आगामी नगर निगम चुनाव का फर्जीवाड़ा

आगामी नगर निगम चुनाव का फर्जीवाड़ा
March 13 04:15 2022

सत्ता के दुरुपयोग का जीता जागता नमूना है वार्डबंदी

मज़दूर मोर्चा ब्यूरो
खट्टर सरकार द्वारा आगामी नगर निगम चुनाव के लिए की गयी वार्डबंदी सत्ता के दुरुपयोग का जीता जागता नमूना है।
सरकार की मनमानी और जनहित को ताक पर रखने की मंशा इस प्रक्रिया के प्रारम्भ से ही स्पष्ट हो रही थी जब एड-हॉक कमेटी ने सीधे ही मनमाने ढंग से वार्डबंदी करने के लिए केवल भाजपा वाले सदस्यों की एक समिति बना दी। इसके सदस्य सुमन बाला , धनेश अदलखा , उमा सैनी और बिजेन्दर शर्मा थे। इनमे से क्रमश: तीन पार्षद भाजपा के निशान पर चुनाव लडक़र पार्षद बने थे व बिजेन्दर शर्मा भाजपा द्वारा मनोनीत पार्षद थे। एक ही पार्टी विशेष के लोग मिल कर जनहित की बजाय दलहित को प्राथमिकता देंगे ये बात किसी मूर्ख को भी समझ आती है। खैर जैसा सोचा हुआ भी वैसा ही और केवल सत्ता पक्ष को लाभ पहुंचाने और फरीदाबाद की जनता के हितों को सिरे से दरकिनार करते हुए वार्डबंदी का प्रारूप तैयार कर दिया गया।

न तो इस प्रारूप की कोई सरकारी अधिकृत घोषणा की गयी और न ही अधिकारियों ने इसे सार्वजनिक करने की कोई जहमत उठाई जो कि न केवल जन सेवक होने के नाते जनहित में उनका कर्तव्य था बल्कि हरियाणा नगर निगम एक्ट 1994 के अनुसार वह कानूनन बाध्य भी थे। अखबार और सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी देना तो दूर , निगम ने इतनी महत्वपूर्ण अधिसूचना को अपनी अधिकृत वेबसाइट पर भी डालना जरूरी नहीं समझा। सार्वजनिक विषय को गोपनीयता प्रदान करना फरीदाबाद की जनता से छलावा नहीं है तो और क्या है? हालांकि सत्ता पार्षद और सरकार के नजदीकियों को यह प्रारूप करीब करीब एक महीने पहले ही अनिधिकृत रूप से दे दिया गया था ताकि वह अपने हिसाब से वार्डों की सीमाओं में फेरबदल करवा सकें।और जो प्रारूप आम जनता को मिला भी उसको समझ पाना किसी आम व्यक्ति के बस की बात नहीं है। आम व्यक्ति तो छोडिय़े उसी क्षेत्र से चुनाव की ताल ठोक रहे पार्षद प्रत्याशी भी वार्डों की नयी सीमाओं को समझने में सर खुजलाते नजर आये। इस विषमता का उद्देश्य? ना नौ मन तेल होगा ना राधा नाचेगी। ना लोगों को वार्डबंदी समझ आएगी ना वो आपत्ति दर्ज कराएंगे।

