बीजेपी सरकार ने ‘आधार’ को वोटर कार्ड से जोडऩे का कानून पास कर दिया। लोकसभा में यह कानून बिना किसी बहस के आनन-फानन में कृषि कानूनों की तरह सोमवार को पास कर दिया गया। इसी तरह जल्दबाजी और जबरदस्ती में पास किये गये कृषि कानूनों को थूक कर चाटने की अपनी परिणति से भी सरकार ने कुछ नहीं सीखा। लोकसभा में सोमवार को कामकाज की लिस्ट में इस बिल का कहीं जिक्र नहीं था लेकिन सोमवार को दोपहर बाद एक पूरक सूची में शामिल करके इसे पेश कर दिया गया। और फिर विपक्ष की इसे विचार विमर्श के लिये सिलेक्ट कमेटी को सौंपने की मांग के बावजूद इसे तुरन्त ध्वनि-मत से पारित कर दिया गया। इसी तरीके से मंगलवार को इसे राज्यसभा में भी पारित कर दिया गया। यानी सरकार एक षडयंत्रपूर्ण तरीके से इस कानून को बनाने और तुरन्त बनाने के लिये कटिबद्ध थी। आखिर सरकार को इसकी क्या जल्दी थी?
आधार को मतदाता सूची और मतदाता पहचानपत्र से जोडऩे से कई सवाल खड़े हो गये हैं जिनको अनदेखा कर दिया गया है। सबसे पहला और महत्वपूर्ण सवाल तो यह है कि इससे मतदान की गोपनियता भंग हो जायेगी और संविधान द्वारा प्रदत्त गुप्त मतदान के अधिकार का उल्लंघन होगा। लेकिन सरकार का इस कानून को लाने का उद्देश्य भी शायद यही है। जो जासूसी इजरायली ‘पेगासस’ से चुनिन्दा लोगों की गुप्त रूप से की जा रही थी वो अब इस कानून के द्वारा सबकी और खुलेआम हो सकेगी। यानी मतदान के बाद के विश्लेषणों से सरकार यह जान सकेगी कि किसने किसको वोट दिया है। तो क्या उत्तर प्रदेश के आसन्न चुनावों में लोगों को डराने के लिये ये कानून लाया गया है? क्या उनको यह बताने के लिये कानून लाया गया है कि अगर हमें (यानी बीजेपी) को वोट नहीं दोगे तो हमें पता चल जायेगा और फिर हम तुम्हें सबक सिखायेंगे।
उधर केन्द्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू कह रहे हैं कि आधार को जोडऩा पूर्णतया स्वैच्छिक होगा (यानी कोई अपने मतदाता पहचानपत्र से चाहे तो इसे जुड़वाये और चाहे तो नहीं) लेकिन साथ ही यह भी कह रहे हैं कि इससे दो-दो जगह मतदान करने वालों और बोगस वोटरों का सफाया किया जा सकेगा। पूछा जाना चाहिये कि अगर मतदाता पहचान पत्र से आधार को जोडऩा स्वैच्छिक होगा तो कोई बोगस मतदाता इससे कैसे पकड़ा जायेगा या दो-दो जगह मतदाता सूची में नाम होने से इससे कैसे रोका जा सकेगा। स्पष्ट है कि या तो यह काम स्वैच्छिक नहीं होगा या फिर इससे बोगस मतदान की समस्या हल नहीं होगी। तो क्या केन्द्रीय कानून मंत्री झूठ बोल रहे हैं? या फिर वो अपना नाम गधों की सूची में जुड़वाना चाहते हैं? संशोधित कानून की धारा 23 (5) के अनुसार सरकार एक तारीख तय करके सरकारी गजट में प्रकाशित कर सकती है जिसके बाद कोई भी नागरिक चाहे तो अपना आधार वोटर लिस्ट में दर्ज करवा सकता है। सवाल यह है कि कोई नागरिक अगर अपना आधार चुनाव अधिकारी को सूचित नहीं करता है या करना नहीं चाहता तो क्या होगा? पिछले अनुभव से हम देख सकते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश और भारत सरकार के निर्देश के बावजूद न तो बैंक खाता बिना आधार के खोला जा रहा है और न ही मोबाइल कनेक्शन आधार के बिना मिल रहा है। क्या ये स्पष्ट संकेत नहीं है कि वोटर लिस्ट के साथ भी ऐसा ही होगा। क्या इस कारण भारत के बहुत सारे नागरिक वोट डालने और चुनाव के अपने अधिकार से वंचित नहीं हो जायेंगे? और जो आधार को वोटर कार्ड या लिस्ट से जुड़वा लेंगे क्या उनकी निजी जानकारियां सुरक्षित रह पायेंगी? लेकिन जब सरकार को नागरिकों को डरा-धमका कर या फिर उनकी जासूसी करके सिर्फ चुनाव जीतने की चिन्ता है तो फिर ऐसे कानून बनाने और उनके दुरुपयोग से उसे कौन रोक सकता है! -अजातशत्रु