खट्टर सरकार का षडय़ंत्र सफल नहीं होने देंगे मज़दूर संगठन

खट्टर सरकार का षडय़ंत्र सफल नहीं होने देंगे मज़दूर संगठन
June 12 03:15 2022

फरीदाबाद (म.मो.) राज्य की जनता को स्वास्थ्य सेवायें देने में पूरी तरह विफल खट्टर सरकार की गिद्ध दृष्टि आज कल ईएसआई कार्पोरेशन के अस्पतालों पर पड़ी हुई है। यह ठीक ऐसा ही है जैसे कि अपना घर तो संवारना नहीं दूसरे के संवरे हुए घर में घुस जाना। इस विषय पर ‘मज़दूर मोर्चा’ के गतांक में पूरी जानकारी काफी विस्तार से दी गई है।

संदर्भवश सुधी पाठक समझ लें कि एनएच तीन स्थित ईएसआई अस्पताल व बीके अस्पताल की सेवाओं में ऐसा क्या अंतर है कि जिसके लिये खट्टर महाशय ईएसआई अस्पताल में सेंध लगाना चाहते हैं। दरअसल बीके अस्पताल में चिकित्सा सेवायें देने का कोई माहौल ही नहीं है। यहां का लगभग सारा स्टाफ शातिर शिकारी की भांति हर समय शिकार की टोह में रहता है। कैजुअल्टी में आये लड़ाई-झगड़ों के मामलों में रिश्वत लेकर कुछ का कुछ लिख दिया जाता है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट तैयार करने तक में अच्छी-खासी वसूली की जाती है। तरह-तरह के प्रमाणपत्र देने का धंधा भी अच्छी कमाई का साधन है। जि़ले भर के प्राईवेट अस्पतालों पर छापे मारने व उनकी नकेल कसना भी यहां के डॉक्टरों की कमाई का बड़ा साधन है।
इलाज के नाम पर आने वाले गरीब मज़दूरों को वांछित सेवायें देने की अपेक्षा उन्हें कमीशनखोरी के चक्कर में इधर-उधर भटकाया जाता है। इनकी लैबोरेट्री में अव्वल तो टैस्ट होते ही नहीं और जो हो भी जायें तो वे भरोसेमंद नहीं होते। मरीज़ को देखने वाले डॉक्टर ही चुपचाप मरीज़ को इशारा कर देते हैं कि बाहर से टैस्ट करा लाओ। इसी तरह एक्सरे व अल्ट्रासाऊंड का काम भी बाहर बैठे दुकानदारों से ही कराया जाता है। वहां से शाम तक कमीशन सम्बन्धित डॉक्टरों को पहुंच जाता है।

‘मज़दूर मोर्चा’ ने पिछले दो अंकों में कमीशनखोरी का एक बेहतरीन उदाहरण प्रकाशित किया था। उसमें बताया गया था कि कैसे स्थानीय आठ सेक्टर की घरों में काम करनी वाली एक गरीब महिला 9 मई को प्रात: चार बजे अपनी डिलिवरी कराने हेतु बीके अस्पताल आई थी। वहां ड्यूटी डॉक्टर मंजरी के अनुपस्थित होने के चलते पूजा नामक एक नर्स ने उस महिला को बताया कि बच्चे की जान खतरे में है इसलिये तुरंत सेक्टर आठ स्थित गोयल नर्सिंग होम चली जाओ। नर्स ने वहां फोन भी कर दिया। महिला जब वहां पहुंची तो उन्होंने 40 हजार रुपये मांगे। इतनी रकम न होने के चलते वे लोग मुकेश कॉलोनी बल्लबगढ़ के एक छोटे से क्लीनिक जा पहुंचे। वहां पहुंचते ही महिला की स्वत: ही साधारण डिलिवरी हो गई जिसके लिये उन्हें 11 हजार रुपये देने पड़े।

समाचार प्रकाशित होने व पीएमओ तथा सीएमओ से इस बाबत बार-बार पूछे जाने के बावजूद किसी भी निकम्मे कमीशनखोर नर्स एवं डॉक्टर के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की गई। जाहिर है कि इस तरह की लूट कमाई में अस्पताल के उच्चाधिकारी भी शामिल रहते होंगे। इसी के चलते ऐसे काले कारनामे आये दिन इस अस्पताल में होते रहते हैं। यदा-कदा ही कोई मामला प्रकाश में आता है तो उसे दबा दिया जाता है। इसी से भ्रष्टाचारियों के हौंसले बुलंद होते रहते हैं।