आपत्ति दर्ज कराने के लिए एक्ट के अनुसार कम से कम दस दिन की अवधि देनी होती है और हरियाणा के सबसे ज्यादा जनसँख्या वाले शहर फरीदाबाद को जिसमे कि प्रदेश के किसी भी निगम से ज्यादा वार्ड बनते हैं , ऐसे शहर को भी पर्याप्त दिन नहीं मिले। वह भी 4 मार्च 2022 शुक्रवार की शाम को यह अधिसूचना लोगों के व्हाट्सप्प पर प्रसारित होनी शुरू हुई। यह व्हाट्सप्प पर किसने और कब सार्वजनिक की यह किसी को नहीं पता। 13 मार्च 2022 आपत्ति दर्ज कराने की आखिरी तारीख तय हुई। तो 4 मार्च 2022 का दिन तो वैसे ही समाप्त हो गया और शनिवार, रविवार छुट्टी। 4 मार्च 2022 से लेकर 13 मार्च 2022 के बीच में 4 छुट्टियां पड़ती हैं। तो लोगों को असल में केवल 6 दिन ही मिले आपत्ति दर्ज कराने के लिए। अगर वाकई में स्थानीय नेताओं और अधिकारियों की जन हितैषी सोच होती तो वह फरीदाबाद जैसे बड़े शहर को 10 दिन से ज्यादा समय देते जो कि कानूनन भी गलत नहीं था, फिर इस प्रारूप के अनुसार वार्डों की पुरानी और नई सीमाओं को दर्शाते हुए मानचित्रों द्वारा जनता के समक्ष प्रस्तुत करते, निगम कार्यालय और आयुक्त कार्यालय में कोई सहायता केंद्र खोलते जिससे कि किसी भी आमजन को यदि अपना वार्ड समझना है तो वह समझ पाता। परन्तु ऐसा कोई सक्रिय प्रयास ना तो किया गया ना ही कोई इच्छा जाहिर की गयी। इसके विपरीत सभी सम्बंधित अधिकारी संदेहास्पद जल्दबाजी में नजर आये जैसे कि सोच रहे हों कि कब ये दस दिन बीतें और कब हमारे मंसूबे कामयाब हों।

जिला उपायुक्त कार्यालय में भी इस प्रारूप की विस्तृत जानकारी ना होना इस वार्डबंदी की गोपनीयता की नीयत को उजागर करता है। बहरहाल जो वार्डबंदी का प्रारूप आया वह दु:खद ,दुर्भाग्यपूर्ण और कहीं कहीं पर हास्यास्पद है। पिछले पांच सालों से अकूत भ्रष्टाचार और शहर की अभूतपूर्व दुर्दशा के जिम्मेदार फरीदाबाद नगर निगम की वार्डबंदी को सत्ता पक्ष ने केवल अपने विरोध को छिन्न भिन्न करने का जरिया बना दिया। मतलब यहाँ भी भ्रष्टाचार। कहीं तो मोहल्लों को दो हिस्सों में बाँट दिया गया तो कहीं निगम में आने वाले गाँवों के तीन हिस्से कर के अलग अलग वार्डों में जोड़ दिए गए हैं। संजय कॉलोनी को तो चार हिस्सों में बांटने का काम किया गया है।पहले से ही जनता से दूर भागते पार्षदों की नयी वार्डबंदी में जवाबदेही तय करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। मसलन वार्ड नंबर 6 में से गुजर रही सीवर लाइन 3 वार्डों में बाँट दी गयी है। तो यदि सीवर लाइन में कोई समस्या आती है तो उसे ठीक कराने की जिम्मेदारी किसकी होगी यह बता पाना अपने आप में पंचायती झगड़े के सामान है। वार्ड नंबर 7 के हिस्से में बंटवारे में एक भी पानी का बूस्टर नहीं आया। तो अभिप्राय ये हुआ कि यहाँ रहने वालों को अपनी पानी की समस्या के लिए दूसरे वार्ड के पार्षद पर निर्भर होना पड़ेगा। तो बेचारों को अपने पार्षद के साथ साथ पड़ोस के बूस्टर वाले वार्ड के पार्षद बनवाने की भी चिंता करनी होगी। और सोचिये यदि ऐसी व्यवस्था में दोनों वार्डों में अलग अलग पार्टियों के पार्षद चुन कर आते हैं तो विकास और जनता का ईश्वर ही मालिक है। गर्मियों के समय शहर में पानी की भयंकर किल्लत रहती है और ऐसे समय में ऐसी षड्यंत्रकारी वार्डबंदी से पार्षद साहब को अपनी राजनीति चमकाने का भरपूर अवसर मिलेगा।
यही हाल दौलताबाद , बाढ़ मोहल्ला, पल्ला , अजरौंदा गाँव , वार्ड नंबर 3, पर्वतीया कॉलोनी, ग्रीन फील्ड कॉलोनी इत्यादि का किया गया है। कहीं कहीं तो ऐसी खबर सुनने में आ रही है कि बहू एक वार्ड में और घर के सामने ही रहने वाली सास दूसरे वार्ड में कर दी गयी है। दो सगे भाई जो आमने सामने मकान बनाकर रह रहे थे वो अब अलग अलग वार्ड में अपनी समान समस्याओं के लिए जूझते नजर आएंगे।

