मोदी सरकार के निर्देश पर प्रतिवर्ष 100 के बजाये 150 मेडिकल छात्र करने का नतीजा संभल नहीं रहा फरीदाबाद (म.मो.) एनएच-3 स्थित ईएसआई के मेडिकल कॉलेज ने मात्र सात वर्ष के छोटे से कार्यकाल में चिकित्सा सेवाओं का काफी विस्तार करके न केवल स्थानीय मज़दूरों को बड़ी राहत दी है बल्कि एनसीआर के विभिन्न स्थानों से भी यहां मरीज़ों को रैफर किया जाता है। कैंसर के इलाज के लिये पहले जहां मरीज़ों को व्यापारिक अस्पतालों को रैफर किया जाता था, अब केवल कुछेक मामलों को छोडक़र बाकी का इलाज यहीं होने लगा है। शीघ्र ही रेडियोथरेपी व शल्य चिकित्सा शुरू होने पर शेष केस भी बाहर जाने बंद हो जायेंगे।
इसी तरह कैथलैब शुरू होने से ह्दय रोगी जो बाहर भेजे जाते थे अब यहीं स्वास्थ्य लाभ लेने लगे हैं। किडनी सम्बन्धी रोगों के लिये भी अब सारा इलाज यहीं संभव होने जा रहा है। डायलेसिस का जो काम पहले ठेके पर रखा था, वह अब पूरी तरह से अस्पताल ने सम्भाल लिया है। इतना ही नहीं किडनी प्रत्यारोपण की भी तैयारियां लगभग पूरी होने वाली हैं।
मरीज़ों को बेहतर सेवा देने के साथ-साथ विशेषज्ञ डॉक्टर बनाने के लिये 18 विषयों में स्नात्कोत्तर पीजी पाठ्यक्रम भी शुरू हो गया है। इसके चलते जहां एक ओर फेकल्टी के रूप में बेहतरीन विशेषज्ञ डॉक्टर उपलब्ध होंगे वहीं पीजी की पढाई करने वाले सैंकड़ों समर्पित डॉक्टर भी उपलब्ध होंगे।
प्रशासनिक अदूरदर्शिता एवं अव्यवस्था खलने लगी है मेडिकल कॉलेज के डीन डॉक्टर असीम दास के अथक परिश्रम एवं नेतृत्व के चलते तमाम फेकल्टी एवं स्टाफ बेहतर से बेहतरीन काम करने में जुटा है; परन्तु जब दिल्ली मुख्यालय में बैठे उच्च प्रशासनिक अधिकारी स्टाफ के वर्षों से रिक्त पड़े स्थानों को न भरे तो डीन व फेकल्टी क्या कर सकते हैं? न तो दफ्तरी स्टाफ पूरा है न नर्सिंग स्टाफ। फार्मासिस्टों की कमी एवं दवा वितरण की लचर व्यवस्था के चलते सुबह 9 बजे अस्पताल खुलने से पहले व शाम छ: बजे तक दवा लेने वालों की लम्बी कतारें लगी रहती हैं। दवा वितरक फार्मासिस्ट बिना किसी भत्तेेके ओवर टाइम पर लगे रहने को मजबूर होते हैं।
परिसर संकुचित होने लगा प्रति वर्ष 100 छात्रों के दाखिले के हिसाब से मेडिकल कॉलेज का ढांचा खड़ा किया गया था। अब यहां बीते वर्ष 125 तथा इस वर्ष 150 छात्रों को दाखिला दिया गया। बिना किसी योजना एवं तैयारी के मोदी सरकार ने ऐसा करने का आदेश दिया जो तुरन्त लागू हो गया। सीटें बढाने का आदेश देते समय यदि सरकार अतिरिक्त छात्रावास तथा अन्य आवश्यक निर्माण, साजो-सामान एवं स्टाफ की व्यवस्था करने का आदेश दे देती तो आज 150 छात्रों को कॉलेज से 8-10 किलो मीटर दूर सूरजकुंड रोड पर किराये के छात्रावास में न रहना पड़ता। अभी क्या है, अभी तो बाहरी छात्रावास में रहनेवाले छात्रों की संख्या प्रतिवर्ष और भी बढती जायेगी।
