स्मार्ट सिटी पाखंड के सात साल हुए पूरे, 2600 करोड़ डकारे

स्मार्ट सिटी पाखंड के सात साल हुए पूरे, 2600 करोड़ डकारे
July 17 18:52 2022

फरीदाबाद (म.मो.) भारतीय जुमला पार्टी द्वारा 2014 में सत्तारूढ़ होने के बाद, देश की जनता को बरगलाने के लिये जुमलों की जो बरसात की थी, उनमें से एक जुमला स्मार्ट सिटी का भी था। जुमलों को सच मानकर बहकने वाले लोग बहुत खुश हुए थे। उन्हें पूरा यकीन हो गया था कि अब मोदी जी के नेतृत्व में खट्टर जी उनके शहर फरीदाबाद को वास्तव में ही स्मार्ट बना देंगे। यहां पर न तो कोई बिजली-पानी व सीवर की समस्या रहेगी, सडक़ों पर गड्ढे ढूंढे से भी नहीं मिलेंगे, बिना ढक्कन के कोई मैनहोल नहीं मिलेगा। पैदल चलने वालों के लिये फुटपाथ और साइकिल वालों के लिये साइकिल ट्रैक बन जायेंगे। स्वास्थ्य सेवायें एकदम स्मार्ट हो जायेगी।

भारतीय जुमला पार्टी के चाल-चरित्र को समझने वालों ने कभी ऐसे ख्वाब नहीं पाले थे। उन्हें पहले दिन से ही समझ थी कि ये सब जुमले हैं, जुमलों का क्या? इस जुमलेबाजी के तहत सरकार ने तरह-तरह की नौटंकियां की। इस शहर में पहले से ही सक्रिय दो सरकारी विभागों-‘हूडा’ व एमसीएफ में व्याप्त हरामखोरी व रिश्वतखोरी को समाप्त करने की बजाय ऐसा ही एक ओर तीसरा महकमा, स्मार्ट सिटी कम्पनी लिमिटेड के नाम से खोल दिया गया। इसमें एक आईएएस अफसर व कई अन्य अफसरों की फौज पलने लगी। मजे की बात तो यह रही कि इस फौज में वे धुरन्धर अफसर भी भर्ती कर लिये गये जिन्हें एमसीएफ में हरामखोरी व रिश्वतखोरी का काफी तगड़ा अनुभव था। अपने इस अनुभव को उन्होंने यहां भी साकार रूप दिया।

शुरू में नासमझ लोगों ने यह समझ लिया था कि नगर निगम क्षेत्र के तहत आने वाले पूरे शहर को ही स्मार्ट बनाया जायेगा। लेकिन जल्दी ही उनका यह भ्रम दूर हो गया। पता चला कि पहले से ही बने जो आधुनिक सेक्टर अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में थे उनको ही स्मार्ट बनाया जायेगा। इस योजना के तहत सेक्टर 21ए, बी व डी की विभाजक सडक़ को जलभराव से मुक्त करने के लिये करीब तीन वर्ष तक काम चलता रहा। आज उस सडक़ की स्थिति ऐसी है कि बरसाती पानी की एक बूंद भी सडक़ से बह कर कहीं नहीं जा सकती। ऐसी ही स्थिति सेक्टर ए,बी, सी की कुछ अन्य सडक़ों की भी बना दी गई है।

बडख़ल चौक व ओल्ड फरीदाबाद चौक से बाइपास को जोडऩे वाली दोनों सडक़ों पर भी कई साल से काम चल रहा है। इन पर साइकिल ट्रैक की तो कोई व्यवस्था है नहीं व फटपाथों पर कब्जे हो चुके हैं। यानी कि पैदल व साइकिल वाले मुख्य सडक़ों पर ही चलने को मजबूर रहेंगे।

अस्पताल व स्कूल तो इस योजना में आते ही नहीं। पेयजल की समस्या में अब तक कोई सुधार आया नहीं। पुराने शहर व कॉलोनियों की बात तो छोडिय़े पॉश सेक्टरों में सीवर उ$फान मार रहे हैं। बीते करीब तीन साल से शहर की अनेकों सडक़ें ऐसी गायब हो चुकी हैं जैसे वहां कभी सडक़ थी ही नहीं और जो सडक़ें हैं भी उनमें गड्ढों का कोई हिसाब नहीं। स्मार्टनेस के नाम पर एक कमांड एन्ड कंट्रोल रूम सेंटर व अनेकों सीसी टीवी कैमरे लगाये बताते हैं। ये सेंटर व कैमरे क्या कर रहे हैं और कैसे नागरिक सुविधाओं में बढोत्तरी कर रहे हैं, इसे केवल शासक वर्ग ही जानता है।

स्मार्ट सिटी में जो कूड़ा निस्तारण व सीवेज शोधन प्लांट (एसटीपी) चालू करने की बात कही गई थी वह जहां की तहां रुकी खड़ी है। इस दिशा में बयानबाजी के अलावा और कुछ भी हुआ नज़र नहीं आता। कूड़े की ढेर शहर भर में जहाँ-तहां सड़ते नजर आते हैं। बंधवाड़ी में कूड़े का पहाड़ दिन व दिन ऊंचा होते जा रहा है। इसके अलावा बाइपास पर भी कई जगह कूड़े के ढेर बढ़ते जा रहे हैं। इन ढेरों पर सैंकड़ों की संख्या में गौ मातायें अपना भोजन ढूंढ रही होती हैं। यही गौ मातायें सडक़ों पर दुर्घटनाओं का करण भी बनती हैं।

स्मार्ट सिटी कंपनी ने अपने दफ्तर के लिये सेक्टर 20 ए में एक आलीशान बिल्डिंग मोटे किराये पर ली हुई है। इसकी पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी सोनल गोयल तो शहरी स्मार्टनेस सीखने के लिये लंदन तक का दौरा कर आई थी। कई अन्य अधिकारी भी ऐसे ही कई दौरे इसी बहाने कर चुके हैं। इन्हीं सब फिजूल खर्चियों के चलते इस कंपनी द्वार अभी तक 2601 करोड़ रुपये खर्च कर चुकने के बावजूद शहर की दुर्दशा दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। इसके नमूने इस बरसात के मौसम में भी देखने को मिलेंगे।

बडख़ल झील को सीवर के गंदे पानी से भरने के लिये भी 32 करोड़ का बजट रखा गया है; जबकि इस झील को बिना कोई पैसा खर्चे वर्षा के शुद्ध जल से भरा जा सकता है।

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Mazdoor Morcha
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