मज़दूर मोर्चा ब्यूरो लखीमपुर खीरी में पांच किसानों की योजनाबद्ध हत्या करने वाला मंत्री पुत्र आशीष मिश्रा को लखनऊ हाई कोर्ट ने करीब एक माह पूर्व जमानत पर रिहा कर दिया था। इसके विरुद्ध पीडि़त पक्ष की याचिका को लेकर अब सुप्रीम कोर्ट नौटंकी करने में जुटी है।
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमणा, न्यायमूर्ति सूर्यकांत व जस्टिस हिमा कोहली ने सुनवाई के दौरान प्रवचन बघारते हुए कहा कि हाई कोर्ट को मुकदमें के विवरणों में जाने की जरूरत नहीं थी। इसके अलावा उत्तर प्रदेश सरकार के लिये कहा कि उसने हाईकोर्ट द्वारा जमानत दिये जाने के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका क्यों नहीं दायर की? कितनी भोली बनती है सुप्रीम कोर्ट जैसे कि उसे मालूम ही नहीं कि हत्यारे व भाजपा सरकार के बीच क्या रिश्ता है? यहां सुप्रीम कोर्ट पर, ‘दूसरों को नसीहत खुद मियां फजीहत’ वाली कहावत फिट बैठती है।
सवाल सुप्रीम कोर्ट पर उठता है कि जिस दिन हाई कोर्ट ने हत्यारे को जमानत देने का आदेश जारी किया था, उसी दिन उन्होंने हाईकोर्ट से फाइल तलब क्यों नहीं की? उन्हें किसने रोका था? यदि सुप्रीम कोर्ट चाहती तो उसी दिन फाइल तलब करके हत्यारे की रिहाई रोक सकती थी। इसके अलावा जमानत देने वाले बिके हुए जज पर इस तरह के जमानती केसों की सुनवाई पर रोक लगा सकती थी।
कमाल की बात तो यह है कि पीडि़त पक्ष द्वारा याचिका डालने के तीन सप्ताह बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसकी सुनवाई का समय निकाला। सुनवाई के बाद आदर्शवादी प्रवचन तो बघार दिये लेकिन जमानत रद्द नहीं की, इसके लिये उन्होंने फैसला सुरक्षित रख लिया। यानी कि अभी वे और बहुत कुछ सोचेंगे कि जमानत रद्द करनी है या नहीं? इसी को तो कहते है कि हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और।