फरीदाबाद (म.मो.) बढ़ती महंगाई के चलते ऑटो का न्यूनतम किराया 20 रुपये होने से वे लोग बेहद परेशान हैं जिनके आवागमन का एकमात्र सहारा ऑटो ही होते हैं। उनकी समस्या को सुलझाने के नाम पर एफएमडीए (फरीदाबाद महानगर डेवलपमेंट ऑथोरिटी) ने ‘शुभागमन’ नाम से लोकल बस सेवा शुरू की है। फ़िलहाल चल रही 50 बसों की संख्या को बढा कर 200 करने की तैयारी है। जानकारों के मुताबिक इन 50 बसों को सवारियां नहीं मिल रही है जबकि ऑटों में लोगों का लदान ज्यों का त्यों है।
करीब 15 वर्ष पूर्व भी इसी शहर में जेएनयूआरएम (जवारलाल नेहरू अर्बन रिन्यूअल मिशन) के तहत भी 200 अति आधुनिक बसें ला कर खड़ी कर दी गयी थीं। बसें इतनी आधुनिक थी कि हरियाणा रोडवेज़ के ड्राइवरों को उनकी ड्राइविंग सीखने के लिये बंगलोर भेजा गया था। करीब दो साल तक तो यह निर्णय न हो सका था कि उन बसों का परिचालन नगर निगम करेगा या रोडवेज महकमा। जब नगर निगम ने बिल्कुल हाथ खड़े कर दिये तो वे बसें रोडवेज को सौंपी गयी थी। खड़ी रहने से नाकारा हो चुकी बसें दो-तीन साल में पूरी तरह कबाड़ा होने के बाद बट्टे खाते लगाा दी गयी थी।
अब वही नौटंकी एफएमडीए दोहराने जा रही है। सैंकड़ों करोड़ की खरीदारी होगी, कई तरह की सौदेबाजियां होंगी और अन्तिम परिणाम वही निकलने वाला है जो पहले निकल चुका है। सबसे महत्वपूर्ण बात समझने वाली यह है कि जब सरकार रेलें बेच रही है, सडक़ें बेच रही है, रोडवेज के रूट बेच कर निजीकरण को बढ़ावा दे रही है तो ‘शुभागमन’ जैसी बस सेवा पर करदाता का पैसा लुटाने का क्या औचित्य है? क्या पहले इन बसों को खरीदा जायेगा और फिर औने-पौने में इन्हें अपने चहेतों को बेचा जायेगा?
इससे तो बेहतर होगा कि जो लोग नागरिकों को ऑटो सेवा दे रहे हैं, उन्हीं को बस सेवा देने की इजाजत क्यों नहीं दे दी जाती? उसमें क्यों खामखा उलझ कर सरकार जनता के पैसे को बर्बाद करने पर तुली है?