वर्गक्षेत्र के हिसाब से सबसे बड़ा वार्ड 45 नंबर है जिसमे कि 11 गाँव और कुछ सोसाइटियां शामिल की गयी हैं। बहुमंजिला इमारतों के महंगे महंगे फ्लैटों में रहने वाले शहर का अभिजात वर्ग इस विभाजन से अच्छा खासा नाराज है। उनका कहना है कि गाँवों और सोसाइटीज की समस्याएँ बिल्कुल भिन्न हैं और आपस में कोई मेल नहीं है। वार्डबंदी करते समय इसके सूत्रधारों ने ना तो हमारी समस्याओं का अवलोकन किया और ना ही हमारी भावनओं का सम्मान किया। ऐसा लगता है कि हमारे प्रतिनिधित्व को दबाने और एक जाति विशेष को हमारे संसाधनों पर काबिज करने की मंशा से यह वार्डबंदी की गयी है जो बेहद ही दुखद है। इन बहुमंजिला इमारतों में रहने वाले लोग पहले से ही स्थानीय लोगों की दबंगई और बिल्डर की मिलीभगत से हो रहे हस्तक्षेप से जूझ रहे हैं।

बडख़ल विधानसभा में तो कुटिल राजनीति की पराकाष्ठा देखने को मिल रही है। यहाँ नेबरहुड 1,2 ,3 ,5 के अनुरूप बसे पुरुषार्थी (पंजाबी) बाहुल्य इलाकों को तोड़ कर उनमे निकटवर्ती कालोनियों को जोड़ दिया गया है। इससे यहाँ के लोगों में भारी रोष है क्योंकि उनका मानना है ऐसा केवल पंजाबी बाहुल्य वार्डों से पंजाबी वर्चस्व समाप्त करने के लिए किया गया है। अब इसका राजनीतिक लाभ किसको और क्यों होगा तथा किसकी सहमति से ये गुणा भाग किया गया है इसके अलग अलग लोकमत चर्चा में हैं। पूरे शहर में चर्चा है कि यह सारी व्यूह रचना शहर में बिगड़ती व्यवस्थाओं एवं भाजपा के भ्रष्टाचार के खिलाफ लगातार बढ़ रहे आक्रोश को दबाने और सत्ता पक्ष द्वारा अपना मेयर बनाने के उद्देश्य से की गयी है।
इस वार्डबंदी के लिए की गयी जनगणना भी सवालों के घेरे में है। फरीदाबाद की अधिकाँश जनता का कहना है कि ना तो हमारे यहाँ कोई जनगणना करने आया और ना ही हमें इस विषय में कोई जानकारी है। जबकि एक्ट के अनुसार यह जनगणना डोर टू डोर जाकर होनी थी और जातीय जनगणना भी होनी थी ताकि आरक्षित वार्डों का बंटवारा सही तरीके से हो। विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी बड़ी जनसँख्या की गणना इतने कम समय में कराना असंभव है क्योंकि इस काम के लिए अभी कोई 2 माह पूर्व ही कुछ प्राइवेट एजेंसियों को यह कार्य सौंपा गया था। अत: जब बनाए जाने वाले वार्डों की जनसंख्या का सही डाटा ही उपलब्ध नहीं है तो समिति ने वार्ड बंदी कैसे की होगी और किस आधार पर वार्डों को आरक्षित किया जायेगा यह विचारणीय प्रश्न है ।

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Mazdoor Morcha
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