फरीदाबाद (म.मो.) बीते चार वर्षों से ‘मज़दूर मोर्चा’ इस कॉलेज की कारकर्दगी पर निगरानी बनाये हुए है। उस वक्त यह कॉलेज गोल्ड फिल्ड के नाम से चलते हुए बंद हो गया था। हरियाणा सरकार ने बैंको की 129 करोड़ की देनदारी चुका कर इसे अपने कब्जे में ले लिया था और इसका नाम बदल कर रखा अटल बिहारी। नाम तो रख दिया और कब्ज़ा भी ले लिया लेकिन इसे चलाने की हिम्मत खट्टर सरकार नहीं जुटा पाई।
बीते दो साल से सरकार द्वारा इसे चलाने के लिये एनएमसी (नेशनल मेडिकल कॉउंसिल) को आवेदन किया जाता रहा है। एनएमसी द्वारा निरीक्षण के दौरान यहां निल बटा सन्नाटा पाये जाने के बावजूद, केवल सरकारी आश्वासन के आधार पर, इसे चालू करने की स्वीकृति प्रदान की जाती रही है। लेकिन सरकार द्वारा अपने आश्वसन के मुताबिक कुछ भी न कर पाने की स्थिति में कॉलेज कभी चालू न हो सका।
इसी सप्ताह ‘मज़दूर मोर्चा’ ने इस कॉलेज की भीतरी जानकारी प्राप्त की तो पता चला कि वहां मात्र 30 डॉक्टर, 28 सफाई कर्मचारी व 32 वार्ड बॉय ठेकेदारी में तैनात हैं जिन्हें कई महीनों से वेतन नहीं मिला है। जाहिर है ऐसे में किसी मरीज़ के भर्ती होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। अस्पताल की शक्ल देख कर कुछ भूले-भटके मरीज़ यहां जरूर आ जाते हैं जिन्हें डॉक्टर दवा लिख कर चलता कर देते हैं। विदित है कि किसी भी मेडिकल कॉलेज को चलाने के लिये 300 बिस्तरों के अस्पताल में कम से कम 200 मरीज़ दाखिल रहने जरूरी होते हैं।
इस कॉलेज को चलाने की अपनी नीयत का प्रदर्शन करते हुए खट्टर सरकार ने इसी माह 103 डॉक्टरों को यहां नौकरी के लिये चुना है। इन चयनित डॉक्टरों को 6 मई तक सरकार को अपनी लिखित स्वीकृत देनी होगी कि वे नौकरी करना चाहेंगे। बड़ा अजीब मामला है।
अभी तो सरकार स्वीकृति मांग रही है, यह नहीं बता रही कि उन्हें नियुक्ति पत्र व वेतन कब मिलेगा? डॉक्टरों के मामले में यह सम्भव नहीं होता कि वे अनिश्चित काल के लिये सरकारी फरमान की प्रतीक्षा करते रहें। यदि सरकार के पास वेतन देने के पैसे हैं तो वह चयनित डॉक्टरों को सीधे नियुक्ति पत्र देकर ड्यूटी पर क्यों नहीं बुलाती?
इन हालात को देखते हुए सरकार की नीयत पर संदेह तो होता ही है कि कॉलेज चलेगा या नहीं?