खट्टर अपने इन अस्पतालों की नकेल कसने की बजाय सही ढंग से काम करने वाले ईएसआई अस्पतालों में सेंध मारना चाहते हैं। ईएसआई के एनएच-3 अस्पताल में हर महीने करीब 130 साधारण डिलिवरी तथा 100 के करीब सीजेरियन डिलिवरियां होती हैं। बीते चार सालों के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार एक भी केस कहीं रैफर नहीं किया गया। स्त्रीरोग की ओपीडी में करीब पांच हजार महिलायें प्रति माह आती हैं, उन्हें भी कहीं रैफर नहीं किया जाता। इस अस्पताल में 24 घंटे महिला रोग सम्बन्धी एवं प्रसूति विभाग चलता रहता है और हर शिफ्ट में पूरा स्टाफ किसी भी प्रकार के ऑपरेशन आदि के लिये तैयार रहता है।

इसके अलावा ईएसआई अस्पताल से कभी किसी मरीज़ ने किसी स्टाफ के विरुद्ध पैसे मांगने की कोई शिकायत नहीं की, जबकि बीके अस्पताल में सफाई कर्मचारी से लेकर डॉक्टर तक तमाम कर्मचारी आगन्तुक मरीज़ को किसी न किसी बहाने लूटने की ताक में रहते हैं। ईएसआई अस्पताल में हर समय मरीजों की शिकायत सुनने के लिये चिकित्सा अधिक्षक एवं डीन उपलब्ध रहते हैं। ये लोग न केवल शिकायत सुनते ही हैं, तुरन्त एक्शन भी लेते हैं जिसके चलते मरीज़ों की शिकायत नाम मात्र की होती हैं। इसके विपरीत खट्टर के सरकारी अस्पतालों में न कोई सुनने वाला है न कोई किसी को पूछने वाला है क्योंकि नीचे से ऊपर तक हमाम में सभी नंगे हैं। हां, यदा-कदा ड्रामेबाज़ी के लिये राज्य के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज अस्पतालों पर छापेमारी का खेल जरूर खेलते रहते हैं। ऐसे में भला कौन बीमाकृत श्रमिक ईएसआई अस्पताल छोडक़र खट्टर के अस्पतालों में मरने को जाना चाहेगा?

बस रैफरल ही रैफरल!
आरटीआई द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार बीते 3 वर्षों में 1511 प्रसूति केस रेफर किये गये। 2019 में 665 केस, 2020 में 481 केस, 2021 में 348 केस तथा जनवरी 2022 तक 17 केस रेफर किए हैं। इसके अलावा बाल रोग विभाग से 2019 में 43 केस, 2020 में 15 केस, 2021 में 46 केस तथा जनवरी 2022 तक 03 केस रेफर किये गये। आईपीडी विभाग से 2019 में 227 केस, 2020 में 180 केस, 2021 में 144 केस तथा जनवरी 2022 तक 09 केस रेफर किये गये। विशेष नवजात बच्चा वार्ड से 2019 में 264 केस, 2020 में 223 केस, 2021 में 136 केस तथा जनवरी 2022 तक 13 केस रेफर किये।

महिलाओं को संस्थागत प्रसूति सुविधायें उपलब्ध कराने का ढिढ़ोरा पीटने वाली सरकार ने कभी इस ओर झांक कर भी नहीं देखा कि उसके द्वारा ‘स्थापित’ कराई गई तमाम सुविधाओं की वास्तविकता क्या है? जो स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज राज्य भर के अस्पतालों में छापेमारी का नाटक करते घूमते रहते हैं, यदि उनकी नीयत काम करने की हो तो अपने कार्यालय में बैठे बैठे ही राज्य भर के अस्पतालों आदि की स्थिति को जान सकते हैं। राज्य भर के अन्य अस्पतालों का तो पता नहीं परन्तु बीके अस्पताल में तैनात स्टा$फ ने रे$फर करने को लूट कमाई का अच्छा-खासा धंधा बना लिया है। बेशक का$गज पर तो मरीज़ दिल्ली के सरकारी अस्पतालों को ही रै$फर किये जाते हैं, परन्तु उन्हें भयभीत करके कान में किसी स्थानीय नर्सिंग होम का पता बता दिया जाता है। जाहिर है उस नर्सिंग होम से कमीशन सम्बन्धित स्टा$फ को पहुंच जाता है। इसके अलावा बीके अस्पताल के सभी विभागों के मिलाकर बीते तीन वर्षो में 2772 मरीजों को रैफर किया गया है।

