मज़दूर मोर्चा ब्यूरो बने-बनाये अस्पतालों व मेडिकल कॉलेजों को चलाने के लिये न तो खट्टर सरकार के पास पर्याप्त स्टाफ है और न ही आवश्यक साजो सामान। इसके बावजूद मेवात मेडिकल कॉलेज के साथ एक डेंटल कॉलेज खोलने की योजना बनाई जा रही है।
विदित है कि हरियाणा में पहले से ही इतने डेंटल कॉलेज हैं कि उनमें पूरी सिटें नहीं भर पाती। यानी कि डेंटल कॉलेज अधिक है और दाखिला लेने वाले छात्र कम हैं। इन परिस्थितियों में खट्टर साहब द्वारा एक नया डेंटल कॉलेज खोलने का औचित्य समझ से बाहर है। इन हालातों में लोगों का अनुमान है कि सरकार अपने चहेतों के उन परिजनों को नौकरी देने के लिये यह सब कर रही है जिन्होंने डेंटल के कोर्स तो कर लिये हैं और खाली बैठे हैं।
मेडिकल कॉलेजों में पीजी सीटों की कमी हरियाणा के सबसे पुराने मेडिकल कॉलेज रोहतक में मात्र 138 पीजी सीटें हैं। नये बने तीन मेडिकल कॉलेजों, करनाल में कल्पना चावला, खानपुर व मेवात में अभी तक पीजी की सीटें न होने के बराबर हैं। इनमें अभी तक एनॉटमी, फिजियोलॉजी व फारमाकॉलाजी में ही दो-दो पीजी सीटें रखी गई है। विदित है कि मेडिकल की ये तीनों ब्रांच केवल एकेडमिक हैं न कि क्लीनिकल, यानी कि इन ब्रांचों से निकलने वाला डॉक्टर केवल पढ़ाने का काम कर सकेंगे न कि मरीज़ों को देखने का।
इसके बरक्स फरीदाबाद के नये-नवेले ईएसआई मेडिकल कॉलेज की 18 ब्रांचो में 49 पीजी सीटें इस साल से शुरू हो गई हैं। हरियाणा सरकार के उक्त तीनों कॉलेजों में पर्याप्त पीजी सीटें न होने के पीछे मूल कारण फेकल्टी यानी कि पढ़ाने वाले प्रोफेसरों का अभाव है। इस अभाव का मूल कारण सरकार के पास इन्हें वेतन देने का पैसा नहीं है। अपनी इसी खामी को छिपाने के लिये सरकार यदा-कदा प्रोफेसरों की पोस्टें विज्ञापित तो करती है लेकिन भर्ती प्रक्रिया ऐसी अपनाई जाती है कि कोई भी प्रोफेसर इनके यहां भर्ती न हो सके।