पीजी के छात्र भी अभी इस वर्ष 50 आये हैं, अगले वर्ष इतने ही और तथा तीसरे वर्ष फिर इतने या इससे भी अधिक आयेंगे, वे कहां रहेंगे? विदित है कि पीजी छात्र चौबिसों घन्टे अस्पताल परिसर में ही रहा करते हैं। उनके पास मरीजों के वार्ड और अध्ययन कक्ष के अलावा कहीं और जाने का समय ही नहीं होता। ये लोग बड़ी मुश्किल से 4-6 घंटे सोने आदि का समय निकाल पाते हैं। लगभग यही स्थिति अन्य छात्रों की भी होती है। इसी लिये मेडिकल कॉलेज के साथ छात्रावास का होना अनिवार्य रखा गया है। जो छात्र हॉस्टल आने-जाने में ही घंटों बर्बाद करते रहेंगे तो वे पढेंगे क्या खाक? परन्तु यह बात मोदी सरकार की समझ से परे की है। वह तो यह घोषित करके ही फूले नहीं समा रहे कि उसने एक झटके में मेडकल छात्रों की सीटें डेढ गुणा से भी अधिक कर दी हैं।
पीजी शुरू होने के बाद यहां सुपर स्पेशलिटी वार्ड भी चलाने की योजना है जिसके लिये अतिरिक्त ओटी व कम से कम 300 अतिरिक्त बेड की जरूरत होने वाली है; लेकिन इसके लिये अभी तक कोई भी योजना सामने नहीं आई है। समझा जाता है कि डीन इस बाबत मुख्यालय को पत्र भेजते रहते हैं और वहां अधिकारी इस पर ‘विचार’ करने का स्वांग करते रहते हैं। फ़िलहाल इस मेडिकल कॉलेज के पास पुरानी बिल्डिंग वाली करीब 8 एकड़ जगह खाली पड़ी है जिस पर तुरन्त काम शुरू हो जाना चाहिये था। लेकिन अस्पताल की विस्तार योजनाओं को देखते हुए या 8 एकड़ भी पर्याप्त नहीं है। यदि डबल इंजन वाली सरकार की नीयत साफ हो और जनता से दुश्मनी न हो तो इस मेडिकल कॉलेज अस्पताल के साथ लगती खाली पड़ी जमीन में से पांच-दस एकड़ उपलब्ध कराना कोई मुश्किल काम नहीं है। शुरू में ऐसी योजना थी भी, लेकिन स्थानीय विधायक सीमा त्रिखा इसके विरोध में पसर गयी। उनका कहना था कि यह ज़मीन तो उनके वोट बैंक राहुल कॉलोनी के विस्तार के लिये खाली रखनी जरूरी है।
इसी के चलते उस अवैध कॉलोनी का विस्तार चल भी रहा है। इसके लिये सीमा ने मेडिकल कॉलेज की दीवार के साथ-साथ एक गंदा नाला व आधी-अधूरी सडक़ भी बनवा छोड़ी है। उस गंदे नाले का पानी कॉलेज की दीवार को खराब करता हुआ परिसर में भी भरा रहता है। इसके चलते दीवार कई जगह से गल कर गिरने की स्थिति में आ पहुंची है।
कैथलैब तो चालू हो गई पर चार ओटी खा गई ह्दय रोगी मज़दूरों के लिये कैथ लैब बहुत आवश्यक थी। इसके न होने से मरीज़ों को काफी भटकना व व्यापारिक अस्पतालों द्वारा शोषित होना पड़ता था। लेकिन अस्पताल निर्माताओं ने भविष्य में विस्तार की किसी भी सम्भावना को ध्यान में नहीं रखा था। इसलिये कैथलैब को तुर्त-फुर्त एक ऑपरेशन थियेटर में लगा कर चालू कर दिया गया। लेकिन इसके चालू होने से साथ लगते तीन अन्य ओटी भी अब चल हो पाने की स्थिति में नहीं रह गये हैं। विदित है कि एक कैथ लैब के साथ 10-10 बेड की दो आईसीयू यूनिट रखनी भी जरूरी होती हैं। इसके अलावा कुछ अन्य आवश्यकताओं के लिये भी स्थान रखना होता है। परिणामस्वरूप चार ओटी का पूरा ब्लॉक कैथलैब में समा गया।
बेशक, फ़िलहाल ओटी की कमी नहीं खल रही है लेकिन जल्द ही जब एमबीबीएस के 50 अतिरिक्त छात्रों व पीजी छात्रों को इन ऑपरेशन थियेटरों की जरूरत पड़ेगी तो क्या होगा? इसी के तुरन्त बाद 300-500 अतिरिक्त बिस्तरों की भी जरूरत पड़ेगी। यदि समय रहते इस दिशा में उचित कदम न उठाये गये तो स्थिति विकराल भी हो सकती है।