भी अपने शोषण करने वाले असली शोषकों को पहचानने का प्रयास तक नहीं कर पाते।