फरीदाबाद (म.मो.) पुत्र के मेयर बन जाने की उम्मीद में मंत्री कृष्णपाल ने दिवालिये नगर निगम का भारी-भरकम खर्चा करा कर आलीशान दफ्तर तो बनवा दिया लेकिन क्या वे कभी इस दफ्तर में बैठ पायेंगे, यह एक बड़ा सवाल है।
कहावत है कि सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखता है, ठीक उसी तरह कृष्णपाल को भी मोदी लहर में बटोरे वोट याद आ रहे हैं। उन्हें लगता है कि जैसे वे दो बार लोकसभा चुनाव मोदी के नाम पर जीत चुके हैं, ठीक वैसे ही वे देवेंदर की नैया भी पार लगा ही देंंगे। लेकिन मोदी लहर का चश्मा उन्हें वह हकीकत देखने नहीं दे रहा जिसमें मोदी लहर का सफाया नज़र आ रहा है। इसके अलावा बाप-बेटे ने मिल कर दोनों हाथों से जो लूट मचाई है, सत्ता का दुरुपयोग करके जो जायदादें खड़ी की है, जिस तरह पुलिस का दुरुपयोग करके अपराधी तत्वों को संरक्षण प्रदान किया है, ऐसे में कौन भला नागरिक इन्हें वोट देने आयेगा।
मेयर के लिये होने वाला चुनाव क्षेत्र करीब पांच विधायकों के चुनाव क्षेत्र के बराबर होगा। इनमें से एनआईटी क्षेत्र में भाजपा पहले ही बेदखल हो चुकी है और बडख़ल क्षेत्र से बेदखल होती सीमा त्रिखा को पूरी प्रशासनिक, हेरा-फेरी से जिता कर बड़ी मुश्किल से बचाया गया था। बल्लबगढ़ से मूलचंद, भाजपा की नाक केवल इसलिये बचा पाये थे कि उनके सामने कांग्रेसी उम्मीदवार न होने जैसा था। तिगांव से राजेश नागर भले ही भाजपाई विधायक हैं लेकिन उनका कृष्णपाल से चल रहा छत्तीस का आंकड़ा किसी से छिपा नहीं है, ऐसे मेंं समझा जा सकता है कि वे मंत्री पुत्र को क्या ही मेयर बनवायेंगे?
फरीदाबाद से विधायक बेशक नरेन्द्र गुप्ता हैं, लेकिन यहां अधिक प्रभावशाली पूर्व मंत्री विपुल गोयल हैं, उनका कोई भरोसा नहीं कि वे भाजपा में कब तक रहेंगे। और जिस विपुल की नैया डुबोने में कृष्णपाल ने कोई कसर नहीं छोड़ी वह उसके बेटे की नैया कैसे पार लगने देगा?
ऐसे में ले-देकर कृष्णपाल के पास गूजरवाद का इन्जन बचता है। लेकिन मुकाबले में यदि डबल इन्जन वाला उम्मीदवार आ डटा तो कृष्णपाल का यह इन्जन भी फेल समझो। डबल इन्जन यानी जो पंजाबी बाहुल्य क्षेत्र में पंजाबी वोट खींचे और गूजर बाहुल्य में गूजर। इसके साथ-साथ यदि कांग्रेस का हाथ भी साथ हो तो फिर बेचारा क्या तो देवेन्द्र कर पायेगा और क्या उनके पापा? ऐसे उम्मीदवार के तौर पर रेणुका चौधरी पर नज़र पड़ती है जो खुद तो पंजाबी (खुल्लर) हैं और पति विजय प्रताप भड़ाना। बीते विधानसभा चुनाव में विजय और वेणुका ने जिस प्रकार सीमा त्रिखा केे पंजाबी वोट बैंक में सेंध मारी थी, उनकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी थी। इस चुनाव में वेणुका ने अपनी विलक्षण चुनावी रणनीति को बहुत अच्छे से सिद्ध किया था। इन हालात में यदि वेणुका मेयर चुनाव में उतर आई तो कृष्णपाल की सिट्टी-पिट्टी गुम होना तय है।