फरीदाबाद (म.मो.) ओल्ड फरीदाबाद चौक से रेलवे लाईन की तरफ चलें तो दाहिने हाथ पर बसी है यह फ्रेंड्स कॉलोनी। इतना सुन्दर एवं आकर्षक नाम सुनकर एक बार तो दिल्ली वाली स्वर्ग समान फ्रेंड्स कॉलोनी की तस्वीर दिमाग में आती है। लेकिन आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे राजनेताओं व निगम प्रशासन ने इस कॉलोनी को नरक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी। करीब 10 हजार की आवादी वाली इस कॉलोनी में मध्यम एवं निम्न मध्यम वर्ग के मेहनतकश लोग रहते हैं। करीब 50 साल पुरानी इस रिहायशी कॉलोनी में लोगों ने अपने छोटे-मोटे कुटीर धंधे एवं वर्कशॉप आदि भी लगा रखे हैं। नगर निगम को यहां से लाखों रुपये गृहकर के अलावा भी कई अन्य प्रकार के टैक्स जाते हैं। इसके अतिरिक्त अच्छी खासी रकम बतौर विकास शुल्क भी निगम यहां से वसूल चुका है। इसके बावजूद इसकी उबड़-खाबड़ गलियों को सडक़ कहना सडक़ शब्द की तोहीन करना है। रात के अंधेरे में खड्डेदार इन रास्तों से कोई सही-सलामत अपने घर पहुंच जाये तो बड़ी बात होती है।
बरसात में तो इस कॉलोनी की हालत और भी खराब हो जाती है। पहले से ही उफान खा रहे सीवर और भी बूरी तरह से उफनने लगते हैं। चलो इनसे भी लोग जैसे-तैसे बच लेते हैं, लेकिन उस दूषित पेयजल का क्या करें जिसमें सीवर का गंदा पानी मिलकर आता है। दरअसल पेयजल की पाइप में जब पिछे से सप्लाई बंद हो जाती है तो उफनते सीवरों का पानी उस पाइप में घुस कर लोगों के घरों तक पहुंच जाता है। ऐसी स्थिति से बचने के लिये अव्वल तो पेयजल की पाइप लाईन में लीकेज होनी नहीं चाहिये; फिर भी सावधानी रखते हुए सडक़ के एक ओर सीवर लाईन तथा दूसरी ओर पेयजल की पाईप लाईन रखे जाने का प्रावधान है।
लेकिन, केवल लूट कमाई के लिये काम करने वाले निगम के अनपढ़ एवं लुटेरे इंजीनियर किसी भी सावधानी की परवाह किये बगैर काम को धक्का देने के चक्कर में रहते हैं। इसके दुष्परिणाम जनता भुगतती है तो भुगतती रहे, उनकी बला से।
अपनी इन्हीं समस्याओं को लेकर कॉलोनी की तीसियों महिलायें एकत्र होकर कई बार अपने निगम पार्षद सतीश….. तथा विधायक सीमा त्रिखा के चक्कर काट चुकी हैं, लेकिन फोके आश्वासनों के अलावा इन दोनों से कभी कुछ नहीं मिला। हां, कुछ ही दिनों बाद आने वाले चुनावों में ये लोग फिर से झूठे आश्वासनो के शगूफे लेकर इन्हीं लोगों के पास आयेंगे। वोट लेने के लिये ये नातागण इन्हें तरह-तरह के लालच व जाति-धर्म के जाल में फ़ांस कर वोट बटोर कर निकल लेंगे।