रेफर करने का धंधा बहुत पुराना है
गढख़ेड़ा गांव की रजनी नामक महिला अक्टूबर 2015 को बीके अस्पताल में डिलिवरी हेतु रात के करीब 12 बजे पहुंची थी जिसे ड्यूटी डॉक्टर की अनुपस्थिति में नर्स द्वारा दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल को रेफर कर दिया गया था। रेफर करते वक्त उस महिला की परिजनों को अति गंभीर स्थिति बता कर बुरी तरह से भयभीत कर दिया गया था। डर के मारे परिजन तुरन्त उसे लेकर सफदरजंग अस्पताल पहुंच गये। वहां फर्श पर पड़ी मरीज़ों की दुर्दशा देखकर, कराहती हुई रजनी को वापस सेक्टर 11 फरीदाबाद के अश्वनी नर्सिंग होम में ले आये। यहां आते ही उसकी साधारण डिलिवरी हो गई।

इतना ही नहीं उक्त महिला शुरू से ही नियमित रूप से अपने गांवों के निकट दयालपुर में स्थित हेल्थ सेन्टर से चेकप कराती रहती थी। लेकिन डिलिवरी वाले दिन जब शाम को आठ बजे वह वहां पहुंची तो स्टाफ नदारद था। केवल एक नर्स मौजूद थी जिसने उसे बल्लबगढ़ तथा बल्लबगढ़ वालों ने उसे बीके रेफर कर दिया था। सारा मामला ‘मज़दूर मोर्चा’ में प्रकाशित किया गया था। इसके जवाब में तत्कालीन सीएमओ गुलशन अरोड़ा ने मामले की जांच का आदेश दिया था। उस जांच का अभी तक कोई अता-पता नहीं। यदि तत्कालीन सीएमओ ने इस मामले का कड़ा संज्ञान लेकर उचित कार्रवाई की होती तो इस धंधे पर रोक लग सकती थी।

पीएमओ सविता यादव एक भी मरीज़ नहीं देखती

डॉक्टर सविता यादव बेहतरीन स्त्री रोग विशेषज्ञ होने के साथ-साथ बहुत अच्छी सर्जन भी हैं। इन्होंने सर्जरी में स्नातकोत्तर यानी पोस्ट ग्रेजुएशन किया हुआ है। बीते तीन साल से यानी जब से वे इस अस्पताल की प्रिंसिपल मेडिकल आफीसर  बनी हैं, तब से इन्होंने एक मरीज नहीं देखे। और तो और अस्पताल से सम्बन्धित कोई शिकायत तक भी यह सुनना पसंद नहीं करती।

माना कि इस पद पर प्रशासनिक जिम्मेवारियां भी काफी होती हैं इसलिये मरीज़ देखने की फुर्सत कम ही मिल पाती है। लेकिन सेवा नियमों के अनुसार इन्हें समय निकाल कर मरीज़ों को जरूर देखना चाहिये। यही नियम तमाम उन डॉक्टरों पर भी लागू होता है जो प्रशासनिक पदों पर यानी सिविल सर्जन अथवा डिप्टी सिविल सर्जन आदि पदों पर तैनात हैं। सिविल सर्जन विनय गुप्ता प्रशासनिक कार्यों में बेशक निल बटा सन्नाटा हैं लेकिन हर शनिवार को वे नियमित रूप से ओपीडी में बैठकर मरीज़ों को देखते हैं। अच्छी बात है, कि वे मरीज़ देखते हैं, लेकिन वे एक प्रशासनिक अधिकारी होने के नाते उन तमाम डॉक्टरों को मरीज़ देखने के लिये आदेश क्यों नहीं देते जो दफ्तरी बाबू बनकर रह गये हैं? सिविल सर्जन अथवा पीएमओ द्वारा मरीज़ों को देखा जाना कोई अजूबा नहीं है। इन पदों पर रह चुके दर्जनों डॉक्टर मरीज़ देखा करते थे।

 

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Mazdoor Morcha
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