फरीदाबाद (म.मो.) अनेक वर्षों से शहरवासी और कुछ वर्षों से निगमायुक्त यशपाल यादव भी इस शहर में जल भराव के नजारे देख चुके हैं। 24 मई को हुई वर्षा से शहर में हुए अभूतपूर्व जल भराव ने निगम के उन तमाम दावों की हवा निकाल दी जिनमें कहा गया था कि निगम ने जल निकासी के सारे प्रबन्ध कर लिये हैं।
विदित है कि इस तरह के दावे हर साल किये जाते हैं। वास्तव में इन दावों का मतलब यह होता है कि ठेकेदार को टेंडर दे दिये गये हैं, निकासी के प्रबन्ध हो न हो बिल पास करके भुगतान कर दिये गये हैं। जाहिर है कि काम केवल भुगतान का ही होता है निकासी के ‘ प्रबंधो ‘ का नहीं। भुगतान में से ही मोटा कमीशन तमाम सम्बन्धित लोगों को मिल जाता है। यही प्रक्रिया साल दर साल चलती रहती है और जल भराव भी।
इसी सप्ताह निगमायुक्त यशपाल ने अपने तमाम अनपढ़ व लुटेरे इंजीनियरों की मीटिंग लेकर उन्हें 25 जून तक जल निकासी के प्रबंध पूरे करने की हिदायत दी है। तमाम 56 डिस्पोजल की मोटरपंप को चालू रखना तथा डीजल जनेरेटरों को भी तैयारी हालत में रखने के आदेश दिये हैं। कोताही करने वालों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की चेतावनी भी उन्होंने दे डाली है। मजे की बात तो यह है कि हर बार दी जाने वाली चेतावनी के बावजूद भी डिस्पोजल की मोटर नहीं चलती।
कोताही करनेवालों के विरुद्ध आयुक्त यादव साहब क्या कर सकते हैं? वे केवल ठेकेदारी में लगे जेई स्तर तक के कर्मचारियों, जिनके पल्ले कुछ नहीं होता, को बर्खास्त कर सकते हैं। असली हरामखोर एवं रिश्वतखोर बड़े अधिकारियों को तो वे छू तक भी नहीं सकते क्योंकि उन सबके पालनहार राजनीतिक आका उनके सिर पर हाथ रखे बैठे होते हैं। बीते दिनों बतौर निगमायुक्त गरिमा मित्तल ने विवेक गिल नामक एक एक्सियन के विरुद्ध कुछ कार्यवाही करनी चाही थी तो कार्यवाही तो गई ऐसी-तैसी में, उसे सरकार ने पदोन्नत करके एसई बनाकर गुडग़ांव जैसी मलाईदार पोस्टिंग भी दे दी।
निगमायुक्त ने 25 जून की जो तिथि तय की है, समझ से बाहर है। यदि उससे पहले 24 मई जैसी बारिश आ गई तो निगमायुक्त महोदय क्या करेंगे? विदित है कि आजकल वर्षा का कोई समय निश्चित नहीं है, यह किसी भी वक्त कितनी ही मात्रा में आ सकती है। इसलिये जल निकासी के प्रबन्ध हर समय चाक-चौबंद रहने ही चाहिये।
अनेक वर्षों से निगम की कार्यशैली को देखने वाले बखूबी समझते हैं कि जल भराव से निपटना इनके काबू से बाहर है। पहली बात तो यह कि यहां तैनात तमाम अनपढ़ इंजीनियरों की नीयत ही इससे निपटने की नहीं है। दूसरे, यदि वे निपटना चाहें भी तो उन्हें इतनी समझ ही नहीं है कि इस समस्या से निपटा कैसे जाये? यदि कोई समझदार इन्हें कोई नेक सलाह देना भी चाहें तो वह इनकी समझ में आ नहीं सकती, वर्ना जलभराव अपने-आप में कोई समस्या नहीं है। यह समस्या खुद नालायक अफसरों द्वारा पैदा की गई है।