फरीदाबाद (म.मो.) पुलिस प्रवक्ता सूबे सिंह द्वारा जारी एक प्रेस नोट में बताया गया है कि पुलिस आयुक्त विकास अरोड़ा के दिशा निर्देशन में चलाये गये एक विशेष अभियान के तहत जि़ले भर के तमाम थाने, चौकियों व क्राइम ब्रांचों द्वारा जुए-सट्टे के 66 मुकदमे दर्ज करके कुल 67 लोगों को गिरफ्तार करके एक लाख चौदह हजार रुपये की बरामदगी की गई है।
कितना खोखला व हास्यास्पद दावा है यह, सारे जि़ले की पुलिस ने मिल कर इतने बड़े कद्दू में यह तीर मारा है। 66 मुकदमों में गिरफ्तार हुए केवल 67 व्यक्ति! क्या 66 मुकदमों में एक-एक व्यक्ति ही अकेला बैठा जुआ या सट्टा खेल रहा था? अब तक तो यही देखा सुना गया था कि कम से कम दो, चार व्यक्ति तो जुआ खेलने बैठते ही हैं, पुलिस ने ये कैसे केस पकड़े हैं जिनमें एक-एक अकेला व्यक्ति ही जुआ खेल रहा था? बरामदगी भी केवल एक लाख चौदह हजार की ही हुई, यानी औसतन 2000 रुपये प्रति केस भी न हुई, यह कैसा जुआ चल रहा था?
इस राज को समझिये। ‘मज़दूर मोर्चा’ ने यह राज पहले भी कई बार प्रकाशित किया है। हर थाने चौकी वाले अपनी-अपनी कार-करदगी दिखाने के लिये आंकड़ों की खानापूर्ति के लिये जुआरियों, सट्टेबाजों व शराब की अवैध बिक्री करने वालों को संदेश भेज कर एक-एक दो-दो केस मंगा लेते हैं। इस खेल में धंधेबाज़ खुद ब खुद अपने एक-एक दो-दो फंटरों को कुछ रुपयों व बोतलों के साथ पुलिस के हवाले कर देते हैं। पुलिस अपने कागज काले-पीले करके कोर्ट की तरफ धकेल देती है, जहां से ये फंटर 100-50 रुपये जुर्माना अदा करके फिर से अपने धंधे पर आ जुटते हैं। यही सब खेल इस विशेष अभियान में भी हुआ प्रतीत होता है।
थाने-चौकियों वाले यह खेल सदा से ही खेलते आ रहें हैं तो यह हास्यास्पद नहीं था। लेकिन पुलिस प्रवक्ता सूबे सिंह ने इसे पुलिस आयुक्त के दिशानिर्देशन में विशेष अभियान का दर्जा देकर हास्यास्पद बना दिया। इससे बेहतर तो यही होता कि सूबे सिंह इसे अपने ही दिशानिर्देशन में चलाये गये अभियान की संज्ञा दे देते। पुलिस आयुक्त को भी इस तरह की चापलूसी से परहेज करना चाहिये।